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ये कहते हुए वकील सिंह भावुक हो जाते हैं। वह लोको पायलट ( ट्रेन के ड्राइवर) हैं। आगे कहते हैं कि 20 साल से इंजन चला रहा हूं। मैंने हालात बदलते नहीं देखे, बल्कि बिगड़ते देखे हैं, जो समस्या पहले थी, वही आज भी है। रेलवे के लोको पायलट्स ने 10 सूत्रीय मांगों को लेकर 2 से 4 दिसंबर तक भूख हड़ताल की।
जो पायलट ड्यूटी पर थे, उन्होंने भूखे रहकर ट्रेन चलाई, जो ड्यूटी पर नहीं थे, उन्होंने धरना दिया। लोको पायलट की हड़ताल तो खत्म हो गई, लेकिन तकलीफ बरकरार है। भास्कर रिपोर्टर ने हड़ताल खत्म होने से पहले पूरा दिन लोको पायलट के साथ बिताया। वो किन तकलीफों में काम करते हैं? ये जानने की कोशिश की। पढ़िए रिपोर्ट…
लोको पायलट बोले- सिर्फ हक मांग रहे हैं भास्कर रिपोर्टर इटारसी में जब लोको पायलट के धरना स्थल पर पहुंचा, तब वह भूख हड़ताल पर थे। यहां मिले लोको पायलट संतोष चतुर्वेदी जो 36 घंटे से भूखे थे, उनके चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी। उन्होंने कहा- यह कोई नई या अतिरिक्त मांग नहीं है। हम सिर्फ वही मांग रहे हैं जो हमारा हक है, जो वेतन आयोग की सिफारिशों में लिखा है।
संतोष ने बताया- सातवां वेतन आयोग स्पष्ट रूप से कहता है कि जब भी महंगाई भत्ता (DA) बढ़ेगा तो हमारे सभी भत्ते 25% तक बढ़ेंगे। सरकार ने डीए बढ़ाया। बाकी सभी रेल कर्मचारियों के भत्ते भी बढ़ा दिए गए, लेकिन हम रनिंग कर्मचारियों का किलोमीटर भत्ता जनवरी 2024 से आज तक नहीं बढ़ाया गया। यह हमारे साथ सरासर अन्याय है।
उनकी पीड़ा सिर्फ भत्तों तक सीमित नहीं है। वे बताते हैं, ‘2006 में छठे वेतन आयोग ने किलोमीटर भत्ते की आयकर छूट सीमा 10,000 रुपए या कुल भत्ते का 70% (जो भी अधिक हो) तय की थी।’

महिला लोको पायलट के सामने दोहरी चुनौती इस दौरान कुछ महिला लोको पायलट से भी मुलाकात हुई। उन्हीं में से एक है प्रीति पाल। वह अपने साथ हुई एक घटना को याद करते हुए कांप जाती हैं। वे बताती हैं, ‘एक बार मैं एक मालगाड़ी चला रही थी। सफर बहुत लंबा था और बाहर तेज धूप थी। धीरे-धीरे मेरा पानी खत्म हो गया। लगभग 9 घंटे बीत चुके थे, गला सूखकर कांटा हो गया था, लेकिन ट्रेन रोकने का कोई सिग्नल नहीं था।
आखिरकार, ट्रेन एक बहुत छोटे स्टेशन पर कुछ देर के लिए रुकी, लेकिन वहां पीने का पानी तक नहीं था। प्रीति बताती हैं- मैं और मेरे साथी पायलट इंजन से उतरकर पानी की तलाश में निकल पड़े। हम लगभग डेढ़ किलोमीटर पैदल चले, तब जाकर एक छोटा सा गांव दिखा। हमने वहां के लोगों से पानी मांगकर अपनी प्यास बुझाई। उस दिन महसूस हुआ कि हम कैसी जिंदगी जी रहे हैं।
वे आगे कहती हैं, ‘एक महिला होकर लोको पायलट की नौकरी करना बहुत कठिन है। घंटों तक वॉशरूम न जा पाने की वजह से मुझे बार-बार यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI) होता है। छोटे स्टेशन पर जो वॉशरूम होते हैं, वे इतने गंदे होते हैं कि वहां जाना किसी सजा से कम नहीं, पर मजबूरी में जाना पड़ता है।

‘हम पानी पीने से डरते हैं, क्योंकि हर घूंट एक मुसीबत है’ 20 साल से इंजन चला रहे वकील सिंह कहते हैं, ‘इन 20 साल में मैंने हालात बदलते नहीं, बल्कि बिगड़ते देखे हैं। जो समस्याएं पहले थीं, वे आज और भी गंभीर हो गई हैं। अब ये शर्मनाक बात है कि जिस कर्मचारी के कंधों पर लाखों लोगों की सुरक्षा का जिम्मा है, उसे अपनी सबसे बुनियादी जरूरत पानी और शौचालय के लिए हड़ताल करना पड़ रही है।
वकील सिंह एक चौंकाने वाली बात बताते हैं, ‘सुनने में अजीब लगेगा, लेकिन हम लोको पायलट पानी पीने से डरते हैं। हम जानते हैं कि जितना कम पानी पिएंगे, उतना अच्छा रहेगा, क्योंकि इंजन में टॉयलेट की कोई सुविधा ही नहीं है, अगर हम ज्यादा पानी पी लें तो हम खुद को ही मुसीबत में डाल देते हैं।

