डिंडोरी में प्रथम न्यायिक मजिस्ट्रेट (वरिष्ठ खंड) कमला उईके ने तत्कालीन जिला कार्यक्रम अधिकारी सहित सात अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। इन अधिकारियों को 29 दिसंबर को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया गया है।
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यह मामला वर्ष 2013 में बैगा आदिवासी गर्भवती महिलाओं के लिए आई सरकारी योजना की राशि में गड़बड़ी से जुड़ा है। परियोजना अधिकारियों ने सोन पापड़ी, मूंगफली के नाम पर पैसे निकाले तो वहीं बजाग़ और डिंडौरी परियोजना कार्यालय में योजना से जुड़े कोई दस्तावेज ही नहीं मिले।
अधिकारियों पर बैगा विकास अभिकरण से चिन्हित 29 गांवों में निवासरत विशेष पिछड़ी जनजाति की गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य परीक्षण और पोषण आहार उपलब्ध कराने के लिए आवंटित 17 लाख 40 हजार रुपए की राशि में हेराफेरी का आरोप है। फरियादी के अनुसार, स्वास्थ्य परीक्षण नहीं कराए गए, बल्कि यह राशि गोद भराई रस्मों पर खर्च दिखाई गई।
नीतू तिलगाम।
जिन अधिकारियों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें तत्कालीन जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास कल्पना तिवारी, सहायक संचालक स्व. गिरीश बिल्लौरे, उदयबती टेकाम, परियोजना अधिकारी डिंडोरी नीतू तिलगाम, बजाग मनमोहन कुशराम, अमरपुर त्रिलोक सिंह भवेदी और स्व. खिल्ली नेटी समनापुर शामिल हैं। इन पर धारा 420/34, 120बी, 406 सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है।

मनमोहन कुशराम।
फरियादी चेतराम राजपूत ने बताया कि उन्होंने पहले जिला प्रशासन से शिकायत की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद जुलाई 2018 में उन्होंने न्यायालय में परिवाद दायर किया, जिसके नौ साल बाद अब यह नोटिस जारी हुआ है।

कल्पना तिवारी।
29 की जगह 7 गांवों में खर्च दिखाया
फरियादी के अधिवक्ता गंभीर दास महंत ने बताया कि विभाग को 29 गांवों की सूची दी गई थी, लेकिन अधिकारियों ने सात परियोजनाओं के 202 गांवों में गोद भराई रस्म के नाम पर 17 लाख 40 हजार रुपए खर्च दिखाए। इसमें डिंडोरी परियोजना के 34 गांवों में 2 लाख 70 हजार, शहपुरा के 19 गांवों में 95 हजार, मेहदवानी के 37 गांवों में 1 लाख 85 हजार, अमरपुर के 38 गांवों में 1 लाख 90 हजार, समनापुर के 28 गांवों में 4 लाख 10 हजार, करंजिया के 23 गांवों में 2 लाख 30 हजार और बजाग के 23 गांवों में 3 लाख 30 हजार रुपए खर्च किए गए।

उदयवती टेकाम।
यह भी बताया गया कि मंगल दिवस कार्यक्रम के तहत गोद भराई कार्यक्रम वैसे भी आंगनवाड़ी केंद्रों में आयोजित किए जाते हैं। तत्कालीन अपर कलेक्टर की जांच में भी इन गड़बड़ियों का खुलासा हुआ था, लेकिन उस समय कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।
बार बार कार्ययोजना प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए लेकिन विभागीय अधिकारियों ने बगैर कार्ययोजना तैयार किए ही जारी राशि का उपयोगिता और पूर्णता प्रमाण पत्र जारी कर दिया।