रिपोर्ट: आचार्य शिवकांत
Panna News: पन्ना से कौन वाकिफ नहीं. मध्य प्रदेश का ये जिला हीरों और पत्थर खदानों के लिए मशहूर है. यहां आए दिन किसी न किसी मजदूर की किस्मत चमक जाती है. कभी खदान में खनन के समय तो कभी पत्थर तराशते समय चमकता हीरा हाथ लग जाता है. पर, ये तो पन्ना का एक पक्ष है, जो खुशहाल है. एक दूसरा पक्ष भी है, जो बेहद डरावना है. खदानों में काम कर रहे मजदूर सिलिकोसिस बीमारी से जूझ रहे हैं.
फेफड़ों में पत्थर जैसी परत जमाने वाली इस लाइलाज बीमारी ने आधी उम्र में ही कई परिवारों को बेसहरा बना दिया है. महिलाओं को विधवा बना दिया है, बच्चों को अनाथ कर दिया है. गांधीग्राम, मनोर और बड़ौर जैसे गांवों में खदानों की धूल मजदूरों को अंदर ही अंदर खा रही है. पत्थर तोड़ते समय उड़ने वाली सिलिका सैंड सांस के जरिए फेफड़ों में जमा हो जाती है, जिससे सांस लेना दूभर हो जाता है.
कोई कमाने वाला नहीं…
स्वास्थ्य विभाग अक्सर इसे टीबी समझकर गलत दवा देता है, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है. 16-17 साल की उम्र से खदानों में पसीना बहाने वाले मुकेश आदिवासी अब चलने-फिरने लायक नहीं बचे. सांस फूलना, लगातार खांसी और भूख न लगना उनकी रोजमर्रा की जद्दोजहद बन गई है. वे बताते हैं, “दो छोटे बच्चों का पेट पालना मुश्किल हो गया. अकेला कमाने वाला था, अब घर का खर्च चलाना नामुमकिन है. कभी-कभी भूखे सोना पड़ता है. शासन से कोई मदद नहीं मिली.”
सब ऊपर वाले पर छोड़ दिया…
इसी तरह मजूदर राजकुमार के पैर सूज गए हैं. उनके फेफड़ों में भी दर्द रहता है. सांस लेने में दिक्कत होती है. ज्यादा बोल भी नहीं पाते. टीबी की दवा ने उल्टा नुकसान पहुंचाया. वे कहते हैं, “अब घर में बैठा हूं, ऊपरवाले पर छोड़ दिया. सरकार ने कुछ नहीं किया.”
27 रजिस्टर्ड, 24 की मौत हो चुकी
पृथ्वी ट्रस्ट की संचालक सबीना यूसुफ बेग ने बताया, “पन्ना में सिलिकोसिस के विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है. 27 मजदूर रजिस्टर्ड मरीज हैं, जबकि 24 की इस बीमारी से मौत हो चुकी है. मजदूरों को मास्क, जांच और इलाज की सख्त जरूरत है, लेकिन व्यवस्था नाममात्र की है.”
मरने के बाद मदद!
सीएमएचओ डॉ. राजेश तिवारी का कहना है, “सिलिकोसिस से मौत पर परिजनों को स्वास्थ्य विभाग से 1500 रुपये और लेबर ऑफिस से 3 लाख रुपये की सहायता दी जाती है. हम जागरूकता अभियान चला रहे हैं.”
यह बीमारी न केवल मजदूरों की जिंदगी छीन रही है, बल्कि परिवारों को आर्थिक तंगी में धकेल रही है. मजदूर संगठनों ने मास्क वितरण और विशेष अस्पताल की मांग की है, लेकिन सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. पन्ना की चमकदार खदानों के पीछे छिपा यह काला सच मजदूरों की बेबसी की कहानी बयां करता है.