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Agri Tips: खेती में नुकसान की सबसे बड़ी वजह मौसम और कीटों का प्रकोप होती है, लेकिन अब किसान ऐसी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं जो दोनों से पूरी तरह सुरक्षित हैं. औषधीय पौधों की खेती किसानों के लिए नई उम्मीद बनकर उभरी है, जहां तुलसी से लेकर लेमन ग्रास तक की डिमांड अंतरराष्ट्रीय बाजारों में लगातार बढ़ रही है.
खेतों में अक्सर फसलों को पशुओं या कीट-पतंगों से नुकसान पहुंचना आम बात है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. लेकिन सोचिए अगर ऐसी खेती हो जो ना मौसम की मार झेले और ना ही कीटों का डर सहे तो ऐसे में किसानों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं होगी.

जानकारों के अनुसार मेडिसिनल प्लांट्स यानी औषधीय पौधों की खेती किसानों के लिए बिना किसी जोखिम के लाखों की कमाई का रास्ता खोलती है. इनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी डिमांड रहती है, जिससे किसान न सिर्फ स्थानीय बल्कि वैश्विक बाजार से भी जुड़ सकते हैं.

तुलसी, लेमन ग्रास, मेंथा, शतावर, मूसली और मोरिंगा जैसे औषधीय पौधों की मांग विश्व के कई देशों में लगातार बढ़ रही है. इनका उपयोग दवाओं, कॉस्मेटिक्स और हर्बल उत्पादों के निर्माण में किया जाता है.

कृषि वैज्ञानिक मीनाक्षी वर्मा ने लोकल 18 से बातचीत में कहा कि औषधीय पौधों की खेती किसानों को चौतरफा लाभ देती है, जिसमें न कीटों का प्रकोप न मौसम की चिंता और न ही पशुओं के आतंक का डर.

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इन पौधों की गंध और स्वाद ऐसा होता है कि न तो पशु इन्हें चरते हैं और न ही कीट इन पर हमला करते हैं. इससे फसलें सुरक्षित रहती हैं और उत्पादन में स्थिरता बनी रहती है.

औषधीय फसलों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनके लिए किसानों को बाजार तक जाने की जरूरत नहीं पड़ती. व्यापारी खुद खेतों और गांवों तक आकर खरीदारी करते हैं जिससे किसानों का समय और मेहनत दोनों बचते हैं.

सतना जिले के ग्राम पवैया के किसान चंदन सिंह पिछले 25 साल से औषधीय फसलों की खेती कर रहे हैं. मेंथा, अश्वगंधा, तुलसी, लेमन ग्रास और सफेद मूसली जैसी फसलों से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है.

औषधीय पौधों की खेती ने किसानों को गांव की सीमाओं से निकालकर ग्लोबल प्लेटफॉर्म तक पहुंचाया है. कम लागत, कम जोखिम और ज्यादा आमदनी ने इसे आधुनिक खेती का भविष्य बना दिया है.