न पैसा, न स्पॉन्सर… जमीन पर सोना और प्लास्टिक के बर्तन में दाल, फर्श से अर्श तक कैसे पहुंचा भारतीय महिला क्रिकेट? गावस्कर की बहन ने खोला राज

न पैसा, न स्पॉन्सर… जमीन पर सोना और प्लास्टिक के बर्तन में दाल, फर्श से अर्श तक कैसे पहुंचा भारतीय महिला क्रिकेट? गावस्कर की बहन ने खोला राज


ICC Womens World Cup 2025 Final: भारत और साउथ अफ्रीका के बीच ICC विमेंस वर्ल्ड कप 2025 का फाइनल मुकाबला आज दोपहर 3 बजे से नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में खेला जाएगा. विमेंस वर्ल्ड कप के 52 साल के इतिहास में पहली बार भारत के पास खिताब जीतने का मौका है. भारतीय महिला क्रिकेट ने बहुत मुश्किलों से फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है. पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर की छोटी बहन नूतन गावस्कर ने भारतीय महिला क्रिकेट में आए बहुत बड़े-बड़े बदलावों पर चर्चा की है.

फर्श से अर्श तक कैसे पहुंचा भारतीय महिला क्रिकेट?

1973 में गठित भारतीय महिला क्रिकेट संघ (WCAI) की पूर्व सचिव नूतन गावस्कर ने कहा, ‘न पैसा था, न स्पॉन्सर और विदेशी दौरों पर मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता था.’ महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर की छोटी बहन नूतन ने याद करते हुए कहा कि कैसे भारतीय महिला क्रिकेट टीम की खिलाड़ी कभी सिर्फ जुनून और गर्व के लिए खेलती थीं. उन्होंने कहा, ‘हमें बताया गया था कि महिला क्रिकेट कोई पेशेवर खेल नहीं है, इसमें कोई पैसा नहीं था क्योंकि हमें पेशेवर नहीं माना जाता था.’ 

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20 लोगों के लिए चार वॉशरूम होते थे

नूतन गावस्कर ने 1970 और 1980 के दशक के बारे में बात करते हुए अंतर राज्यीय मैचों को याद किया, जहां कुछ टीमों के पास सिर्फ तीन बल्ले होते थे. ट्रेन की यात्रा सामान्य डिब्बों में होती थीं और महिलाएं अपनी जेब से ट्रेन का किराया देती थीं. नूतन गावस्कर ने कहा, ‘भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ट्रेन यात्रा सामान्य डिब्बों में होती थीं और महिलाएं अपनी जेब से ट्रेन का किराया देती थीं. कमरे के साथ टायलेट एक लग्जरी थी. अक्सर टीमें ‘डॉरमेट्री’ में रहती थीं, जहां 20 लोगों के लिए चार वॉशरूम होते थे और अकसर वे साफ नहीं होते थे. दाल एक बड़े प्लास्टिक के बर्तन में परोसी जाती थी, क्योंकि स्थानीय संघ बहुत कम बजट में टूर्नामेंट आयोजित करती.’

आज बिजनेस क्लास में यात्रा करती है विमेंस टीम

नूतन गावस्कर खुद राष्ट्रीय स्तर की क्रिकेटर थीं. नूतन गावस्कर ने कहा, ‘कोई मैच फीस नहीं थी क्योंकि संघ के पास पैसे नहीं थे. मुझे पता है कि 2005 में दक्षिण अफ्रीका में हुए महिला वर्ल्ड कप में उप विजेता रही भारतीय टीम को पुरस्कार राशि मिली थी, लेकिन मुझे याद नहीं कि उन्हें प्रोत्साहन राशि मिली थी या नहीं. आज मुझे सबसे ज्यादा खुशी तब होती है जब मैं महिला टीम को बिजनेस क्लास में यात्रा करते, फाइव स्टार होटलों में रुकते और वो सारी सुविधाएं पाते हुए देखती हूं जो उन्हें उनकी कड़ी मेहनत के लिए मिलनी चाहिए.’



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