एमपी के 25% विधायक जनता के सवालों पर चुप: 198 MLA के दो साल का परफॉर्मेंस, बीजेपी के 30% तो कांग्रेस के 13% विधायक एक्टिव नहीं – Madhya Pradesh News

एमपी के 25% विधायक जनता के सवालों पर चुप:  198 MLA के दो साल का परफॉर्मेंस, बीजेपी के 30% तो कांग्रेस के 13% विधायक एक्टिव नहीं – Madhya Pradesh News


मध्य प्रदेश की 16वीं विधानसभा के गठन को चार दिन बाद यानी 18 दिसंबर को दो साल पूरे हो जाएंगे। इन दो सालों में सदन ने सात सत्र देखे हैं, लेकिन इन सत्रों में विधायकों का परफॉर्मेंस कुछ खास नहीं रहा। 25 फीसदी विधायक अपने क्षेत्र की समस्याओं और जनता के सव

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भास्कर के एनालिसिस में सामने आया कि 75 फीसदी विधायक ही सदन में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं, जबकि बाकी एक चौथाई विधायकों ने सवाल पूछने में कोई रुचि नहीं दिखाई। सवाल न पूछने वालों में सत्ताधारी दल बीजेपी के 30 फीसदी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के 13 फीसदी विधायक शामिल हैं।

विधानसभा के कुल 198 विधायकों (मंत्रियों और अध्यक्ष को छोड़कर) में से केवल 90 विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने इन दो सालों के सभी छह प्रमुख सत्रों में सवाल पूछे। यह आंकड़ा बताता है कि लगभग 100 विधायक ऐसे हैं जो हर सत्र में अपने क्षेत्र की आवाज उठाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा पाए। केवल भारत आदिवासी पार्टी के एकमात्र विधायक कमलेश्वर डोडियार ने सभी सत्रों में सक्रियता दिखाते हुए सवाल पूछे है। इन दो सालों में कैसा रहा विधायकों का परफॉर्मेंस पढ़िए रिपोर्ट

सत्र दर सत्र कैसा रहा विधायकों का परफॉर्मेंस?

1. फरवरी 2024: 9 दिन का सत्र, 6 दिन में खत्म 16वीं विधानसभा के गठन के बाद यह डॉ. मोहन यादव सरकार का पहला सत्र था। 7 से 19 फरवरी तक निर्धारित इस 13 दिवसीय सत्र में 9 बैठकें होनी थीं, लेकिन यह केवल छह दिन ही चल सका। इस छोटे सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण, अनुपूरक बजट और लेखानुदान जैसे महत्वपूर्ण काम निपटाए गए।

हरदा पटाखा फैक्ट्री कांड पर विपक्ष के स्थगन प्रस्ताव और ओलावृष्टि से फसलों के नुकसान पर भी चर्चा हुई, लेकिन भारी हंगामे के कारण 14 फरवरी को ही सत्र का अवसान कर दिया गया।

परफॉर्मेंस: इस सत्र में कुल 2303 सवाल पूछे गए। 198 में से 129 (65%) विधायकों ने ही सवाल पूछे, जबकि 69 विधायक पूरी तरह चुप रहे। सवाल न पूछने वालों में भाजपा के 57 और कांग्रेस के 12 विधायक थे।

2. जुलाई 2024: 19 दिन का बजट सत्र, 5 दिन में पास हुआ बजट यह सरकार का पूर्ण बजट सत्र था, जो 1 जुलाई से 19 जुलाई तक चलना था। 19 दिनों के इस सत्र में 14 बैठकें प्रस्तावित थीं, लेकिन यह भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। 3 जुलाई को वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने बजट पेश किया, लेकिन विभागीय अनुदान मांगों पर विस्तृत चर्चा के बजाय ‘गिलोटिन’ का सहारा लेकर सभी मांगों को एक साथ पारित कर दिया गया।

विपक्ष द्वारा दिए गए 37 स्थगन प्रस्तावों और 503 ध्यानाकर्षण सूचनाओं में से केवल 7 पर ही चर्चा हो सकी। 11 महत्वपूर्ण विधेयक बिना किसी खास बहस के पास हो गए और 5 जुलाई को सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।

परफॉर्मेंस: बजट सत्र होने के कारण सवालों की संख्या बढ़कर 4287 तक पहुंची। इस बार 159 (80%) विधायकों ने सवाल पूछे, जो पिछले सत्र से बेहतर था। फिर भी 39 विधायक (30 भाजपा, 9 कांग्रेस) निष्क्रिय बने रहे।

