दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक दशमी पर शाजापुर में होने वाले 272 वर्ष पुराने कंस वधोत्सव की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। शहर की इस अनूठी धार्मिक परंपरा में शनिवार शाम को कंस के पुतले को विधि-विधान से सिंहासन पर विराजित कर दिया गया।
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कंस वधोत्सव समिति के संयोजक तुलसीराम भावसार ने बताया कि मथुरा के बाद शाजापुर में इस आयोजन को भव्यता के साथ मनाया जाता है, जिसमें शहर ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों से भी हजारों लोग शामिल होते हैं।
रात 12 बजे होगा कंस का वध
संयोजक भावसार ने बताया कि इस वर्ष 31 अक्टूबर को कंस वध का मुख्य आयोजन होगा। इसके लिए चल समारोह रात 8:30 बजे श्री बालवीर हनुमान मंदिर परिसर से शुरू होगा, जो शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए रात करीब 11 बजे कंस चौराहे पर पहुंचेगा।
कंस चौराहे पर श्रीकृष्ण बने कलाकार और कंस के बीच पारंपरिक वाक् युद्ध होगा। इसके बाद, ठीक रात 12 बजे श्रीकृष्ण द्वारा कंस का वध किया जाएगा। वध के बाद, गवली समाज के युवाओं द्वारा पुतले को लाठियों से पीटते हुए ले जाया जाएगा, जो बुराई के अंत का प्रतीक है।
अत्याचार पर जीत का प्रतीक पर्व
कंस वध की यह परंपरा अन्याय और अत्याचार पर सत्य एवं धर्म की जीत के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। भावसार ने परंपरा की शुरुआत के बारे में बताया कि करीब 272 वर्ष पूर्व गोवर्धननाथ मंदिर के मुखिया स्व. मोतीराम मेहता ने मथुरा में यह आयोजन देखा था। उनकी प्रेरणा से शाजापुर के वैष्णवजन ने इस परंपरा की शुरुआत की।
करीब 100 वर्षों तक यह आयोजन गोवर्धननाथ मंदिर परिसर में ही होता रहा, लेकिन भीड़ बढ़ने के कारण इसे नगर के चौराहे पर किया जाने लगा, जिसे अब ‘कंस चौराहा’ के नाम से जाना जाता है।
निकलेगी देव-दानवों की टोलियां
कंस वध से पूर्व शहर की गलियों में पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे देवों और दानवों की टोलियां निकाली जाती हैं। इस दौरान राक्षस जहाँ हुंकार भरते हैं, वहीं देवों की टोली भी वाकयुद्ध के माध्यम से उन्हें चुनौती देती है। इस भव्य और जीवंत मंचन को देखने के लिए शाजापुर सहित बाहरी जिलों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।