भोपाल के कैंपियन स्कूल (भौरी) के प्रिंसिपल फादर विल्फ्रेड लकड़ा को जिला अदालत ने एक साल की सजा सुनाई है। अदालत ने पाया कि उन्होंने 2011 से 2013 तक स्कूल को सीबीएसई की मान्यता के बिना संचालित किया और 1400 से अधिक बच्चों को सीबीएसई एफिलिएशन के नाम पर द
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फरियादी नितेश लाल ने बताया कि उन्होंने अपने बेटे उदय लाल का दाखिला 2011-12 सत्र में कैंपियन स्कूल में पहली कक्षा में कराया था। अगले ही सत्र में स्कूल प्रबंधन ने अचानक फीस दोगुनी कर दी। जब उन्होंने और अन्य अभिभावकों ने इसका विरोध किया, तो उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। नितेश ने इसकी शिकायत पहले जिला शिक्षा अधिकारी से की थी। लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में उन्होंने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) को लिखित शिकायत की। वहां से जवाब मिला कि स्कूल को सीबीएसई से मान्यता प्राप्त ही नहीं है।
सीबीएसई एफिलिएशन सिर्फ दिखावा था पेरेंट्स की ओर से केस की पैरवी कर रहे एडवोकेट रवि गोयल ने बताया कि कैंपियन स्कूल ने 2011 से 2013 के बीच कुल 1409 छात्रों को एडमिशन दिए। स्कूल की डायरी, वेबसाइट, ब्रोशर और यहां तक कि भवन के बोर्ड पर भी सीबीएसई एफिलिएटेड लिखा हुआ था। जबकि असलियत यह थी कि स्कूल को सीबीएसई की मान्यता 2014 में मिली। वकील गोयल ने कहा कि यह सीधे तौर पर अभिभावकों के साथ धोखाधड़ी थी। उन्होंने बताया कि फीस, एडमिशन और परीक्षा के नाम पर स्कूल ने अभिभावकों से भारी रकम ली, जबकि उसके पास बोर्ड की मान्यता तक नहीं थी।
अभिभावकों की 11 साल लंबी लड़ाई नितेश लाल और गोपाल मुखरैया ने पहले जिला शिक्षा अधिकारी और फिर पुलिस में शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंततः 2014 में उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया। लगभग 11 साल तक केस चलता रहा और आखिरकार न्यायाधीश लोकेश तारण की अदालत ने सोमवार को फादर विल्फ्रेड लकड़ा को एक साल की सजा सुनाई।
नितेश लाल ने कहा कि हमने सिर्फ अपने बच्चों के लिए नहीं, बल्कि उन सभी अभिभावकों के लिए यह लड़ाई लड़ी जो शिक्षा संस्थानों की मनमानी से परेशान हैं। अब उम्मीद है कि ऐसे मामलों में शिक्षा विभाग भी गंभीरता दिखाएगा।
जरूरत पड़ी तो आगे अपील करेंगे एडवोकेट रवि गोयल ने बताया कि उन्हें कोर्ट का विस्तृत आदेश गुरुवार को मिलेगा। अगर सजा पर्याप्त नहीं लगी तो हम उच्च अदालत में अपील करेंगे। यह सिर्फ एक व्यक्ति का मामला नहीं है। यह शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता और बच्चों के भविष्य से जुड़ा मुद्दा है।
कृषि भूमि पर बना स्कूल मामले में एक और गंभीर तथ्य सामने आया कि कैंपियन स्कूल जिस भूमि पर संचालित है, वह कृषि भूमि के रूप में दर्ज है। आरटीआई के माध्यम से मिली जानकारी के मुताबिक, स्कूल ने इस भूमि का उपयोग शिक्षा संस्थान के रूप में करने की अनुमति लिए बिना ही निर्माण कार्य शुरू किया था।
अभिभावकों ने आरोप लगाया कि प्रबंधन ने भूमि उपयोग, एफिलिएशन और फीस संरचना — तीनों में नियमों का उल्लंघन किया।
1400 से ज्यादा अभिभावकों को मिला न्याय कोर्ट के फैसले से लगभग 1500 से अधिक पेरेंट्स राहत महसूस कर रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि यह फैसला एक मिसाल है और आने वाले समय में अन्य स्कूलों के लिए चेतावनी का काम करेगा।
भोपाल जैसे शहर में जहां नामी निजी स्कूल लगातार फीस वृद्धि और नियमों की अनदेखी के आरोपों में घिरे रहते हैं, वहां यह मामला शिक्षा के व्यावसायीकरण पर एक सख्त संदेश माना जा रहा है।
केस की टाइमलाइन
- 2011: स्कूल ने बिना मान्यता छात्रों का एडमिशन शुरू किया
- 2012: फीस दोगुनी, अभिभावकों ने विरोध किया
- 2013: सीबीएसई से मान्यता नहीं थी, खुलासा हुआ
- 2014: केस अदालत में पहुंचा
- 2025: फादर विल्फ्रेड लकड़ा को एक साल की सजा
ऑर्डर कॉपी मिलने के बाद ही तय करेंगे
स्कूल की तरफ से केस लड़ने वाले एडवोकेट रॉबर्ट एंथनी ने कहा कि- आज बिजली न होने के कारण जजमेंट का प्रिंट आउट नहीं निकल सका है। हमें मौखिक रूप से फैसले की जानकारी दी गई है। जो अभी देखने पर ज्युडिश्यरी नहीं बल्कि एडमिनिस्ट्रेटिव निर्णय लग रहा है। कल ऑर्डर कॉपी मिलने के बाद ही आगे क्या करना है ये तय करेंगे।