सर्दी में शुरू करें मशरूम की खेती, 2 महीने में बटन और ऑयस्टर से लाखों की कमाई

सर्दी में शुरू करें मशरूम की खेती, 2 महीने में बटन और ऑयस्टर से लाखों की कमाई


सतना. सर्दियों के मौसम की दस्तक के साथ ही यह माहौल किसानों के लिए खेती की नई संभावनाओं का जरिया बन जाता है. नवंबर का महीना खासतौर पर मशरूम की खेती के लिए सबसे सुनहरा समय माना जाता है. इस दौरान वातावरण में मौजूद ठंडक और नमी दोनों ही मशरूम की ग्रोथ के लिए आदर्श माने जाते हैं. यही वजह है कि इस सीजन में किसान कम मेहनत और कम खर्च में शानदार मुनाफा कमा सकते हैं. बटन और ऑयस्टर मशरूम की खेती इन दिनों देशभर के किसानों में लोकप्रिय हो रही है क्योंकि यह कम समय में तैयार हो जाती है और बाजार में इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, नवंबर से फरवरी तक का समय मशरूम की खेती के लिए सबसे बेहतर होता है. इस अवधि में तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, जो मशरूम के विकास के लिए आदर्श है.

बटन मशरूम की फसल लगभग 60 से 80 दिन में तैयार हो जाती है जबकि ऑयस्टर मशरूम मात्र 25 से 40 दिन में बाजार के लिए तैयार हो जाती है. दोनों प्रजातियों बोने से दो महीने तक लगातार उत्पादन मिलता है, जिससे हर सप्ताह ताजा मशरूम बेचने का मौका मिलता है.

स्पॉन से शुरू होती मशरूम की खेती
लोकल 18 से बातचीत में मध्य प्रदेश के सतना निवासी रोपनीय प्रभारी विष्णु तिवारी ने बताया कि मशरूम की सफल खेती की शुरुआत अच्छे बीज यानी स्पॉन से होती है. किसानों को किसी सर्टिफाइड संस्था से ही मशरूम का स्पॉन खरीदना चाहिए ताकि गुणवत्ता बनी रहे. खेती के लिए धान के पैरा या खेतों में बची फसल के अवशेषों से कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है. पैरा को 12 से 14 घंटे तक पानी में भिगोकर या उबालकर रखने के बाद उसे हल्का सुखाया जाता है, सुखाते टाइम ध्यान रखें कि उसमें लगभग 60 से 70 प्रतिशत नमी बनी रहे.

कम्पोस्ट और बीज बुवाई की प्रक्रिया
कम्पोस्ट तैयार होने के बाद उसे पॉलीथिन शीट बैग में परत दर परत जमाया जाता है. हर परत में मशरूम के बीज यानी स्पॉन की बुवाई की जाती है. यह प्रक्रिया चार से पांच परतों तक जारी रखी जाती है और अंत में बैग को अच्छी तरह ढक दिया जाता है. इसके लिए ऐसा स्थान चुना जाना चाहिए, जहां छाया, नमी और वेंटिलेशन पर्याप्त हो. एक्सपर्ट के अनुसार, तापमान 10 से 20 डिग्री के बीच बनाए रखना बहुत जरूरी है, वरना फसल में फफूंद लगने की संभावना रहती है.

जैविक-रासायनिक खाद से बढ़ेगी उपज की गुणवत्ता
अगर किसान बेहतर गुणवत्ता वाली फसल चाहते हैं, तो कम्पोस्ट में रासायनिक खाद जैसे- पोटाश, डीएपी, यूरिया या न्यूटॉप मिलाई जा सकती है. वहीं जैविक खाद में वर्मी कम्पोस्ट और नीम कोटेड यूरिया उपयोगी रहती है. मशरूम की खेती घर, ग्रीन नेट, पॉलीहाउस या शेड जैसे किसी भी स्थान पर की जा सकती है, जहां तापमान और नमी नियंत्रित की जा सके.

फसल की पहचान और कटाई का समय
लगभग 60 से 70 दिनों के भीतर कम्पोस्ट सफेद रंग में बदलने लगता है, जो यह संकेत है कि मशरूम की ग्रोथ शुरू हो चुकी है. इस अवस्था में पॉलीथिन बैग में छोटे-छोटे छेद कर दिए जाते हैं. कुछ ही दिनों में इन छेदों से सफेद छत्ते जैसे मशरूम बाहर निकल आते हैं. जैसे ही ये पूरी तरह विकसित हो जाएं, तुरंत उनकी कटाई कर लेनी चाहिए ताकि ताजगी और बाजार मूल्य दोनों बने रहें.

बढ़ती मांग और मुनाफे का गणित
होटल, रेस्टोरेंट और रिटेल मार्केट में मशरूम की मांग लगातार बढ़ रही है. वर्तमान में बाजार में बटन और ऑयस्टर मशरूम का दाम करीब 150 रुपये प्रति किलो चल रहा है. दो से चार महीने की अवधि में किसान इन दो किस्मों से 70 हजार से एक लाख रुपये तक की आमदनी प्राप्त कर सकते हैं.

कम लागत में ज्यादा फायदा
मशरूम की खेती की खासियत यह है कि इसे सीमित जगह पर भी शुरू किया जा सकता है. थोड़ी मेहनत, तापमान नियंत्रण और सही नमी बनाए रखकर किसान इसे घर या शेड में आसानी से उगा सकते हैं. यह खेती न सिर्फ अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन सकती है बल्कि युवाओं के लिए एक बेहतरीन स्वरोजगार का अवसर भी है.

अगर आप भी इस सर्दी किसी नई शुरुआत की सोच रहे हैं, तो मशरूम की खेती आपके लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकती है. थोड़े से निवेश और उचित मार्गदर्शन के साथ आप भी नवंबर से फरवरी के बीच इस ‘सफेद सोने’ से लाखों की कमाई कर सकते हैं.



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