लोको पायलट के कैबिन में न तो वॉशरूम की सुविधा है और न ही इसमें एसी लगा है।
कम उम्र में डायबिटीज और लिवर की गंभीर बीमारियां वकील सिंह कहते हैं- इस वजह से हमारे ज्यादातर साथी कम उम्र में ही डायबिटीज, एसिडिटी, गैस्ट्रिक, किडनी और लिवर की गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। जहां अन्य सरकारी कर्मचारियों की औसत आयु 80 साल है, वहीं हमारी औसत आयु 60 साल भी नहीं है। हम इतने दिन जी ही नहीं पाते। अपनी बात कहते-कहते वकील सिंह का गला भर आता है।
वह बताते हैं- कुछ महीने पहले मेरी बेटी अचानक बहुत बीमार हो गई। उसे कैंसर था। इलाज के बाद ठीक हो गई थी, लेकिन एक दिन उसकी हालत फिर बिगड़ गई। घर से लगातार फोन आते रहे, लेकिन ड्यूटी पर होने के कारण मेरा फोन साइलेंट पर था। मैं एक भी कॉल नहीं उठा पाया।”

ट्रेन चलाते वक्त लोको पायलट को फोन रिसीव करना मना है।
इंजन के अंदर का हाल, भट्ठी से भी बदतर मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में से 70% ट्रेनों के इंजनों में आज भी एयर कंडीशनर (AC) नहीं हैं। गर्मी के दिनों में इंजन के अंदर का तापमान 50-55 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। एक पायलट बताते हैं, ‘अंदर ऐसा लगता है जैसे किसी ने हमें भट्ठी के पास बैठा दिया है, अगर ट्रेन किसी स्टेशन पर खड़ी हो तो हम इंजन से उतरकर बाहर तपती धूप में खड़े होना ज्यादा पसंद करते हैं। कम से कम वहां हवा तो लगती है।
AI कैमरा सहूलियत कम, तनाव ज्यादा तकनीक को सुरक्षा बढ़ाने के लिए लाया गया था, लेकिन लोको पायलट के लिए यह मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण बन गया है। इंजन में लगे AI कैमरे उनकी हर हरकत पर नजर रखते हैं। एक पायलट ने बताया, ‘यह कैमरा आपकी हर पलक गिनता है, अगर आपने सामान्य से ज्यादा बार पलकें झपकाईं तो यह मान लिया जाता है कि आपको नींद आ रही है और तुरंत नोटिस भेज दिया जाता है।
4-5 घंटे लगातार एक ही जगह बैठे-बैठे अगर आपने शरीर को सीधा करने के लिए हलकी सी स्ट्रेचिंग कर ली तो कैमरा चेतावनी देने लगता है। कई बार सिग्नल न मिलने के कारण ट्रेनें घंटों आउटर पर खड़ी रहती हैं, लेकिन इस दौरान भी पायलट आराम नहीं कर सकते। वे न तो सो सकते हैं, न ही आराम से फोन इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि AI कैमरा सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा होता है।

लोको पायलट के ठीक सामने कैमरा इंस्टॉल किया है, जो उनकी हर हरकत पर नजर रखता है।
स्टाफ की भारी कमी, 100 का काम कर रहे 60 लोग संतोष चतुर्वेदी बताते हैं कि पूरे भारतीय रेल में कुल स्वीकृत पदों के मुकाबले सिर्फ 60% लोको पायलट काम कर रहे हैं। इसका मतलब है कि 100 लोगों का काम 60 लोगों से लिया जा रहा है। रेलवे नई भर्तियां नहीं कर रहा है। इसका सीधा असर उनके काम के घंटों और छुट्टियों पर पड़ता है।
2016 का रेलवे का नियम (RBE 143) कहता है कि लोको पायलट की ड्यूटी 9 घंटे से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन आज वे 12 से 13 घंटे और कई बार इससे भी ज्यादा काम कर रहे हैं। छुट्टियां मिलना लगभग नामुमकिन हैं। संतोष कहते हैं कि हम इतने थके हुए होते हैं कि कई बार आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है।
इसके बाद भी हम काम करते रहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं, हमारी एक छोटी सी गलती हजारों जानें ले सकती है। हम देश की सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं कर सकते, लेकिन हमारी अपनी सुरक्षा और जिंदगी का क्या?
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ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) के आव्हान पर 2 दिसंबर सुबह 10 बजे से 4 दिसंबर सुबह 10 बजे तक देशभर में 1 लाख 20 हजार लोको रनिंग स्टाफ बिना भोजन ड्यूटी करेगा। मध्य प्रदेश में यह आंदोलन कटनी, जबलपुर, सतना, सागर, बीना, भोपाल, इटारसी, गुना, कोटा और गंगापुरसिटी की क्रू लॉबी सहित अन्य जिलों में शुरू हो गया है। पूरी खबर पढ़ें…