12 जनवरी 1953 को हुआ था शास्त्री ब्रिज का उद्घाटन: इतिहासकार बोले- लाल बहादुर शास्त्री आए थे; ब्रिज से गायब हो गया संगमरमर का बोर्ड – Indore News

12 जनवरी 1953 को हुआ था शास्त्री ब्रिज का उद्घाटन:  इतिहासकार बोले- लाल बहादुर शास्त्री आए थे; ब्रिज से गायब हो गया संगमरमर का बोर्ड – Indore News


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दरअसल, रविवार को शास्त्री मार्केट के पास शास्त्री ब्रिज की रोड में 6 फीट चौड़ा और 5 फीट गहरा गड्ढा चूहों के कारण हो गया था। उसे तुरंत मटेरियल डालकर बंद किया गया। सोमवार को जनकार्य प्रभारी राजेंद्र राठौर ने वहां की स्थिति देखी। जीएसआईटीएस और नगर निगम के इंजीनियर्स से ब्रिज का निरीक्षण कराया। उनके कहे अनुसार गड्ढे की मिट्‌टी को वापस निकाला गया। वहां नए ढंग और तकनीक से गड्ढे का भराव किया। साथ ही जहां सुधार की जरूरत होगी उसे भी ठीक कराया जाएगा, ब्रिज सुधार के लिए 40 लाख रुपए मंजूर किए गए है।

शास्त्री ब्रिज पर उस दौर में चलती थी साइकिलें, तांगे, बग्घी और चंद कारें। फोटो – जफर अंसारी।

12 जनवरी 1953 को हुआ उद्घाटन इतिहासकार जफर अंसारी ने दैनिक भास्कर को बताया शास्त्री ब्रिज इंदौर शहर ही नहीं बल्कि मध्यभारत के प्रारंभिक रेलवे फ्लाई ओवर ब्रिज में से एक है। ब्रिज को बनने में करीब ढाई साल का समय लगा था, जिसे शहर के ही लोकल इंजीनियरों और ठेकेदारों द्वारा बनाया गया था। 12 जनवरी 1953 में ब्रिज का उद्घाटन लाल बहादुर शास्त्री द्वारा किया गया था, उस समय वे परिवहन मंत्री थे। इसी वजह से इस ब्रिज का नाम शास्त्री ब्रिज भी पड़ा था। इस ब्रिज ने इंदौर शहर की रीड का काम किया। इस ब्रिज का निर्माण मध्यभारत की सबसे बड़ी योजनाओं में से एक था।

इंदौर के इतिहासकार जफर अंसारी।

इंदौर के इतिहासकार जफर अंसारी।

उन्होंने बताया कि 50-60 के दशक में इस ब्रिज से दिनभर में गिनती की ही कारें गुजरा करती थी। उस समय ब्रिज से अमूमन साइकिलें, तांगे और बैल गाड़ियां ही गुजरा करती थी। ट्रैफिक भी बड़ा सुगम और प्रदूषण मुक्त था। शास्त्री ब्रिज के बनने के पहले गांधी हाल के सामने से रीगल से होते हुए एक रास्ता था, जिस पर रेलवे सिग्नल पर भीड़ हो जाया करती थी। रीगल के नजदीक ही होलकर रियासत का ऑक्टेयर नाका हुआ करता था, रियासत के जमाने में व्यापार के लिए यहां पर नाका देना होता था।

1952 में स्टीम लोकोमोटिव की ट्रायल शास्त्री ब्रिज के नीचे से ली जा रही है। इस समय शास्त्री ब्रिज का निर्माण जोरों से हो रहा है। करीब ढाई साल में ये ब्रिज तैयार हुआ था।

1952 में स्टीम लोकोमोटिव की ट्रायल शास्त्री ब्रिज के नीचे से ली जा रही है। इस समय शास्त्री ब्रिज का निर्माण जोरों से हो रहा है। करीब ढाई साल में ये ब्रिज तैयार हुआ था।

संगमरमर का बोर्ड लगा था, हो गया गायब वे बताते हैं कि शास्त्री ब्रिज के ऊपर (बीच में) संगमरमर का एक बोर्ड लगा था, जिसका मेटल का फ्रेज आज भी ब्रिज पर लगा हुआ है। इस बोर्ड पर लिखा था लाल बहादुर शास्त्री पुल, मगर आज ये पत्थर यहां से गायब है। शास्त्री ब्रिज के निर्माण के समय महात्मा गांधी प्रतिमा स्थापित नहीं थी। उन्होंने बताया कि वर्तमान एसपी ऑफिस के पास शास्त्री ब्रिज के एक हिस्से को चौड़ा किया गया था।

