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सतना जिले के किसान अब पारंपरिक फसलों की जगह यूकेलिप्टस की खेती कर रहे हैं. कम लागत और मेहनत में मिलने वाले लाखों के मुनाफे ने इसे किसानों की पहली पसंद बना दिया है.
Satna News: तेजी से बदलते खेती जगत में अब किसान पारंपरिक खेती से हटकर ऐसे विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं जो कम लागत में अधिक लाभ दे सकें. इन्हीं विकल्पों में से एक यूकेलिप्टस की खेती आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था का नया सहारा बनती जा रही है. यह पौधा न केवल तेजी से बढ़ता है बल्कि लकड़ी, फर्नीचर और कागज उद्योग में इसकी भारी मांग के चलते किसानों के लिए दीर्घकालिक कमाई का जरिया साबित हो रहा है.
बेहतर प्रजातियां और पौधरोपण तकनीक
रोपणी प्रभारी विष्णु कुमार तिवारी ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि यूकेलिप्टस की बेहतरीन क्लोनल वेरायटी जैसे P23, P28 और P7 किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. ये पौधे रूट ट्रेलर तकनीक से तैयार किए जाते हैं, जिनकी कीमत मात्र ₹5 से ₹7 प्रति पौधा तक होती है. जून से सितंबर के बीच बोई जाने वाली यह फसल किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से पनप जाती है. प्रति एकड़ करीब 1000 से 1200 पौधे लगाए जा सकते हैं और इन्हें कम पानी में भी अच्छी बढ़ोतरी मिलती है.
कम मेहनत में लाखों का मुनाफा
खेती की तैयारी में खेत को समतल कर 15–20 सेंटीमीटर गहरे गड्ढों में 5 फीट की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं. हर पौधे के पास जैविक खाद जैसे गोबर या वर्मी कम्पोस्ट डालने से बेहतर परिणाम मिलते हैं. उचित सिंचाई और गुड़ाई से पौधे तेज़ी से बढ़ते हैं और 5 वर्षों में प्रति एकड़ 20 से 25 लाख रुपये तक का लाभ दिया जा सकता है.
सरकारी पाबंदी नहीं, खुला व्यापार अवसर
यूकेलिप्टस की खेती की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसकी बिक्री और खरीदी पर किसी तरह की सरकारी रोक नहीं है. किसान स्वतंत्र रूप से इसका व्यापार कर सकते हैं. ऐसे में अगर आप भी पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर एक स्थायी और लाभदायक विकल्प चाहते हैं तो यूकेलिप्टस की खेती आपके लिए भविष्य का स्मार्ट निवेश साबित हो सकती है.
Dallu Slathia is a seasoned digital journalist with over 7 years of experience, currently leading editorial efforts across Madhya Pradesh and Chhattisgarh. She specializes in crafting compelling stories across …और पढ़ें
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