तारीख 8-9 अक्टूबर की दरम्यानी रात। सिवनी पुलिस ने एक गाड़ी से हवाला के तीन करोड़ रुपए जब्त किए। इसकी खबर इनकम टैक्स या अपने आला अफसरों को देने के बजाय पुलिस वालों ने खुद ही तीन करोड़ का सौदा कर लिया। इस पूरे मामले में एसडीओपी पूजा पांडेय की मुख्य भूम
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इस पूरे मामले से पुलिस की किरकिरी हुई। हालांकि, ये कोई पहला मामला नहीं है जिसमें पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हो। पिछले दो महीने में एमपी पुलिस पर डकैती, हत्या, क्रूरता और भ्रष्टाचार के गंभीर दाग लगे हैं। वह चाहे खरगोन में पालतू कुत्ते को लेकर बेल्ट से पीटने वाला अफसर हो या भोपाल में एक युवा इंजीनियर की जान लेने वाली पुलिसिया बर्बरता की कहानी।
पुलिस के लापरवाह रवैये पर सुप्रीम कोर्ट तक को टिप्पणी करना पड़ी। भास्कर ने पिछले दो महीने में पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करने वाली इन घटनाओं की पड़ताल की साथ ही विशेषज्ञों से बात कर समझा कि आखिर खाकी की साख पर दाग लगने की वजह क्या है? पढ़िए रिपोर्ट
पुलिस ने किया 50-50 का सौदा नागपुर जा रही एक क्रेटा कार में हवाला के 3 करोड़ रुपए होने की सूचना पर एसडीओपी पूजा पांडेय और बंडोल थाने के टीआई अर्पित भैरम ने अपनी टीम के साथ गाड़ी को रोका। पुलिसकर्मियों ने रुपए अपनी गाड़ी में रखे और कारोबारी को बिना किसी कार्रवाई के जाने दिया। उन्हें लगा कि हवाला का पैसा है, इसलिए कोई शिकायत करने की हिम्मत नहीं करेगा, लेकिन दांव उल्टा पड़ गया।
व्यापारी अगले दिन थाने पहुंच गया। मामला खुलता देख एसडीओपी पूजा पांडेय ने उसे अपने दफ्तर बुलाया और व्यापारी से किया 50-50 का सौदा, यानी डेढ़ करोड़ पुलिस रखेगी और डेढ़ करोड़ व्यापारी को वापस मिलेंगे। व्यापारी को जब उसके हिस्से के डेढ़ करोड़ रुपए लौटाए गए, तो उसमें से भी 45 लाख रुपए कम थे। इस धोखाधड़ी से बौखलाए व्यापारी ने हंगामा कर दिया और बात मीडिया तक पहुंच गई।
पुलिस की इस संगठित लूट का भंडाफोड़ होते ही विभाग में हड़कंप मच गया। आईजी प्रमोद वर्मा ने रातों-रात टीआई अर्पित भैरम समेत 9 पुलिसकर्मियों को निलंबित किया। अगले दिन डीजीपी कैलाश मकवाणा ने एसडीओपी पूजा पांडेय को भी सस्पेंड कर दिया। जांच में पुलिस के पास से 1.45 करोड़ रुपए बरामद हुए।
एसडीओपी पूजा पांडेय समेत 11 पुलिसकर्मियों के खिलाफ डकैती, अवैध हिरासत, अपहरण और आपराधिक षड्यंत्र जैसी गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया। अब सभी लोग जेल में हैं।

