छत्तीसगढ़ का भाग बनते-बनते रह गया था बालाघाट… फिर बदली जिले की किस्मत, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी

छत्तीसगढ़ का भाग बनते-बनते रह गया था बालाघाट… फिर बदली जिले की किस्मत, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी


Balaghat History: आज से ठीक 69 साल पहले 1 नवंबर 1956 को राज्यों का पुनर्गठन हुआ था. तब 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का जन्म हुआ. उसमें से एक है मध्य प्रदेश. इसी के साथ मध्य प्रदेश का हिस्सा बालाघाट भी बना. 1867 में बना बालाघाट उससे पहले सेंट्रल प्रोविजन्स का हिस्सा था. इसकी राजधानी नागपुर हुआ करती थी. तब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ एक साथ थे. ऐसे में बालाघाट का ज्यादातर हिस्सा छत्तीसगढ़ी और हिंदी बोली बोलते थे. ऐसे में बालाघाट महाराष्ट्र के बजाय मध्य प्रदेश में शामिल हुआ. लेकिन उसके ठीक 44 साल बाद मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ अलग हुआ. तब इसके लेकर मांग थी कि बालाघाट को छत्तीसगढ़ में शामिल किया जाए. ऐसे में हम आपको उस किस्से के बारे में बता रहे हैं.

बालाघाट कैसे बना?
बालाघाट का गठन साल 1867 में हुआ था. उस समय महाराष्ट्र के भंडारा जिले से कुछ हिस्सा और मंडला और सिवनी से कुछ हिस्सा लिया. ऐसे में बालाघाट का निर्माण हुआ था. इसका मुख्यालय बूढ़ा या बुरा कहलाता था. बालाघाट जिले की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, बालाघाट नाम की उत्पत्ति के पीछे पहाड़ी मार्गों को माना जाता है. दरअसल, यहां मुख्य तौर पर 12 घाट थे. इसमें मासेन घाट, कंजई घाट, रणराम घाट, बस घाट , डोंगरी घाट, सेलन घाट, भिसाना घाट, सालेटेरी घाट, डोंगरिया घाट, कवारगढ़ घाट, अहमदपुर घाट, तेपागढ़ घाट महत्वपूर्ण हैं. ऐसे में जिले का नाम बारहघाट प्रस्तावित किया गया था, लेकिन बाद में उच्चारण के दौरान बालाघाट बन गया.

बालाघाट में अनोखी संस्कृति
बालाघाट जिले में अनोखी संस्कृति है. यह महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सीमा से लगा हुआ है. ऐसे में यहां पर हिंदी के अलावा मराठी और छत्तीसगढ़ी बोली बोलते हैं. वहीं, यहां पर मंडई की संस्कृति है, जो महाराष्ट्र के कुछ हिस्से और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्से में भी दिखती है. यहां का खान-पान और रहन-सहन में दोनों राज्यों का टच दिखता है.

बालाघाट छत्तीसगढ़ जाते जाते कैसे रह गया
इतिहासकार और रिसर्च स्कॉलर डॉक्टर विपिन बिहारी शांडिल्य के मुताबिक, मध्य प्रदेश विधानसभा ने सन 1998 में छत्तीसगढ़ बनाने के लिए एक डेलिगेशन बालाघाट भेजा था. छत्तीसगढ़ के रायपुर से बस यात्रा कर बालाघाट पहुंचा. यहां तुरकर भवन में एक बैठक हुई, जहां पर छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल, चरणदास महंत, सत्यनारायण शर्मा सहित कई बड़े नेता आए थे. यहां विधायकों और सांसद के साथ बैठकर बालाघाट जिले को छत्तीसगढ़ में विलय करने के लिए मान जाए. तब बैहर विधायक गणपत सिंह उईके और खैरलांजी विधायक डोमन सिंह नगपुरे बालाघाट के छत्तीसगढ़ के विलय के पक्ष में थे. लेकिन तब के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हर हाल में बालाघाट को छोड़ना नहीं चाहते थे. ऐसे में उनके हस्तक्षेप के बाद बालाघाट मध्य प्रदेश में ही रह गया.

इसलिए नजर थी बालाघाट पर
छत्तीसगढ़ के नेता चाहते थे कि बालाघाट उनके साथ चले जाए. मध्य प्रदेश हर हाल में बालाघाट को नहीं छोड़ना चाहता था. ऐसा इसलिए है क्योंकि बालाघाट जिले के 53% भू-भाग पर जंगल है. वहीं, मैंगनीज और कॉपर का भंडार है. इसके अलावा यहां पर धान की खेती होती है. ऐसे में राजस्व के नजरिये से बालाघाट एक अहम जिला है.

अगर छत्तीसगढ़ में शामिल होते तस्वीर कुछ अलग होती
इतिहासकार वीरेंद्र सिंह गहरवार का मानना है कि अगर बालाघाट जिला छत्तीसगढ़ में होता तो जिले की तस्वीर ही कुछ अलग होती है. यहां पर कई सुविधाएं मिलती है. वहीं, राजधानी रायपुर भी पास पड़ती है. ऐसे में यहां के लोगों को कई तरह की सुविधाएं मिलती. यहां से भोपाल-इंदौर पढ़ने जाते हैं, बच्चों के लिए न तो कनेक्टिविटी है और न ही यातायात के अच्छे साधन हैं.



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