सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार से पूछा है कि राज्य के महाधिवक्ता (एजी) कार्यालयों में अब तक आरक्षण अधिनियम 1994 क्यों लागू नहीं किया गया। जस्टिस एम. सुंद्रेश और जस्टिस सतीष शर्मा की पीठ ने सरकार को निर्देश दिया है कि दो सप्ताह में ओबीसी, एससी, एस
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यह मामला ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया। अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व वरुण ठाकुर ने दलील दी कि इन पदों का वेतन राज्य के खजाने से दिया जाता है, इसलिए आरक्षण अधिनियम का पालन हो।
एससी-एसटी, ओबीसी आबादी 88%, पर इनका 10-15% प्रतिनिधित्व
1. प्रतिनिधित्व बनाम आबादी
- राज्य में ओबीसी, एससी व एसटी की आबादी करीब 88% हैं। महिलाएं 49.8% हैं।
- मध्यप्रदेश के 3 महाधिवक्ता कार्यालयों जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर और सुप्रीम कोर्ट पैनल में मिलाकर 150 शासकीय अधिवक्ता पद स्वीकृत हैं। राज्य में पैनल और विभागीय अधिवक्ताओं सहित कुल पदों की संख्या लगभग 1,800 है।
- ओबीसी, एससी व एसटी वर्गों का यहां प्रतिनिधित्व 10-15% ही।
2. कानूनी स्थिति : मप्र लोक सेवा (आरक्षण अधिनियम), 1994 के अनुसार, ‘राज्य निधि से वेतन पाने वाले सभी पदों पर आरक्षण लागू होना अनिवार्य है।’ सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि सरकार से वेतन पाने वाली हर नियुक्ति में आरक्षण लागू होगा। 3. सरकारी मुकदमों में यही अधिवक्ता राज्य का पक्ष तय करते हैं। विविधता कम होगी, तो न्यायिक दृष्टिकोण एकतरफा हो सकता है। पंचायत और नौकरियों में महिलाओं को 33% आरक्षण। लेकिन विधि-सेवा में ऐसा नहीं।