सर्दियों या गर्मियों, दोनों मौसम में जो पौधा किसानों को लगातार मुनाफा दे सकता है, वह है एलोवेरा (घृतकुमारी). आज एलोवेरा की मांग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी तेजी से बढ़ रही है. इसकी पत्तियों से निकलने वाला जेल दवाइयों, कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स, आयुर्वेदिक उत्पादों और हेल्थ ड्रिंक्स में खूब इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि अब किसान पारंपरिक खेती की जगह एलोवेरा की खेती को अपना रहे हैं, क्योंकि इसमें लागत कम और मुनाफा कई गुना ज्यादा है.
एलोवेरा की बढ़ती मांग
जय किसान कृषि क्लिनिक के नवनीत रेवापाटी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में एलोवेरा की डिमांड में 40 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है. पहले यह केवल घरेलू औषधियों में इस्तेमाल होता था, लेकिन अब इसका उपयोग फेस क्रीम, साबुन, शैम्पू, जूस और मेडिकल ड्रग्स तक में हो रहा है. बड़े-बड़े ब्रांड जैसे पतंजलि, डाबर, और हिमालया कंपनियां किसानों से सीधे एलोवेरा खरीदती हैं. ऐसे में यदि कोई किसान कंपनी से टाई-अप कर ले, तो उसे नियमित खरीदार मिल जाता है और मुनाफा भी तय हो जाता है.
मिट्टी और जलवायु
एलोवेरा की सबसे खास बात यह है कि इसे किसी खास मौसम या बहुत उपजाऊ मिट्टी की जरूरत नहीं होती. यह रेतीली, दोमट या हल्की मिट्टी में भी आसानी से उग सकता है. पानी की कमी वाले इलाकों के लिए यह पौधा वरदान है, क्योंकि इसमें सिंचाई की जरूरत बहुत कम होती है. ज्यादा पानी देने से इसकी जड़ें सड़ सकती हैं, इसलिए हल्की सिंचाई ही पर्याप्त रहती है.
पौधारोपण और देखभाल
एक एकड़ जमीन में लगभग 10 से 12 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं. इसकी रोपाई फरवरी से जुलाई के बीच की जा सकती है. पौधे की जड़ों को लगाने से पहले मिट्टी में गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालना फायदेमंद रहता है. पौधा लगाने के 8 से 10 महीने बाद पहली फसल तैयार हो जाती है, और उसके बाद हर 3 से 4 महीने में पत्तियां तोड़कर दोबारा उत्पादन लिया जा सकता है. एक बार पौधा लगाने के बाद यह लगातार 4 से 5 साल तक फसल देता है.
रोग और सुरक्षा
एलोवेरा एक मजबूत पौधा है, जिस पर बहुत कम कीट या रोग लगते हैं. कभी-कभी पत्तियों पर धब्बे या फफूंद दिखाई देती है, जिसे नियंत्रित करने के लिए नीम का अर्क या जैविक फफूंदनाशी का उपयोग किया जा सकता है. रासायनिक दवाओं से परहेज करना चाहिए, क्योंकि एलोवेरा के उत्पादों का उपयोग त्वचा और स्वास्थ्य से जुड़ा होता है.
लागत और मुनाफा
एलोवेरा की खेती में प्रति एकड़ लगभग 25 से 30 हजार रुपये की लागत आती है, जिसमें पौधे, खाद और मजदूरी शामिल है. पहले वर्ष में ही किसान को लगभग 80 हजार से 1 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है. अगले सालों में, जब पौधे दोबारा पत्तियां देने लगते हैं, तो मुनाफा और बढ़ जाता है. यानी एक बार पौधा लगाने के बाद 4 से 5 साल तक लगातार कमाई होती रहती है.
मार्केटिंग और बिक्री
एलोवेरा का सीधा बाजार तैयार नहीं होता, इसलिए किसानों को किसी कंपनी या प्रोसेसिंग यूनिट से संपर्क करना जरूरी है. नवनीत रेवापाटी बताते हैं कि जो किसान किसी कंपनी से टाई-अप कर लेते हैं, उन्हें फसल का पूरा दाम मिलता है और बिचौलियों की दिक्कत भी नहीं होती. कई किसान एलोवेरा से खुद का बिजनेस भी शुरू कर रहे हैं जैसे एलोवेरा जेल, जूस, साबुन या क्रीम बनाकर लोकल मार्केट में बेचना. इससे अतिरिक्त आमदनी होती है और रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं.
किसानों के लिए सुनहरा मौका
एलोवेरा की खेती उन किसानों के लिए बेहतर विकल्प है, जो कम पानी और कम मेहनत में अधिक आमदनी चाहते हैं. यह न केवल मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखता है बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है. आज सरकार भी औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित कर रही है और कई राज्यों में सब्सिडी भी दी जा रही है.