जबलपुर के शहरी इलाकों में नालों के गंदे और विषैले पानी से सब्जियां उगाने की शिकायतों पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। मामले में दायर जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सवाल उठाए। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और नगर निगम से पूछा कि सीवेज
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इस संबंध में कोर्ट ने सरकार और नगर निगम को हलफ़नामा पेश करने के निर्देश दिए हैं। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने अगली सुनवाई 18 दिसंबर को तय की है। सुनवाई के दौरान कोर्ट मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और पुष्पेंद्र शाह ने बताया कि NGT की संयुक्त जांच समिति ने शहर के नालों की स्थिति और वाटर ट्रीटमेंट व्यवस्था पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
रिपोर्ट के अनुसार, जबलपुर में रोजाना 174 MLD वेस्ट वाटर नालों में गिरता है, जबकि नगर निगम के पास मौजूद 13 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ 58 MLD पानी का ही ट्रीटमेंट कर पा रहे हैं। जबकि सभी प्लांट्स की संयुक्त क्षमता 154.38 MLD है। करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी स्थिति सुधर नहीं पाई है। हाल ही में अमृत 2.0 योजना के तहत नगर निगम को 1202.38 करोड़ रुपए की स्वीकृति भी मिली है।
कोर्ट मित्र ने सुझाव दिया कि खुले नालों को कवर किया जाए और ट्रीटमेंट के बाद पानी को शहर से बाहर ले जाकर नदियों में छोड़ा जाए। समिति की रिपोर्ट में भी यही प्रमुख सिफारिशें शामिल हैं। कोर्ट ने मीडिया रिपोर्टों पर संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया और कलेक्टर सहित संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
बता दें जबलपुर के कछपुरा, विजय नगर, कचनारी, गोहलपुर, बेलखाड़ू और बघौड़ा सहित कई इलाकों में ओमती और मोती नाले के गंदे पानी से सब्जियां उगाने का मामला लंबे समय से सामने आ रहा है। इन नालों के पानी में घुलनशील रसायन और विषैले तत्व सीधे लोगों की सेहत को खतरे में डाल रहे हैं।