खरगोन. देवउठनी एकादशी से मांगलिक कार्यों के साथ मां नर्मदा की परिक्रमा यात्रा भी शुरू हो गई है. अब नर्मदा किनारे फिर से ‘नमर्दे हर’ की गूंज दूर-दूर तक सुनाई देगी. देश-विदेश से हर साल लाखों श्रद्धालु इस पवित्र यात्रा में शामिल होते हैं. कोई पैदल, कोई समूह में तो कोई वाहन से मां नर्मदा की परिक्रमा करता है लेकिन यात्रा शुरू करने से पहले कुछ जरूरी सामान अपने साथ रखना बेहद जरूरी होता है, जिनके बिना परिक्रमा अधूरी मानी जाती है.
धर्म शास्त्रों के अनुसार, भारत में गंगा, यमुना, गोदावरी जैसी कई पवित्र नदियां हैं लेकिन नर्मदा इकलौती ऐसी नदी है, जिसकी पूरी परिक्रमा की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि गंगा में स्नान से जितना पुण्य मिलता है, वहीं पुण्य नर्मदा के सिर्फ दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है. यही वजह है कि हर साल लाखों श्रद्धालु मां नर्मदा की परिक्रमा करने पहुंचते हैं.
देवउठनी एकादशी से शुरुआत
बरसात के चार महीने परिक्रमा रोक दी जाती है. जैसे ही देवउठनी एकादशी आती है, वैसे ही नर्मदा यात्रा का शुभारंभ होता है. इस साल एक नवंबर से फिर हजारों श्रद्धालु नर्मदा के दोनों तटों पर पैदल यात्रा पर निकल पड़े हैं लेकिन हर परिक्रमावासी को अपने साथ कुछ जरूरी सामान रखना बेहद जरूरी होता है, जिनके बिना यात्रा अधूरी मानी जाती है. स्वामी ओंकारानंद जी की पुस्तक ‘नर्मदा प्रदक्षिणा’ में तीन वस्तुओं का अलग-अलग महत्व बताया गया है.
1. हर परिक्रमावासी को अपने साथ एक पारदर्शी पानी की बोतल रखनी अनिवार्य है. यात्रा की शुरुआत में इस बोतल में नर्मदा का जल भरा जाता है. जब रास्ते में नदी के दर्शन या स्नान संभव नहीं होते, तब इसी जल के छींटे डालकर नर्मदा स्नान का पुण्य प्राप्त किया जाता है. इसी बोतल में जल परिवर्तन भी होता है.
2. परिक्रमा वासियों को अपने साथ एक कमंडल भी रखना होता है. परिक्रमा के दौरान जल से जुड़ा हर कार्य, जैसे- पूजा, पानी पीना, खाना बनाना, शौच के लिए जाना या अन्य किसी भी कार्य के लिए इसी कमंडल का इस्तेमाल किया जाता है. किसी दूसरे का दिया पात्र उपयोग नहीं करते हैं.
3. जरूरी सामान में दंड बहुत महत्वपूर्ण वस्तु मानी जाती है. इसे परिक्रमावासी का ‘तीसरा पांव’ कहा जाता है. यह चलने में सहारा तो देता ही है, साथ ही यह व्यास दंड भी कहलाता है. मान्यता है कि महर्षि वेदव्यास ने इसी दंड से कभी नर्मदा की धारा का रुख मोड़ दिया था ताकि उत्तर और दक्षिण तट एक साथ जुड़ सकें और यज्ञ संपन्न हो सके.
हर पड़ाव पर ‘नमर्दे हर’ की गूंज
बता दें कि नर्मदा परिक्रमा केवल एक यात्रा नहीं बल्कि आस्था, संयम और अध्यात्म का मार्ग है. भक्त दिन-रात पैदल चलते हुए नर्मदा किनारे के गांवों, जंगलों और घाटों से गुजरते हैं. हर पड़ाव पर ‘नमर्दे हर’ की गूंज के साथ मां नर्मदा की महिमा गाई जाती है. दंड, कमंडल और नर्मदा जल साथ रखने का अर्थ केवल धार्मिक परंपरा निभाना नहीं बल्कि यात्रा में अनुशासन और श्रद्धा बनाए रखना भी है.