1911 की नंगे पैरों वाली वो जीत जिसने फुटबॉल को Bengal में बना दिया धर्म, यहां की हर गली और हर दिल में क्यों बसता है ये खेल?

1911 की नंगे पैरों वाली वो जीत जिसने फुटबॉल को Bengal में बना दिया धर्म, यहां की हर गली और हर दिल में क्यों बसता है ये खेल?


Why West Bengal is obsessed with football: कोलकाता को ही ‘भारतीय फुटबॉल का मक्का’ क्यों कहा जाता है, इसका सबूत 12 दिसंबर की रात एक बार फिर दुनिया ने देख लिया. फुटबॉल की मौजूदा पीढ़ी के सबसे बड़े सुपरस्टार लियोनेल मेसी ने जैसे ही कोलकाता की धरती पर कदम रखा, उनकी एक झलक पाने के लिए फैंस बेताब दिखे. अर्जेंटीना के इस दिग्गज खिलाड़ी की कोलकाता में एंट्री ने साबित कर दिया कि भारत में फुटबॉल की राजधानी आज भी कोलकाता ही है. आज से मेसी का G.O.A.T इंडिया टूर 2025 शुरू हुआ है और इसकी पहली आधिकारिक शुरुआत कोलकाता से होना अपने आप में बहुत कुछ कह देता है, ये वही शहर है, जहां फुटबॉल सिर्फ खेल नहीं, बल्कि एक जुनून है.

मेसी पूरे तीन दिन भारत में रहेंगे. उनके टूर का आज पहला चरण है. 2011 के बाद वो भारत दौरे पर आए हैं और सीधा सबसे पहले कोलकाता में ही लैंड किए, जो फुटबॉल में कोलकाता के ‘किंग’ होने का सबूत भी है. शेड्यूल के अनुसार, मेसी कोलकाता के विवेकानंद युवा भारती क्रीड़ांगन (VYBK) में मेसी की 70 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा का अनावरण करेंगे. यह उनके लिए एक खास भेंट है और फिर आज ही हैदराबाद के लिए रवाना हो जाएंगे. देर रात मेसी का विमान कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरा तो फैंस उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़े, उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया.

मेसी की कोलकाता में एंट्री के बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि क्रिकेट के दीवाने इस देश में फुटबॉल के प्रति कोलकाता जितना जुनून और कहीं नहीं दिखता. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों कह रहे हैं? तो जान लीजिए कि पूरे भारत में कोलकाता एक ऐसा राज्य है, जहां फुटबॉल की जबरदस्त और सबसे ज्यादा दीवानगी है. ये दीवानगी आज की नहीं बल्कि सालों पुरानी है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर बंगाल में फुटबॉल के लिए इतना बेइंतिहां प्यार क्यों है? इसके पीछे इतिहास, संस्कृति और लोगों की भावनाओं की एक लंबी कहानी छिपी है. आइए जानते हैं…

बंगाल में फुटबॉल का जुनून क्यों है?

इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि बंगाल में फुटबॉल की शुरुआत अंग्रेजों के दौर में हुई थी. 1870 में कलकत्ता फुटबॉल क्लब (CFC) की स्थापना हुई थी, लेकिन खेल को लेकर तब इतना जुनून नहीं था. वक्त गुजरता गया और फिर उन्नीसवीं सदी आई। उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत थी. 19वीं सदी के आखिर में ब्रिटिश सेना और अधिकारी कोलकाता में फुटबॉल खेला करते थे. उस वक्त यह खेल अंग्रेजों की ताकत और श्रेष्ठता दिखाने का जरिया था. अंग्रेजों का ये मानना था कि भारतीय, खासकर बंगाली, शारीरिक रूप से कमजोर हैं और वो फुटबॉल खेलने के लायक नहीं. इसी सोच के चलते वो भारतीयों को नीचा दिखाते थे, लेकिन यही सोच वक्त के साथ बदल गई. इसे बंगाली युवाओं ने बदल दिया.