शास्त्री ब्रिज के ऊपरी हिस्से पर दशकों तक एक ट्रैफिक सिपाही ट्रैफिक को कंट्रोल करता था, क्योंकि उस समय स्टेशन की ओर जाने के लिए रास्ता खुला था। शास्त्री ब्रिज के आसपास रीगल सिनेमा, मिल्की वे, यशवंत एवं बम्बिनो टॉकिज थे। इसलिए इसके आसपास अच्छी खासी चहल-पहल होती थी। ब्रिज के चारों ओर हरियाली से लबालब इलाका था। शास्त्री ब्रिज के बनने के बाद इसके नजदीक शास्त्री मार्केट बनाया गया जहां बेहद खूबसूरत एक बावड़ी थी जिसे बंद कर दिया गया।

80- 90 के दशक तक इंदौर के कुछ स्कूलों के स्टूडेंट्स तागों से इसी ब्रिज से होकर स्कूल जाया करते थे। 90 के दशक में इंदौर में टेम्पो का चलन बड़ा और यह यातायात का मुख्य साधन था। शास्त्री ब्रिज पर इन टेम्पो की सांस फूल जाया करती थीं और कई बार टेम्पो चढ़ते समय यहां रुक जाया करते थे।

1953 का यह दुर्लभ चित्र वर्तमान कमिश्नर कार्यालय के सामने से लिया गया है, जिसमें शास्त्री मार्केट नहीं दिखाई दे रहा है कुछ ही साइकिल एवं तांगे दिखाई दे रहे हैं। फोटो -जफर अंसारी

1953 का यह दुर्लभ चित्र वर्तमान कमिश्नर कार्यालय के सामने से लिया गया है, जिसमें शास्त्री मार्केट नहीं दिखाई दे रहा है कुछ ही साइकिल एवं तांगे दिखाई दे रहे हैं। फोटो -जफर अंसारी

जालियों के पीछे छिप गया नाम शास्त्री ब्रिज की बात करें तो यहां पर ब्रिज के दोनों तरफ संगमरमर के दो बोर्ड लगे है। जिसमें एक बोर्ड पर अंग्रेजी में लिखा है इस ब्रिज का उद्घाटन लाल बहादुर शास्त्री द्वारा किया गया है। वहीं दूसरी तरफ बोर्ड पर इस ब्रिज को बनाने वालों के नाम लिखे हैं, लेकिन उनके नाम भी वक्त के साथ दिखना बंद हो गए हैं।

ब्रिज के दोनों तरफ जहां ये बोर्ड लगे है वहां पर लोहे की जालिया रखी है, जिसके कारण ये दोनों बोर्ड नजर नहीं आते है। वहीं ब्रिज के ऊपर आने के लिए दोनों तरफ सीढ़ियां भी बनी हैं, हालांकि देखरेख के अभाव में इनकी हालत भी खराब हो रही हैं। सीढ़ियां जगह-जगह से टूट गई हैं।

सीढ़ियों पर गंदगी भी फैली नजर आती है। हालांकि आज भी कई लोग इन सीढ़ियों का इस्तेमाल ब्रिज पर चढ़ने उतरने के लिए करते हैं। इतिहासकार जफर अंसारी ने कहा कि अगर ब्रिज की अच्छी तरीके से मरम्मत कर दी जाए तो ये आने वाले दो दशकों तक शहर को अपनी सेवाएं दे सकता है। चूंकि काफी अरसे से इसकी मरम्मत नहीं हुई है, इसलिए इसके आसपास झाड़ियां भी उग आई हैं।

शास्त्री ब्रिज का दुर्लभ चित्र। फोटो - जफर अंसारी।

शास्त्री ब्रिज का दुर्लभ चित्र। फोटो – जफर अंसारी।

मंगलवार को भी चला सुधार काम इधर, ब्रिज में रोड धंसने के बाद मंगलवार को भी यहां पर सुधार काम किया गया। इसके चलते यहां पर बैरिकेड भी लगाए गए थे। साथ यहां पर काम के लिए सारा सामान भी रोड के किनारे रखा हुआ था। कई लोग यहां पर सुधार का काम कर रहे थे। जनकार्य प्रभारी राजेंद्र राठौर ने बताया कि यहां पर स्लैब भरने का काम किया जा रहा है, जिसके बाद आगे का काम किया जाएगा।

मंगलवार रात तक यहां पर स्लैब भरने का काम किया जा चुका था।

मंगलवार रात तक यहां पर स्लैब भरने का काम किया जा चुका था।

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