वैसे तो धान को खरीफ की फसल माना जाता है लेकिन बालाघाट एकमात्र जिला है जहां पर साल में दो धान की खेती की जाती है. लेकिन प्रशासन ने किसानों को रबी में धान की खेती के लिए मना किया है. इसके पीछे प्रशासन का तर्क है कि है कि गर्मियों में जल संकट की स्थिति बनती है. ऐसे में प्रशासन दूसरी फसलों की रोपाई के लिए प्रेरित कर रहा है.
30 अक्टूबर को हुई बैठक में धान की जगह कम पानी चाहने वाली फसलों को लगाने के लिए किसानों को प्रेरित करने का फैसला लिया गया है. कृषि उपसंचालक फूलसिंह मालवीय ने बताया कि बालाघाट में नहर तंत्र की इतनी क्षमता नहीं है कि हर इलाके में धान की सिंचाई के लिए पानी पहुंचाया जा सके. वहीं, कई नहरों में लाइनिंग के भी काम नहीं हुए, जिससे अंतिम पंक्ति के गांवों में पानी नहीं पहुंच सकता है. ऐसे में किसान भाइयों को सलाह है कि वह धान की जगह गेहूं, चना या कम पानी चाहने वाली फसलों को लगाना चाहिए. इस मामले में लोकल 18 कृषि उपसंचालक फूलसिंह मालवीय से बातचीत की, जानिए उन्होंने क्या बताया…
नहरें धान की फसल के लायक नहीं
कृषि उपसंचालक ने बताया कि बालाघाट की नहरों को कम पानी चाहने वाली फसलों के मुताबिक बनाया है. ऐसे में अगर किसान भाई रबी के मौसम में धान लगाते हैं, तो मार्च के बाद नहरों में पानी अंतिम पंक्ति तक नहीं पहुंच पाता है. रबी के सीजन में बालाघाट जिले भर में 46 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है. ऐसे में किसान भाई धान की खेती के बजाय रबी की मुख्य फसलें लगा सकते हैं. ऐसे में किसान भाई चना, अलसी, गेहूं, मटर सहित रबी की फसलों की खेती कर सकते हैं.
दरअसल, रबी की फसलें कम पानी चाहने वाली है और धान की फसल ज्यादा पानी चाहने वाली फसल है. ऐसे में अगर धान की फसल लगेगी तो नहरों से पानी न मिलने पर धान की फसल खराब हो सकती है.
धान लगाना घाटे का सौदा
कृषि उपसंचालक फूलसिंह मालवीय ने बताया कि बीते साल रबी में धान लगाने वाले किसानों को समस्या का सामना करना पड़ा. पानी के अभाव में उनके खेत सुख गए थे. ऐसे में किसानों को उपज भी बहुत कम हुई थी. इससे उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था.
धान लगाने के ये नुकसान
बालाघाट में दोनों सीजन( खरीफ और रबी) में किसान धान की खेती करते है. लेकिन किसान भाइयों को कई नुकसान हो सकते हैं. बालाघाट की भौगोलिक स्थिति और जलवायु धान के लिए अनुकूल है, लेकिन जल संसाधनों की सीमित उपलब्धता के बीच रबी में भी धान उगाने से संकट गहराता जा रहा है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय कृषि परंपरा में फसल चक्र अपनाना आवश्यक है. एक ही फसल लगाने से जमीन की उर्वरक शक्ति पर असर पड़ता है. पौधे एक जैसी गहराई से पोषक तत्व लेते हैं, जिससे मिट्टी कमजोर होती है.
विशेषज्ञों के अनुसार, फसल चक्र के तहत खरीफ में धान के बाद रबी में दलहनी या गहरी जड़ वाली फसलें लगानी चाहिए, जिससे मिट्टी को भी पुनर्जीवित होने का समय मिलता है. लेकिन बालाघाट में लगातार धान उगाने से आने वाले वर्षों में पैदावार में गिरावट तय मानी जा रही है.
कीटों की फौज करेगी हमला
फसल पर कीटों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. जब एक ही प्रकार की फसल एक ही जमीन पर बार-बार लगाई जाती है, तो विशेष कीटों को पनपने का मौका मिलता है. उदाहरण के लिए, फौजी कीट धान की फसल में अक्सर पाया जाता है. अगर किसान फसल चक्र अपनाएं, तो इन कीटों के लार्वा नए फसल वातावरण में नहीं टिक पाते. लेकिन लगातार धान की बुवाई से कीटों को स्थायी ठिकाना मिल जाता है, और कीटनाशक भी प्रभावहीन हो जाते हैं.
सबसे बड़ी चुनौती है जल संकट
जल संकट का सबसे गंभीर खतरा है. बालाघाट को बीते सीजन में जल अभावग्रस्त जिला घोषित किया गया था. धान एक ऐसी फसल है जिसे बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है. खेतों में कीचड़ बनाए बिना धान की खेती संभव नहीं, लेकिन इसी प्रक्रिया में जमीन में पानी नहीं समाता, जिससे ग्राउंड वॉटर रिचार्ज नहीं हो पाता.