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Custard Apple VIllage: जिले का आंबेझरी गांव में सीताफल का जंगल है. इस गांव के सीताफल की डिमांड महाराष्ट्र के नागपुर, भंडारा सहित दूसरे इलाके तक है. उस गांव में चार हजार से ज्यादा सीताफल के पेड़ है, जो वहां की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देता है. दरअसल, गांव में एक ऐसी समिति है बनी है, जो जंगल का प्रबंधन और सुरक्षा करती है. लेकिन बीते कुछ सालों से नियंत्रण कम हुआ है. जिसक
मध्य प्रदेश का बालाघाट जिला देश भर में जंगल के लिए प्रसिद्ध है. यहां की 53 प्रतिशत जमीन पर जंगल है. यहां पर आमतौर पर मिश्रित वन पाए जाते हैं. लेकिन जिले का आंबेझरी गांव में सीताफल का जंगल है. इस गांव के सीताफल की डिमांड महाराष्ट्र के नागपुर, भंडारा सहित दूसरे इलाके तक है. उस गांव में चार हजार से ज्यादा सीताफल के पेड़ है, जो वहां की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देता है. दरअसल, गांव में एक ऐसी समिति है बनी है, जो जंगल का प्रबंधन और सुरक्षा करती है. लेकिन बीते कुछ सालों से नियंत्रण कम हुआ है. जिसका असर ये हुआ कि अब सीताफल के जंगल पर संकट आ गया है.
सीताफल के लिए मशहूर गांव आंबेझरी में सीताफल के जंगल को नीलाम किया जाता था. ऐसे में शुरुआती बोली 25 हजार रुपए में लगती थी. फिर बढ़कर 60 हजार से ज्यादा तक पहुंची थी. ऐसे में दूर-दराज से व्यापारी आकर बोली लगाते थे. नीलामी से मिले रुपयों का इस्तेमाल समिति गांव के विकास में खर्च करती है. सीताफल के पैसों से समिति ने कई विकास कार्य किए, जैसे मंदिर बनाना और सभा मंच बनाना. ऐसे में सीताफल के बगीचे गांव के विकास में अहम योगदान देते हैं.
पहला हक ग्रामीणों का
सीताफल समिति के अध्यक्ष गौपाले ने बताया कि भले ही गांव के सीताफल के जंगल को नीलाम किया जाता था. लेकिन उन सीताफल पर पहला हक ग्रामीणों का होता है. ऐसे में सबसे पहले हर घर से एक जंगल जाकर नियम से 100 सीताफल तोड़ कर लाता है. इसमें से 10 सीताफल समिति में जमा करता है. 90 सीताफल घर ले जाता है. इसमें भी आधे सीताफल घर के लिए तो आधे सीताफल को बेच देता था.
समिति भंग होने से बड़ा नुकसान
जब तक गांव में एक समिति थी, तब तक बड़े ही सलीके से बगीचे में काम होते थे. लेकिन बीते दो साल से गांव दो धड़ों में बंट गया. ऐसे में जंगल से लगातार सीताफल के पेड़ कम हो रहे हैं. वहीं, असामाजिक तत्व सिर्फ सीताफल नहीं तोड़ते बल्कि टहनियों को भी नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में तो नीलामी भी नहीं हो पा रही है. गांव की अर्थव्यवस्था पर अंकुश लग गया है. इसके पीछे एक कारण और भी है. सीताफल के जंगल में बाघों की मूवमेंट है. ऐसे में जंगल में लोग भी जंगल में जाने से बचते हैं. नतीजतन पेड़ पर लगे सीताफल पेड़ पर ही खराब हो जाते हैं.
Shweta Singh, currently working with News18MPCG (Digital), has been crafting impactful stories in digital journalism for more than two years. From hyperlocal issues to politics, crime, astrology, and lifestyle,…और पढ़ें
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