ग्वालियर के केदारपुर स्थित लैंडफिल साइट की खस्ता और बदहाल स्थिति को लेकर दायर जनहित याचिका पर शुक्रवार को हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में सुनवाई हुई। अदालत ने शहर में फैली गंदगी और नगर निगम की सुस्त कार्यप्रणाली पर कड़ा रुख अपनाते हुए नाराजगी जताई। क
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सुनवाई के दौरान अदालत ने निर्देश दिए कि सेनिटरी लैंडफिल, कम्प्रेस्ड बायो गैस प्लांट और वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में अब वास्तविक प्रगति दिखाई देनी चाहिए। कोर्ट ने साफ कहा कि ग्वालियर को इंदौर से सीख लेनी चाहिए। इस संबंध में निगम के तकनीकी अधिकारी और अमिकस क्यूरी अधिवक्ताओं को इंदौर भेजने के निर्देश दिए गए ताकि वे वहां जाकर देखें कि कचरा संग्रहण और निपटान की प्रक्रिया कैसे होती है, और फिर उसे ग्वालियर में लागू करें। दौरे का खर्च राज्य सरकार और नगर निगम वहन करेंगे। साथ ही सुझाव दिया गया कि इंदौर के अनुभवी अधिकारी ग्वालियर आकर यहां की कमियों की पहचान करें और सुधार के उपाय बताएं।
2 दिसंबर को अगली सुनवाई
शुक्रवार को केदारपुर लैंडफिल साइट पर कचरा प्रबंधन को लेकर दायर जनहित याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान नगर निगम आयुक्त, डिप्टी कमिश्नर, जलापूर्ति डिवीजन के अधिकारी और स्वच्छ भारत मिशन के मिशन डायरेक्टर अदालत में उपस्थित हुए। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि कचरा निपटान और नई परियोजनाओं से जुड़ी कई प्रक्रियाएं अभी तक पूरी नहीं हो पाई हैं। नगर निगम ने अदालत को जानकारी दी कि अगले एक वर्ष में केदारपुर में जमा पुराना कचरा पूरी तरह से हटा दिया जाएगा। इस मामले में अगली सुनवाई 2 दिसंबर को होगी।
कोर्ट ने कहा– बहुत समय बीत गया, अब देरी न हो
सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि परियोजना से जुड़ी कंसल्टेंट कंपनी ने SIA (स्टेट इंवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी) से क्लीयरेंस मांगी थी, लेकिन यह प्रक्रिया करीब 342 दिनों से लंबित है। कोर्ट ने इसे गंभीर मानते हुए राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए कि सिया से अनुमति जल्द प्राप्त कराई जाए ताकि परियोजना शुरू की जा सके।अदालत ने कहा कि राज्य सरकार समन्वय स्थापित कर आवश्यक क्लीयरेंस सुनिश्चित करे, जिससे लैंडफिल साइट शीघ्र संचालित हो सके। कोर्ट ने टिप्पणी की- “बहुत समय लग चुका है, अब और देरी नहीं होनी चाहिए।”
बायो गैस प्लांट का टेंडर तीन बार फेल,
कम्प्रेस्ड बायो गैस स्टेशन को लेकर नगर निगम ने अदालत में स्वीकार किया कि पहले जारी किए गए तीनों टेंडर असफल रहे। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि तीसरी कॉल के दस्तावेज तक प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। अदालत ने निर्देश दिया कि तुरंत नई टेंडर प्रक्रिया शुरू की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि कार्य केवल कागज़ों में सीमित न रहे, बल्कि वर्क ऑर्डर जारी होने तक आगे बढ़े।
अदालत ने यह भी पाया कि वेस्ट टू एनर्जी परियोजना पर अब तक कोई वास्तविक कार्रवाई नहीं हुई है। इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कोर्ट ने संबंधित कंसल्टेंट को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के आदेश दिए। साथ ही आरपीएफ (Request for Proposal) और एग्रीमेंट दस्तावेज़ तत्काल तैयार करने के निर्देश भी दिए गए।