वार्ड में अंधेरा क्योंकि आंखों में चुभ रही रोशनी: मरीजों का दर्द…उजाला होते ही आंख अपने आप बंद हो जाती; खुद क्या, किसी को छूने भी नहीं देंगे गन – Bhopal News

वार्ड में अंधेरा क्योंकि आंखों में चुभ रही रोशनी:  मरीजों का दर्द…उजाला होते ही आंख अपने आप बंद हो जाती; खुद क्या, किसी को छूने भी नहीं देंगे गन – Bhopal News


भोपाल के हमीदिया अस्पताल के आई वार्ड में 28 साल का प्रशांत खामोशी से बिस्तर पर लेटा है। उसकी आंखों पर मोटी पट्टी बंधी है, ऊपर से काला चश्मा लगा है। पट्टी के नीचे से झांकती बेचैनी बता रही है कि दर्द सिर्फ आंखों में नहीं, मन में भी है। पास बैठी उसकी बह

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प्रशांत ने भास्कर से बात करते हुए बताया कि जिस पल आंख में वो चीज लगी, सब सुन्न पड़ गया था। तीन-चार दिन ऐसे गुजरे कि सिर्फ जलन थी और दर्द था। कब दिवाली आई और कब निकल गई, पता ही नहीं चला। हर साल दूज पर इंदौर जाकर बहन से टीका लगवाता था, लेकिन इस बार वो सब छोड़कर मेरे पास अस्पताल में बैठी है।

वह रुक-रुककर बोलता है पहले कुछ भी नहीं दिख रहा था। अब थोड़ा बहुत दिखाई देता है… जैसे कोई सामने बैठा है, लेकिन चेहरा धुंधला-सा है। आंखों के आगे अब भी एक सफेद परदा-सा रहता है। डॉक्टरों ने कहा है कि इलाज लंबा चलेगा कम से कम छह से आठ महीने। यह कहानी सिर्फ प्रशांत की नहीं… उन सैकड़ों बच्चों और युवाओं की है, जिनकी इस दिवाली कार्बाइड गन ने आंखें जला दी।

दर्द… तेज रोशनी में आंख अपने आप बंद हो जाती है

प्रशांत ने आगे कहा कि अब धूप में रह नहीं पाता, थोड़ी सी भी रोशनी में आंख अपने आप बंद होने लगती हैं। मैं प्लंबरी और मजदूरी करता हूं, दिन के उजाले में ही काम होता है… अब नहीं लगता, फिर से कर पाऊंगा।

वो धीमी आवाज में जोड़ता है कि काश किसी ने पहले बताया होता कि ये पटाखा नहीं, जाल है। अब तो मैं ही सबको कहूंगा इन चीजों से दूर रहो, वरना आंख ही नहीं, जिंदगी भी अंधेरी हो जाती है।

पिता के सपनों की रोशनी बुझा गया पटाखा

विदिशा के बंटी नगर में दीपावली की रात खुशियों से ज्यादा दर्द छोड़ गई। 20 वर्षीय राजा विश्वकर्मा, जो भोपाल में एमबीए की पढ़ाई कर रहे थे, घर आए थे। मोहल्ले में कुछ लोग देसी गन” बेच रहे थे। बस जिज्ञासा में राजा ने भी खरीद ली। उन्होंने बताया, चार-पांच बार तो गन चली, फिर रुक गई।

जब झांककर देखा कि क्यों नहीं चल रही, तभी अचानक फटी और आग की चिंगारी आंख में जा लगी। राजा की लेफ्ट आई में गंभीर चोट आई। फिलहाल वे विदिशा मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं, कॉर्निया बुरी तरह से प्रभावित हुई है और फिलहाल धुंधला दिखाई दे रहा है।

पिता खेमचंद विश्वकर्मा, जो पेशे से कारपेंटर हैं, उन्होंने कहा कि राजा मेरा बड़ा बेटा है। हमेशा मेहनती रहा है, चाहता हूं पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। अब उसकी आंखों की चिंता ने परेशान कर रखा है।

