आंखें खुली रह गईं… जब सबके सामने आई सुनीता, 3 राज्यों में वांटेड, 14 लाख की इनामी नक्सली की गजब कहानी

आंखें खुली रह गईं… जब सबके सामने आई सुनीता, 3 राज्यों में वांटेड, 14 लाख की इनामी नक्सली की गजब कहानी


Balaghat News: मध्य प्रदेश के बालाघाट में नक्सली आत्मसमर्पण, पुनर्वास सह राहत नीति 2023 बनने के 26 महीने बाद पहली बार किसी नक्सली ने सरेंडर किया है. 33 साल बाद सरेंडर करने वाली नक्सली सुनीता ओयाम बीजापुर की रहने वाली है. सरेंडर करने वाली नक्सली सुनीता की उम्र महज 23 साल है. 2 अक्टूबर की रात 8 बजे पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और नक्सली सुनीता से इंसास राइफल के साथ सरेंडर कराया था.

जब सुनीता कंट्रोल रूम के प्रेस कॉन्फ्रेंस हॉल में पहुंची, तब वहां मौजूद लोगों की आंखें खुली की खुली रह गईं. 3 राज्यों की मोस्ट वांटेंड नक्सली और 14 लाख की इनामी सुनीता दुबली-पतली सी लड़की थी. उसका कद 5 फीट भी नहीं था. आंखों में मासूमियत और चेहरे पर खौफ था. वह नक्सलवाद के दलदल में कैसे आ गई? इसके पीछे एक बेहद मार्मिक कहानी है. दरअसल, सुनीता का बचपन में ही अपहरण कर लिया गया था.

पिता थे नक्सल संगठन में सदस्य
सुनीता ओयाम का जन्म छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के भैरमगढ़ तहसील के अंतर्गत आने वाले गोमवेटा गांव में हुआ. पिता बिसरु ओयाम पहले ही नक्सल संगठन के संगम सदस्य थे. ऐसे में सुनीता पर बचपन से ही नक्सलवाद का साया रहा. वह कभी स्कूल भी नहीं गई. उसका बचपन उस माड़ के जंगलों में बीता, जिसे नक्सलवाद का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता है.

बचपन में ही आ गए हाथों में हथियार
सुनीता महज 20 साल की थी जब वह नक्सल संगठन से जुड़ी. नक्सलियों ने उसके परिवार को डरा धमकाकर संगठन ज्वाइन करवाया था. साल 2022 में नक्सल संगठनों से जुड़ने के बाद 6 महीने तक हथियार चलाने और नक्सल विचारधारा की ट्रेनिंग ली. इसके बाद वह सक्रिय नक्सली बन गई. शुरुआती दिनों में वह एमएमसी जोन यानी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ प्रभारी और सेंट्रल कमेटी के मेंबर रामदेर की गार्ड बन गई.

तीन साल में कभी माता-पिता से नहीं मिली
सुनीता के पिता बिसरू ओयाम ने बताया, तीन साल पहले नक्सली जबरन परेशान करते थे. ऐसे में वे सुनीता को उठा ले गए. वहीं, कुछ समय बाद सुनीता की छोटी बहन को भी ले जाना चाहते थे. बड़ी बेटी से मिलने नहीं दिया गया. ऐसे में उन्होंने छोटी बेटी संगठन में भेजने से इंकार कर दिया. नक्सल संगठनों में तीन साल तक काम करने के बाद सुनीता ने जंगल की जिंदगी छोड़ मुख्य धारा में लौटने का फैसला किया.

हाल ही में आई थी बालाघाट
पुलिस ने बताया, वह हाल के दिनों में रामदेर के ग्रुप के 11 सदस्यों के साथ बालाघाट आई थी. सूत्रों के मुताबिक, सुनीता के साथ उसके रिश्ते को लेकर नक्सल समूह में उसकी बदनामी हो रही थी. ऐसे में सुनीता ने सरेंडर करने का निर्णय लिया. लोकल 18 ने एसपी आदित्य मिश्रा से इस बात की सत्यता के बारे में पूछा और उन्होंने इस बात से इनकार नहीं किया.

संगठन से बचकर आई सुनीता
31 अक्टूबर की सुबह-सुबह वह चुपचाप अपने हथियार, वर्दी और बैग लेकर समूह से अलग हो गई. पुलिस कैंप के पास पहुंचने से पहले उसने अपनी यूनिट की नजरों से बचने के लिए अपनी इंसास राइफल, मैगजीन और माओवादी किट जंगल के एक ढेर में छिपा दी. फिर वह जंगल से होते हुए कई किलोमीटर पैदल चलकर चौरिया हॉक फोर्स कैंप पहुंची, जहां उसने आत्मसमर्पण करने की इच्छा जताई. वह 1 अक्टूबर की शाम को लांजी थाना क्षेत्र के चौरिया कैंप जाकर हॉक फोर्स के सहायक सेनानी रूपेंद्र धुर्वे के सामने सरेंडर किया.

वीडियो कॉल पर मां-बाप को देख रोने लगी 
उसके हाथ में एक कागज था, जिसमें सुनीता ने अपना नाम सुनीता और जिले का नाम बीजापुर लिखा था. शुरुआती पूछताछ की तब उसने अपने गांव और माता पिता के बारे में बताया. फिर बीजापुर पुलिस से संपर्क किया गया. फिर वहां के थाना प्रभारी ने गांव के सरपंच से बात कराई. वहां कि पुलिस ने पहली बार जब सुनीता की बात माता-पिता से कराई तो वह रोने लगी.

अब बेहद खुश सुनीता
बालाघाट से 700 किलोमीटर दूर बीजापुर से सुनीता के पिता बिसरू ओयाम, मां, चाची और गांव के सरपंच के साथ आई. जब वह उनसे मिलकर काफी खुश हैं. उनके माता पिता ने अपील की कि दूसरे नक्सली भी सरेंडर करें और गांव लौट आएं. एसपी आदित्य मिश्रा ने बताया कि नक्सली अपनी खोखली विचारधारा के तहत लोगों को बहकते हैं और संगठन से जोड़ते हैं. सुनीता के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. अब अब बाकी नक्सलियों को भी हथियार छोड़कर मुख्य धारा में आना चाहिए.



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