पार्टी कर रहे उदित को बेरहमी से पीटा
भोपाल का सॉफ्टवेयर इंजीनियर उदित अपने दोस्तों के साथ 9 अक्टूबर की रात पिपलानी इलाके में पार्टी कर रहा था। उसके दोस्त अक्षत के मुताबिक हम लोगों ने बीयर पी थी। उसी दौरान दो कॉन्स्टेबल आए। उनमें से एक हम लोगों से बात करने लगा और दूसरा पास ही खड़ा था। तभी उदित कार से निकलकर भागा। कॉन्स्टेबल ने उसका पीछा किया और उसे बेरहमी से मारा।
अक्षत के मुताबिक उदित को पीटकर दोनों वहां से चले गए। उदित की हालत खराब हो चुकी थी। उसने हमसे कहा गाड़ी का एसी चला दे और पानी दे दे। इसके बाद वह बेहोश हो गया। हम उसे एम्स ले गए जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने पुलिस की क्रूरता की पुष्टि की। उदित के शरीर पर 16 गंभीर चोटों के निशान थे।
रिपोर्ट में मौत का कारण ‘ट्रॉमेटिक हैमरेजिक पैन्क्रियाटाइटिस’ बताया गया, यानी पैंक्रियाज में लगी चोट से अंदरूनी रक्तस्राव हुआ, जिससे उसकी मौत हो गई। घटना का सीसीटीवी फुटेज भी सामने आया, जिसमें पुलिसकर्मी उदित को बेरहमी से पीटते दिख रहे हैं। उदित के दोस्त अक्षत ने बताया कि पुलिसकर्मियों ने उनसे 10 हजार रुपए की मांग भी की थी।

न्याय के लिए एक साल का संघर्ष 14 जुलाई 2024 को चोरी के आरोप में गिरफ्तार 26 वर्षीय देवा की थाने में बेरहमी से पिटाई के कारण मौत हो गई थी। लेकिन आरोपी थाना प्रभारी संजीत मावई और चौकी प्रभारी उत्तम सिंह कुशवाहा पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। देवा की मां न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को दोनों अफसरों की गिरफ्तारी का आदेश दिया और 15 मई को जांच CBI को सौंप दी।
जब कई महीनों तक CBI ने कोई कार्रवाई नहीं की तो देवा के परिवार की तरफ से अवमानना याचिका लगाई गई। कोर्ट ने 26 सितंबर को अवमानना का नोटिस जारी कर सख्त रुख अपनाया, तब जाकर एजेंसी हरकत में आई और 8 दिनों के भीतर दोनों फरार अफसरों को गिरफ्तार कर लिया।
इस देरी पर जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की बेंच ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर आरोपी आम नागरिक होते, तो कब के जेल में होते।” कोर्ट ने CBI और मध्य प्रदेश सरकार दोनों से जवाब मांगा है कि आदेश का पालन करने में इतनी देरी क्यों हुई?

परिजन बोले- आठ पुलिसकर्मी घर से उठा ले गए थे अशोकनगर के बमूरिया गांव में 9 अक्टूबर को 45 वर्षीय लखन यादव की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि पुलिसकर्मियों ने लखन को न केवल बेरहमी से पीटा, बल्कि उसे पानी में डुबोकर मार डाला। मृतक के भाई अर्जुन सिंह के अनुसार, आठ पुलिसकर्मी, कुछ वर्दी में और कुछ सिविल ड्रेस में, लखन को घर से उठाकर ले गए और डंडों व बेल्ट से उसकी पिटाई की।
लखन की मौत के बाद गुस्साए परिजनों और ग्रामीणों ने बस स्टैंड पर शव रखकर चक्काजाम कर दिया और आरोपी पुलिसकर्मियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की। बढ़ते दबाव के बाद एसपी राजीव मिश्रा ने प्रधान आरक्षक नितिन यादव, विष्णु धाकड़, संजीव साहू और शाहरुख समेत पांच पुलिसकर्मियों को लाइन अटैच कर जांच के आदेश दिए ।