मां ने रोका था, पर मैंने नहीं सुनी…

गोल पहाड़िया निवासी 16 वर्षीय ओम की जिंदगी कुछ दिन पहले तक बिल्कुल सामान्य थी। स्कूल, दोस्तों की बातें और बड़ा होकर ऑफिसर बनने का सपना सब कुछ चल रहा था। लेकिन दिवाली के अगले ही दिन सोशल मीडिया पर दिखी एक रील ने उसकी जिंदगी बदल दी। ओम बताते हैं कि मेरे छोटे भाई मयंक ने मार्केट से कार्बाइड गन खरीदी थी।

वीडियो देखकर हमने उसमें कैल्शियम कार्बाइड डालकर चलाने की कोशिश की। पहले तो नहीं चली, फिर मैंने नाल में झांककर देखा कि अंदर क्या हुआ है। उसी पल गन अचानक चल गई। इसके बाद बस, आंख के सामने अंधेरा छा गया।

ओम की आंख में कार्बाइड के टुकड़े सीधे जाकर लगे। कॉर्निया पूरी तरह सफेद हो गया है। मां ने बहुत रोका था, कहा था बेटा ये मत चलाना लेकिन मैंने बात नहीं मानी। अब बहुत पछतावा हो रहा है। सब कुछ धुंधला दिखता है, जैसे किसी ने आंखों पर सफेद परदा डाल दिया हो।

11 साल के बच्चे का ‘डॉक्टर’ बनने का सपना, आंख में चोट

भोपाल के राकेश अहिरवार के 11 वर्षीय बेटे आयुष को कार्बाइड गन की रील ने आकर्षित कर लिया था। चौथी क्लास का यह होनहार बच्चा डॉक्टर बनना चाहता था। दिवाली पर उसने पिता से गन लाने की जिद की, और पिता ने बेटे की खुशी में हां कर दी। राकेश ने कहा कि आयुष घर में ही गन चला रहा था, चार बार चली, फिर रुक गई। उसने देखा कि क्यों नहीं चल रही, तभी अचानक फट गई। आग की लपट सीधी उसकी आंख में लगी।

घायल आयुष को पहले पीपुल्स हॉस्पिटल, फिर एम्स भोपाल और अंत में विदिशा मेडिकल कॉलेज ले जाया गया। राकेश ने बताया कि वे मजदूरी करते हैं। उनसे आयुष हमेशा कहता था कि बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा। लेकिन अब वही अपनी आंखों के लिए डॉक्टरों पर निर्भर है।

केस: सोशल मीडिया से सीखा एक्सपेरिमेंट, जिंदगी का सबसे बड़ा सबक बना

लश्करपुर की 16 वर्षीय नेहा अहिरवार विज्ञान की छात्रा है। 11वीं में पढ़ती है। नेहा ने सोशल मीडिया पर एक रील देखी थी जिसमें कार्बाइड गन बनाना बताया गया था। उसे यह प्रयोग दिलचस्प लगा। उसने घर पर ही पानी की बॉटल, लाइटर और 50 रुपए का कार्बाइड लेकर गन बना ली।

जब उसने गन चलाई, तो पहली चार बार सब सामान्य रहा। उससे आवाज भी काफी तेज आई। लेकिन, पांचवीं बार में वो चली ही नहीं। नेहा ने जैसे ही बॉटल में अंदर देखा तो विस्फोट हुआ। आग, गैस और कंकड़ की मार सीधे आंख में लगी।

नेहा ने कहा कि अचानक आंखों के आगे अंधेरा छा गया। पहले से ही बांई आंख कमजोर थी, उस दिन चश्मा नहीं पहना था। अब सब धुंधला दिख रहा है। मैं डॉक्टर बनकर लोगों की आंखों की रोशनी लौटाना चाहती थी, लेकिन अब खुद अपनी रोशनी के लिए तरस रही हूं।

धीरे-धीरे रोशनी लौट रहीं, 10% में 6 माह में होगी स्थिति साफ गांधी मेडिकल कॉलेज की नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अदिति दुबे ने कहा कि उन्होंने इस गन से प्रभावित हुए 37 मरीजों का इलाज अब तक किया है। इसमें ज्यादातर की रोशनी लौट आई है, लेकिन जो महीन कण आंखों के अंदर हैं वो जब कॉर्निया साफ होती तब नजर आएंगे। उनका कोई साइड इफेक्ट होगा या नहीं यह कहना मुश्किल है।

