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Agriculture News: बालाघाट में पुराने जमाने से ही पुआल को संरक्षित करने और पशुओं को खिलाने के उपयोग में लाया जाता है. इसके लिए किसान भाई पुआल को बैलगाड़ी से घर लाते थे.फिर उसे सीधे पाटन पर रखते थे.
मध्य प्रदेश के बालाघाट को धान का कटोरा कहा जाता है. खरीफ में लगाई गई धान की खेती की लगभग आधी कटाई हो चुकी है. आज के दौर में किसान भाई आधुनिक यंत्रों से कटाई के कार्य करते हैं. ऐसे में उसमें कई सारी पुआल यानी पैरा नष्ट हो जाती है. ऐसे में किसान भाई रबी की फसल लगाने के लिए खेत में ही आग लगा लेते हैं लेकिन ऐसा करना न सिर्फ कानून अपराध है बल्कि पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान होता है. ऐसी कुछ प्राचीन तकनीक है. जिनकी मदद से पेडी स्ट्रॉ को संरक्षित किया जा सकता है. ऑफ सीजन में पशुओं को खिलाया जा सकता है.
पुआल जलाने से होता है नुकसान
पैरा यानी पुआल के जलाने से पर्यावरण और भूमि को नुकसान होता है. इसके जलाने से भारी धुआँ उठता है, जिससे भारी संख्या में वायु प्रदूषण होता है. वहीं, भूमि में ज्यादा गर्मी आ जाने से उन सूक्ष्म जीवाणुओं भी निष्क्रिय हो जाते हैं. वहीं, किसानों का मित्र कहलाने वाला जीव केंचुआ भी मर जाता है. ऐसे में वायु प्रदूषण के साथ-साथ मृदा प्रदूषण भी होता है. इसका प्रभाव ये होता है कि भूमि सख्त होती है और उर्वरा शक्ति धीरे- धीरे खत्म होती है.
ऐसे संरक्षित कर सकते है पुआल
बालाघाट में पुराने जमाने से ही पुआल को संरक्षित करने और पशुओं को खिलाने के उपयोग में लाया जाता है. इसके लिए किसान भाई पुआल को बैलगाड़ी से घर लाते थे.फिर उसे सीधे पाटन पर रखते थे. पाटन यानी पुआल रखने पशुशाला के ऊपर का भाग. ऐसे में पुआल में नमी नहीं आती थी. साल भर पशुओं को खिलाने के काम आती थी.
बेट बना कर रखना
कम जगह में ज्यादा पुआल रखने के लिए बालाघाट के ग्रामीण अंचलों में पुआल की बेट बनाकर रखा जाता है. इसमें पुआल यानी पैरा को चोटी की तरह आपस में गुथा जाता है. इसके बाद इसका पिरामिड बना कर रखा जाता है. उसके ऊपर एक परत पैरा की या प्लास्टिक की बनाई जाती है. इससे कम जगह में ज्यादा पैरा को संरक्षित किया जा सकता है.
पशुओं के लिए पुआल
पशुओं को पुआल खिलाने से पशुओं के पाचन के नजरिए से बेहद फायदेमंद है. वहीं, इससे पशुओं को फाइबर, प्रोटीन और ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत है. ऐसे में फ्री में पशुओं की डाइट अच्छी होती है और उत्पादन भी अच्छा होता है.