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चना फसल में 35 से 40 दिन की अवस्था में उस पर इल्लियों का हमला अचानक बढ़ जाता है. आम तौर पर किसान इससे बचाव के लिए रासायनिक दवाओं पर खर्च करते हैं.कृषि विशेषज्ञों ने देसी उपाय बताए है. जिन्हें अपनाकर किसान फसल को सुरक्षित रख सकेंगे.
मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में चना रबी सीजन की प्रमुख फसल है. लेकिन फसल के 35 से 40 दिन की अवस्था में उस पर इल्लियों और तितलियों का हमला अचानक बढ़ जाता है. पत्तियों को काटने वाली पौधे कमजोर होने लगते हैं. आम तौर पर किसान इससे बचाव के लिए रासायनिक दवाओं पर खर्च करते हैं. वहीं, कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसान अगर इसी समय कुछ जरूरी कदम उठा लें, तो बिना रासायनिक दवाओं के फसल को नुकसान होने से बचाया जा सकता है.
विशेषज्ञों के अनुसार फसल की शुरुआती अवस्था में नीम तेल का छिड़काव सबसे असरदार माना गया है. 20 से 25 दिन की फसल पर प्रति लीटर पानी में 5 मिली नीम तेल मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. इससे पौधों की पत्तियां कड़वी हो जाती हैं और कीट उन पर नहीं बैठते. नीम तेल का यह उपाय पूरी तरह सुरक्षित है और काफी हद तक इल्लियों को आने से रोक देता है.
इन तरीकों से सुरक्षित रखें फसल
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह बताते हैं कि जैसे ही फसल 35–40 दिन की हो जाए, खेत में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर टी आकार की लकड़ी की खुटियां लगा देनी चाहिए. इन खुटियों पर बैठकर पक्षी खेत में मौजूद कीटों को खा जाते हैं, जिससे खेत की प्राकृतिक सुरक्षा बढ़ जाती है. इसी के साथ किसानों को खेत में फेरोमोन ट्रैप, लाइट ट्रैप या सोलर ट्रैप लगाने की सलाह दी गई है. फेरोमोन ट्रैप में तितलियां आकर्षित होकर फंस जाती हैं और अंडे नहीं दे पातीं. इससे इल्लियों की संख्या बढ़ने से पहले ही नियंत्रण हो जाता है. यह तरीका कम खर्च वाला है और दवाई की जरूरत भी नहीं पड़ती.
कैसे काम करता है लाइट ट्रैप
वहीं, जिन क्षेत्रों में बिजली की व्यवस्था है, वहां लाइट ट्रैप काफी प्रभावी साबित होते हैं. शाम को अंधेरा होने के बाद करीब 8 बजे बल्ब जलाएं और नीचे एक छोटा गड्ढा बनाकर उसमें पानी भर दें. इसमें थोड़ी मात्रा में कोई इनसेक्टिसाइड डाल दें. रोशनी की तरफ उड़कर आने वाली तितलियां नीचे गिर जाती हैं और गड्ढे में फंसकर मर जाती हैं.
सोलर ट्रैप भी है फायदेमंद
जिन किसानों के पास बिजली नहीं है, वे सोलर ट्रैप का उपयोग कर सकते हैं. यह ट्रैप खुद-ब-खुद काम करता है और रातभर कीटों को आकर्षित करता है. इससे बिना किसी अतिरिक्त खर्च के अच्छी मात्रा में कीट नियंत्रण हो जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि इन देसी तरीकों से किसान बिना रसायन के भी बड़ी हद तक फसल को सुरक्षित रख सकते हैं.