डॉ. एसएस कुबरे बोले- एक गन ने तीन तरह की चोट दी गांधी मेडिकल कॉलेज के ही एक अन्य नेत्र विशेषज्ञ डॉ. एसएस कुबरे कहते हैं कि इस कार्बाइड गन ने आंखों को तीन तरह की चोट दी। एक केमिकल इंजरी हुई है। जिसमें कार्बाइड व अन्य केमिकल आंख में जाने पर स्टेम सेल को नुकसान पहुंचा है। दूसरा मेकेनिकल इंजरी होती है। जिसमें जो कण हैं वो तेज रफ्तार में आकर आंख की पहली परत से टकराते हैं।

कई बार यह आंख में काफी अंदर तक घुस जाते हैं। इसके अलावा थर्मल इंजरी भी होती है। जो विस्फोट होने पर आग निकली या गर्म हवा का झोंका आया। इससे भी आंखों के टिशू को गहरा नुकसान पहुंचता है। इसलिए यह इनके मरीज ज्यादा गंभीर होते हैं। इसमें सबसे जरूरी है कि जल्द से जल्द इलाज मिले। जितना ज्यादा देरी होती है उतना ही अधिक आंखों को नुकसान होने का खतरा रहता है।

इससे जुड़े जरूरी आंकड़े…

  • भोपाल में 189 केस, प्रदेशभर में 300 से ज्यादा।
  • 50% मरीजों में उजाला आंखों में चुभ रहा। रोशनी में सिर्फ सफेद धुंध या गोला दिख रहा।
  • 5 से 10 प्रतिशत पीड़ित ऐसे जिनका 6 माह लंबा इलाज चलेगा। रिकवरी नहीं हुई तो कॉर्निया ट्रांसप्लांट ही अंतिम विकल्प रहेगा।

प्रदेश में घायलों के आधिकारिक आंकड़ों का इंतजार इधर, स्वास्थ्य विभाग की तरफ से प्रदेश में इस कार्बाइड गन से घायल हुए लोगों के आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं। यही कारण है कि कई निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले मरीजों का कोई डेटा ही नहीं। ना ही यह पता है कि इन अस्पतालों में कितने घायल पहुंचे और उन्हें कितनी गंभीर चोट आई।

मध्यप्रदेश में 320 लोग घायल, 80% मासूम

प्रदेश में अब तक 320 लोगों की आंखें देसी गन की चपेट में आ चुकी है। जिनमें 80% मासूम बच्चे हैं। तेज धमाके और आग की लपटों से कई बच्चों की आंख की परतें जल गईं, कुछ की रोशनी आधी तक खो चुकी है।

भोपाल इस हादसे का केंद्र बना है, जहां 189 लोग इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे और 43 की आंखों में सर्जरी करनी पड़ी। डॉक्टरों ने इन मरीजों की आंखों में गर्भाशय की झिल्ली (एग्नियोटिक मेम्ब्रेन) लगाई है ताकि कॉर्निया फिर से बन सके। अगर सुधार नहीं हुआ, तो स्टेम सेल या कॉर्नियल ट्रांसप्लांट ही अंतिम उपाय रहेगा, जो छह महीने तक चलने वाली लंबी प्रक्रिया है।

देशभर में सबसे ज्यादा मामले भोपाल में दर्ज

एम्स, हमीदिया, सेवा सदन और बीएमएचआरसी में रोज ऑपरेशन चल रहे हैं। अकेले सेवा सदन में 63 केस आए हैं, जिनमें से 48 कार्बाइड गन से घायल हुए हैं। देशभर में सबसे ज्यादा मामले भोपाल में दर्ज हुए हैं। इस पर ऑल इंडिया ऑप्थेलमोलॉजिकल सोसाइटी ने भी एडवाइजरी जारी कर राज्यों से रिपोर्ट मांगी है।

आईसीएमआर की पुरानी रिसर्च पहले ही चेतावनी दे चुकी थी। कैल्शियम कार्बाइड और पानी से बनने वाली एसिटिलीन गैस न सिर्फ विस्फोट करती है, बल्कि आंखों की रोशनी तक छीन सकती है। इस बार दीपावली ने उस चेतावनी को भयावह सच बना दिया है।



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