टीकमगढ़ में सोमवार को अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के उपलक्ष्य में जिला स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम स्थानीय नजरबाग प्रांगण में हुआ, जहां स्कूली बच्चों और जन प्रतिनिधियों ने श्रीमद् भागवद्गीता के 15वें अध्याय का सामूहिक सस्वर पाठ किया
.
इस अवसर पर कलेक्टर विवेक श्रोतिय ने बताया कि मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन को गीता के अनमोल वचन सुनाए थे, जिससे श्रीमद्भगवद गीता का जन्म हुआ था। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म का यह पवित्र ग्रंथ आज भी लोगों को जीवन की सही राह दिखाता है।
कलेक्टर श्रोतिय ने आगे कहा कि गीता में धर्म के साथ कर्म का मर्म समाहित है। यह कर्म, भक्ति और ज्ञान का संगम है, जो व्यक्ति को जीवन में सफलता दिलाता है। भगवान श्रीकृष्ण के ये वचन कठिन समय में भी व्यक्ति को सही मार्ग दिखाते हैं।
उन्होंने गीता के पहले श्लोक के ‘धर्मक्षेत्रे’ और ‘कुरुक्षेत्रे’ शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह संदेश देता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म का अनुसरण करना चाहिए। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि धर्म ही मनुष्य का पिता, माता, भाई, मित्र, रक्षक और स्वामी है, इसलिए कर्म करते हुए धर्म का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।

कलेक्टर ने गीता के प्रसिद्ध श्लोक ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:’ का भी जिक्र किया। उन्होंने समझाया कि इसका अर्थ है कि व्यक्ति का केवल कर्म करने पर अधिकार है, फल पर नहीं। इसलिए उसे फल की इच्छा के बिना, कर्तव्य समझकर कर्म करना चाहिए।
इस अवसर पर विवेक चतुर्वेदी, सांसद प्रतिनिधि अनुराग वर्मा, पूर्व विधायक राकेश गिरी गोस्वामी, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष लक्ष्मी गिरी गोस्वामी, अभिषेक खरे, कलेक्टर विवेक श्रोत्रिय, जिला पंचायत सीईओ नवीत कुमार धुर्वे, अपर कलेक्टर शिवप्रसाद मंडराह, एएसपी विक्रम सिंह कुशवाह, संयुक्त कलेक्टर शैलेन्द्र सिंह, डिप्टी कलेक्टर एसके तोमर सहित स्कूली बच्चे मौजूद रहे।
क्यों मनाई जाती है गीता जंयती
मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन को गीता के अनमोल वचन सुनाए थे। यानि इसी दिन श्रीमद्भगवद गीता जन्म हुआ था।
गीता जयंती का धार्मिक महत्व हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ गीता के श्लोक आज 21वीं सदी में भी लोगों को जीवन की सही राह दिखाने का काम करते हैं। इसमें धर्म के साथ कर्म का मर्म समाहित है। सही मायने में कहा जाए तो यह कर्म, भक्ति और ज्ञान का संगम है, जिसमें डुबकी लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में जरूर सफलता मिलती है। भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कहे गए गीता के अनमोल वचन व्यक्ति को कठिन समय में जीवन की सही राह दिखाने का काम करते हैं। गीता में कहा गया है कि किस तरह कठिन से कठिन समय में भी कर्म करते हुए धर्म का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। सही मायने में देखा जाए तो श्रीमद्भगवद गीता में जीवन की हम समस्या का समाधान मिलता है।
गीता के प्रथम श्लोक का क्या है मर्म
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय.
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कहे गए उपदेशों से जुड़ी गीता के पहले श्लोक के पहले दो शब्द पर यदि गौर करें तो इसमें पूरी श्रीमद्भगवद गीता का सार समाहित है। ये दो शब्द हैं धर्मक्षेत्रे और कुरुक्षेत्रे। यह संदेश देता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म के क्षेत्र में धर्म का अनुसरण करें। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि धर्म ही मनुष्य का पिता, माता, भाई, मित्र, रक्षक और स्वामी है। इसलिए कर्म करते हुए किसी भी सूरत में धर्म का साथ न छोड़ें।
गीता के जरिए श्रीकृष्ण ने दिया है ये संदेश भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं – ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:’, अर्थात व्यक्ति का सिर्फ कर्म करने पर अधिकार है फल पर नहीं. ऐसे में उसे कर्म को फल की इच्छा लिए हुए नहीं बल्कि कर्तव्य समझकर करना चाहिए. इसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों को गीता के जरिए संदेश देते हैं कि – ‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:’ यानि पृथ्वी पर जब-जब धर्म की हानि और अधर्म बढ़ता है तो भगवान स्वयं पृथ्वी पर अवतार लेते हैं.
श्री कृष्ण कहते हैं कि – ‘नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:’ यानि आत्मा अजर-अमर है और उसे न तो कोई शस्त्र काट सकता है और न ही आज उसे जला सकती है. भगवान श्री कृष्ण ने स्पष्ट रूप से गीता के वचन में कहा है कि – ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्’ यानि वे सज्जन और अच्छे लोगों के कल्याण और दुर्जन लोगों के विनाश के लिए समय-समय पृथ्वी पर प्रकट होते हैं।