आरआई की पत्नी ने नौकरी से निकालने की धमकी दी यह घटना पुलिस विभाग के भीतर के अमानवीय चेहरे को उजागर करती है। खरगोन में रिजर्व इंस्पेक्टर सौरभ कुशवाहा ने अपने पालतू कुत्ते के गुम हो जाने पर कॉन्स्टेबल राहुल चौहान को बेल्ट और चप्पल से बेरहमी से पीटा। आरोप है कि 23 अगस्त की रात आरआई ने राहुल को अपने आवास पर बुलाया और कुत्ता न मिलने पर गाली-गलौज करते हुए उसकी पिटाई की।
इस दौरान आरआई की पत्नी ने भी उसे चप्पल से मारा और नौकरी से निकलवाने की धमकी दी। राहुल ने अपने शरीर पर पड़े चोट के नीले निशान दिखाते हुए एक वीडियो बनाया, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। शुरुआत में अजाक (SC/ST) थाने ने FIR दर्ज करने से मना कर दिया, लेकिन जब जयस संगठन और परिजनों ने विरोध प्रदर्शन किया, तब जाकर एसपी ने FIR दर्ज करने के आदेश दिए।

पुलिस ने पकड़ा, माफी मंगवाई उज्जैन में अभिषेक चौहान और विक्की राठौर नाम के दो युवकों ने पुलिस को चैलेंज करते हुए एक रील सोशल मीडिया पर अपलोड की। इसमें वे पुलिस को अपशब्द भी कह रहे थे। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने 7 अक्टूबर को दोनों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने उनसे माफी मंगवाते हुए वीडियो भी बनवाया और शाम तक जमानत पर रिहा कर दिया।
अगले ही दिन, 8 अक्टूबर को अभिषेक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इस घटना के बाद परिजनों ने पुलिस पर रुपए मांगने का आरोप लगाते हुए हंगामा किया। वहीं, पुलिस ने इसे प्रेम प्रसंग का मामला बताया और कहा कि अभिषेक ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो अपलोड किया था, जिसमें वह एक लड़की का जिक्र करते हुए आत्महत्या करने की बात कह रहा था।

चिमनगंज मंडी चौराहे पर शव रखकर चक्काजाम करते अभिषेक के परिजन।
एक्सपर्ट बोले- पुलिस संवेदनशीलता बरते
पुलिस के इस रवैये पर हमने पूर्व पुलिस महानिदेशक और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एन.के. त्रिपाठी से बात की। उनका कहना है, ‘पुलिस को कोई भी कार्रवाई करते समय संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। मानवाधिकारों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। सामान्य लोगों और अपराधियों से कैसे व्यवहार करना है, इसकी विशेष ट्रेनिंग दी जाती है।’
वह आगे कहते हैं, ‘अगर कोई अपराधी है, तो उसे बेरहमी से पीटने की बजाय उसके खिलाफ सख्त धाराएं लगानी चाहिए और केस को मजबूत बनाना चाहिए, ताकि उसे कोर्ट से सजा मिले। इससे अपराधियों में कानून का डर पैदा होगा, पीटने से नहीं। पुलिस का काम कानून-व्यवस्था बनाए रखना है। लालच या प्रलोभन में पड़ने के बजाय पुलिस को अपने कर्तव्यों का सख्ती से पालन करना चाहिए।’
महकमे की कार्यप्रणाली में आ रही गिरावट के पीछे त्रिपाठी 5 अहम कारण गिनाते हैं…
- राजनीतिक संरक्षण: कई मामलों में पुलिसकर्मियों को लगता है कि राजनीतिक आका उन्हें बचा लेंगे, जिससे वे बेखौफ हो जाते हैं।
- जवाबदेही का अभाव: विभागीय जांचें अक्सर धीमी और लचर होती हैं, जिससे दोषी पुलिसकर्मियों को समय पर सजा नहीं मिलती।
- अत्यधिक दबाव और खराब वर्क कल्चर: लंबे समय तक काम, छुट्टियों की कमी और राजनीतिक दबाव पुलिसकर्मियों में तनाव और आक्रामकता को बढ़ाता है।
- भ्रष्टाचार सिस्टम का हिस्सा बनना: छोटे-मोटे भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति बड़े अपराधों को जन्म देती है, जैसा सिवनी में हुआ।
- ट्रेनिंग की कमी: आधुनिक पुलिसिंग, मानवाधिकार और मनोवैज्ञानिक दबाव से निपटने की ट्रेनिंग का जमीनी स्तर पर अभाव है।