उस वक्त अंग्रेजी स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले भारतीय युवाओं ने फुटबॉल को अपनाकर उसे अपनी ताकत दिखाने का जरिया बनाया. बंगाली युवाओं की कड़ी मेहनत का नतीजा ये हुआ कि वक्त के साथ फुटबॉल बंगाल में सिर्फ मनोरंजन नहीं रहा, बल्कि यह आत्मसम्मान और बराबरी की लड़ाई का प्रतीक बन गया. फुटबॉल के जरिए अंग्रेज टीमों को हराना केवल मैच जीतना नहीं था, बल्कि यह साबित करना था कि वे किसी से कम नहीं हैं.

इसी जुनून के चलते फुटबॉल बंगालियों के दिल और दिमाग में बस गई. यही वो दौर था जब बंगाल में फुटबॉल क्लबों की नींव पड़ी. लोगों में इस खेल को लेकर जबरदस्त दीवानगी पैदा हुई. नतीजा ये हुआ कि फुटबॉल का मैदान बंगालियों के लिए वह जगह बन गया, जहां वे अपने गुस्से, गर्व और सपनों को खुलकर जाहिर कर सकते थे. इसके बाद वो पल आया जिसने बंगाल में फुटबॉल को एक धर्म बना दिया. ये साल था 1911…

‘1911’ की ‘नंगे पैरों’ वाली ऐतिहासिक जीत की कहानी

बात साल 1911 की है. यह साल बंगाल में फुटबॉल के इतिहास का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ. ऐसा इसलिए क्योंकि 1889 में शुरू हुए मोहन बागान क्लब ने अंग्रेजों की ईस्ट यॉर्कशायर टीम को 2-1 से हराकर IFA शील्ड जीत ली थी. उस जीत ने काफी कुछ बदल दिया था. खास बात यह थी कि उस मुकाबले में मोहन बागान के खिलाड़ी नंगे पैर खेले थे. यह पहली बार था जब किसी भारतीय टीम ने यह प्रतिष्ठित टूर्नामेंट जीता. इस जीत ने साबित कर दिया कि भारतीय किसी से कम नहीं हैं. यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं थी, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का पल थी, जिसे भारतीय आत्मसम्मान की जीत माना गया. यही वो जीत थी, जिसके बाद फुटबॉल बंगाल की रगों में बस गया और आज वहां हर गली और हर दिल में यह खेल बसता है.

फुटबॉल वाली गली बताती है फुटबॉल को लेकर कितना प्यार है

अगर आपको कोलकाता में फुटबॉल की दीवानगी देखनी है तो बंगाल की ‘फुटबॉल वाली गली’ घूमकर आइए. ये गली आपको बता देगी कि बंगाल को क्यों फुटबॉल का मक्का कहा जाता है. ये गली कोलकाता के उत्तरी हिस्से में स्थित है, जिसे लोग प्यार से “फीफा गली” कहते हैं. यही वो गली है जो फुटबॉल के लिए शहर की दीवानगी की सबसे बड़ी पहचान मानी जाती है. जैसे ही फीफा वर्ल्ड कप या कोई बड़ा मैच आता है, पूरी गली रंगों में डूब जाती है. दीवारों पर खिलाड़ियों की पेंटिंग, झंडे, पोस्टर और नारे दिखाई देने लगते हैं. खास बात ये है कि यहां के लोग अपने खर्चे से गली सजाते हैं. रात-रात भर मैच देखते हैं. यहां हर दिन एक जश्न जैसा नजारा दिखता है.

विदेशी खिलाड़ियों के लिए भी जबरदस्त प्यार

फुटबॉल को लेकर बंगाल में इतना क्रेज है कि यहां सिर्फ भारतीय टीमों को ही नहीं, बल्कि विदेशी खिलाड़ियों को भी भरपूर प्यार मिलता है. यहां रहने वाले लोग अलग-अलग देशों की टीमों को पसंद करते हैं. खासकर लियोनेल मेसी और डिएगो माराडोना की वजह से अर्जेंटीना की टीम बंगाल में बेहद लोकप्रिय हुई है. कई फैन विश्व कप के दौरान अपने घरों को अर्जेंटीना के नीले-सफेद रंगों में रंग देते हैं. अब जब मेसी भारत पहुंचे हैं तो इचापुर के चाय दुकानदार शिव शंकर पात्रा ने तो अपने पूरे घर और दुकान को इन्हीं रंगों और मेसी की तस्वीरों से सजा दिया है। वो मेसी के जबरा फैन हैं.

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