सरकारी अस्पतालों, खासकर बच्चों से जुड़े यूनिटों में, कभी–कभार ऐसे हालात बन जाते हैं कि तमाम संसाधन होने के बाद भी समय पर इलाज नहीं मिल पाता। ऐसा ही एक मामला गुरुवार को इंदौर में सामने आया। ब्रेन की बीमारी से ग्रस्त आठ महीने की एक बालिका को उसके माता-
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वे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक भटकते रहे। इस दौरान बच्ची एम्बुलेंस 108 में ही वेंटिलेटर पर रही। करीब 5 घंटे बाद उसे वेंटिलेटर उपलब्ध हो सका। उसकी हालत अब गंभीर बनी हुई है।
मामला नितेश दांगोदे, निवासी हीरा गांव, पंधाना (खंडवा), की आठ महीने की बच्ची सिद्धी का है। उसे ब्रेन की गंभीर बीमारी है। माता-पिता ने पहले खंडवा के सरकारी अस्पताल में दिखाया, जहां वह एक हफ्ते तक एडमिट रही। गुरुवार को उसकी हालत बिगड़ने पर माता-पिता उसे एम्बुलेंस 108 से लेकर सुबह 11 बजे इंदौर के लिए रवाना हुए।
दूसरे सरकारी हॉस्पिटल में भी वेंटिलेटर नहीं मिले
करीब 2 बजे वे एमवाय अस्पताल पहुंचे। यहां दिखाने पर उसे चेस्ट वार्ड भेजा गया। वहां 20 वेंटिलेटर थे और सभी भरे हुए थे। इसके बाद बच्ची को दूसरी मंजिल स्थित PICU में भेजा गया, तो पता चला कि यह बच्चों की सर्जरी का यूनिट है, जहां सिर्फ सर्जरी वाले बच्चों को ही एडमिट किया जाता है।
एम्बुलेंस 108 के स्टाफ जय ने बताया कि वे उसे जीपीओ स्थित सरकारी पीसी सेठी अस्पताल ले गए, लेकिन वहां भी वेंटिलेटर खाली नहीं मिला। बताया गया कि यहां एक माह की उम्र तक के बच्चों का यूनिट है और सभी पांचों वेंटिलेटर पर अन्य बच्चे एडमिट थे। इसके बाद एम्बुलेंस 108 का स्टाफ उसे लेकर सरकारी एमटीएच अस्पताल पहुंचा, तो पता चला कि यहां भी केवल नवजात बच्चों का यूनिट है।
दोबारा MY हॉस्पिटल लौटे, एम्बुलेंस में ही रही बच्ची
इस बीच एम्बुलेंस 108 का स्टाफ उसे फिर एमवायएच लेकर पहुंचा और वहां से अन्य सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर की उपलब्धता की जानकारी लेते रहे। इस दौरान एम्बुलेंस चेस्ट सेंटर परिसर में खड़ी रही और बच्ची उसी में वेंटिलेटर पर थी। एम्बुलेंस स्टाफ ने चेस्ट वार्ड से डॉक्टरों को बुलाया, जिन्होंने बाहर आकर एम्बुलेंस में ही उसकी हालत देखी और उसे संभाला।
इस दौरान मामला सुपरिटेंडेंट डॉ. अशोक यादव के संज्ञान में आया। उन्होंने समन्वय किया और बच्ची को सरकारी चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के नए चेस्ट वार्ड में वेंटिलेटर पर रखा गया। इस दौरान करीब 5 घंटे तक माता-पिता और एम्बुलेंस स्टाफ परेशान होते रहे। उसकी हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है।
उल्टी- लूज मोशन के बाद ब्रेन में हुई तकलीफ
नितेश दांगोदे गरीब परिवार से हैं। उनकी जुड़वां बेटियां हैं और उनका आयुष्मान कार्ड बना हुआ है। इसी के तहत वे सरकारी अस्पताल में इलाज कराना चाहते थे, लेकिन 5 घंटे तक वेंटिलेटर नहीं मिलने से उन्हें भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
नजदीकी लोगों के अनुसार, बच्ची को एक हफ्ते पहले उल्टी और लूज मोशन के कारण खंडवा के सरकारी अस्पताल में एडमिट किया गया था, जहां से ही उसके ब्रेन में तकलीफ होने का पता चला था। इसी वजह से उसे इंदौर लाया गया।