3 महीने में 2 लाख…तालाब-झील या खेत, ठंड में कहीं भी करें सिंघाड़े की खेती

3 महीने में 2 लाख…तालाब-झील या खेत, ठंड में कहीं भी करें सिंघाड़े की खेती


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Agriculture News: मध्य प्रदेश में भी किसान अब पारंपरिक फसलों से उठकर सिंघाड़ा की खेती करके शानदार मुनाफा कमा रहे हैं. वैसे तो सिंघाड़ा बरसात सीजन की फसल है और पानी में ही उगाया जाता है लेकिन यह फसल ठंड के मौसम में भी बेहतर उत्पादन देती है. थोड़ी समझदारी और सही तकनीक अपनाकर किसान प्रति एकड़ के हिसाब से लाखों रुपये कमा सकते हैं.

सिंघाड़ा एक जलीय फसल है, जो तालाब, झील या पानी भरे खेतों में आसानी से उगाया जाता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह फसल ठंडे मौसम में भी अच्छे से बढ़ती है और बाजार में इसकी भारी मांग रहती है. इसे कच्चा, उबला या सुखाकर पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे यह पूरे साल डिमांड में रहता है.

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सिंघाड़ा की बुआई ठंड के मौसम में अक्टूबर से नवंबर तक की जाती है ताकि दिसंबर-जनवरी में पौधे को पर्याप्त ठंड मिल सके. मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र सहित कई इलाकों में किसान अब सिंघाड़ा की खेती करने लगे हैं. इसके लिए तापमान 20 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे, तो यह सबसे उपयुक्त माना जाता है. कम तापमान में फसल का विकास धीमा हो सकता है, इसलिए शुरुआती चरण में तापमान पर ध्यान देना जरूरी है.

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अगर सिंघाड़ा खेतों में लगाना चाहते हैं, तो आपको सिर्फ अपने खेत के चारों ओर करीब 3-4 फुट ऊंची मेड़ बनानी होगी ताकि पानी बाहर न जाए. यानी अगर आप किसी तरह से अपने खेत में 2-3 फुट पानी रोकने में कामयाब हो जाते हैं, तो खेत में ही सिंघाड़ा उगा सकते हैं.

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सिंघाड़ा की खेती के लिए मिट्टी को पलटकर 10 से 15 दिन तक सूखने दें ताकि पुराने कीट और खरपतवार खत्म हो जाए. इसके बाद गोबर की खाद या जैविक खाद डालकर मिट्टी को पोषक बनाएं. पानी की गहराई शुरू में 25 सेंटीमीटर और बाद में एक मीटर तक रखी जाती है.

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सिंघाड़े की खेती के लिए सबसे पहले नर्सरी तैयार की जाती है. बीजों को गोबर की खाद मिली मिट्टी में बोया जाता है. जब पौधे लगभग 300 मिमी (30 सेंटीमीटर) लंबे हो जाते हैं, तो उन्हें तालाब या पानी भरे खेत में ट्रांसफर कर दिया जाता है.

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बीज मोटे और चमकीले होने चाहिए. बीजों को बुआई से पहले 24 घंटे तक पानी में भिगोकर अंकुरित किया जाता है. एक एकड़ खेत के लिए 80 से 100 किलो बीज पर्याप्त होता है. बीजों को 15-20 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है. शुरुआत में पानी कम रखा जाता है ताकि अंकुरण आसानी से हो सके.

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इस फसल में कभी-कभी फफूंद या कीड़े लग सकते हैं. ऐसे में कार्बेन्डाजिम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का हल्का छिड़काव करना चाहिए. जैविक खेती करने वाले किसान नीम के घोल या लहसुन के अर्क का छिड़काव कर सकते हैं, जिससे फसल सुरक्षित रहती है और पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित नहीं होती.

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सिंघाड़ा की फसल बोने के 90 से 100 दिन बाद तैयार हो जाती है. जब फल का छिलका थोड़ा सख्त और गहरा रंग का हो जाए, तो समझिए फसल तैयार है. कटाई के बाद फलों को पानी में ही रखा जाता है ताकि उनकी ताजगी बनी रहे. इससे फसल खराब नहीं होती और बाजार तक सही हालत में पहुंचाई जा सकती है.

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एक एकड़ में सिंघाड़ा की औसतन 40 से 50 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है. अगर बाजार भाव 2500 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल तक हो, तो किसान एक एकड़ से करीब 1.5 से दो लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं. यह फसल मेहनत कम और मुनाफा ज्यादा देने वाली मानी जाती है.

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फसल को हमेशा पानी में डूबी रहना जरूरी है. पानी का स्तर हमेशा स्थिर होना चाहिए. 15 दिन के अंतराल पर खेत की मिट्टी को हल्का हिलाना चाहिए ताकि पौधों की जड़ें मजबूत बन सकें. साथ ही गोबर की खाद या नीम खली का उपयोग पौधों को आवश्यक पोषक तत्व देने में मदद करता है.

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