3. दिसंबर 2024: शीतकालीन सत्र और नए विधायकों का शपथ ग्रहण यह 5 दिवसीय शीतकालीन सत्र था, जो 16 से 20 दिसंबर तक चला। इस सत्र में विजयपुर से कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा, बुधनी से भाजपा के रमाकांत भार्गव और अमरवाड़ा से भाजपा के कमलेश शाह ने विधायक पद की शपथ ली। सत्र के दौरान विधायकों ने 1766 सवाल पूछे, लेकिन 7 स्थगन प्रस्तावों में से एक पर भी चर्चा नहीं हुई। हालांकि, 471 ध्यानाकर्षण सूचनाओं में से 38 पर चर्चा हुई और 10 विधेयक पारित किए गए।

परफॉर्मेंस: इस सत्र में 141 (71%) विधायकों ने सवाल पूछे। सवाल न पूछने वाले विधायकों की संख्या एक बार फिर बढ़कर 57 हो गई, जिनमें भाजपा के 46 और कांग्रेस के 11 विधायक शामिल थे।

4. मार्च 2025: सरकार का दूसरा पूर्ण बजट पेश हुआ 10 से 24 मार्च तक चले इस सत्र में मोहन सरकार ने अपना दूसरा पूर्ण बजट पेश किया। वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने विकसित मप्र 2047 का रोडमैप पेश किया। वित्तीय वर्ष 2025-26 को उद्योग और रोजगार वर्ष मनाने का फैसला किया गया। 9 दिनों तक चले सत्र में कुल 56 घंटे 45 मिनट की बैठकें हुईं। 9 स्थगन प्रस्ताव और ध्यानाकर्षण की 645 सूचनाएं विधानसभा को मिलीं। इनमें से 33 पर चर्चा हुई। साथ ही 4 विधेयकों को मंजूरी दी गई।

परफॉर्मेंस: इस सत्र में विधायकों की सक्रियता में कुछ सुधार दिखा। कुल 2939 सवाल पूछे गए और सवाल पूछने वाले विधायकों का आंकड़ा 164 (82%) तक पहुंच गया। इस बार 34 विधायक (28 भाजपा, 6 कांग्रेस) ही सवाल पूछने से दूर रहे।

5. जुलाई 2025: पहला अनुपूरक बजट पेश, दो दिन चढ़े हंगामे की भेंट 10 दिनों का ये सत्र केवल 8 दिन चला। दो दिन सत्ता पक्ष और विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गए। इस सत्र के दौरान सरकार ने इस वित्तीय वर्ष का पहला अनुपूरक बजट पेश किया। इसके अलावा 9 स्थगन प्रस्ताव की सूचना मिली, लेकिन एक पर भी चर्चा नहीं हुई, मगर 26 ध्यानाकर्षण प्रस्तावों पर चर्चा की गई। इस मानसून सत्र में 14 विधेयकों को मंजूरी मिली।

खास बात ये है कि विपक्ष मंत्री विजय शाह की कर्नल सोफिया कुरैशी पर की गई टिप्पणी को भुना नहीं पाया, तो आम लोगों से जुड़े मुद्दों को भी प्रभावी ढंग से नहीं उठा सका।

परफॉर्मेंस: जहां तक विधायकों के परफॉर्मेंस की बात करें तो इस सत्र के दौरान 82 फीसदी विधायकों ने सक्रियता दिखाई। कुल 3377 सवाल पूछे गए, जिन्हें 162 विधायकों ने उठाया। सवाल न पूछने वालों में भाजपा के 31 और कांग्रेस के 5 विधायक थे।

6. दिसंबर 2025: साल का अंत फिर सुस्ती के साथ इस पांच दिवसीय सत्र में चार बैठकें हुईं। सरकार ने दूसरा अनुपूरक बजट पेश किया। साथ ही विपक्ष की तरफ से छिंदवाड़ा कफ सिरप कांड, किसानों की अतिवृष्टि से फसलों के खराब होने और बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की गई। विपक्ष ने सदन के बाहर प्रदर्शन किए मगर सदन के भीतर इन मुद्दों पर कोई प्रभावी चर्चा नहीं हुई।

उज्जैन लैंड पुलिंग विवाद पर भी विपक्ष ने चर्चा का कोई प्रस्ताव नहीं दिया। इस सत्र में 12 स्थगन प्रस्ताव की सूचना दी गई थी, इसमें से एक पर भी चर्चा नहीं हुई। सभी रिजेक्ट कर दिए गए, तो 455 ध्यानाकर्षण की सूचनाओं में से 27 पर चर्चा हो सकी।

परफॉर्मेंस: ​​​​​​​1 से 5 दिसंबर तक चले छोटे शीतकालीन सत्र में विधायकों की सक्रियता फिर घट गई। कुल 1497 सवाल पूछे गए और सवाल पूछने वाले विधायकों की संख्या घटकर 143 (72%) रह गई। इस सत्र में 55 विधायक (48 भाजपा, 7 कांग्रेस) अपने क्षेत्र के मुद्दों पर मौन रहे।

पहली बार के औसत 32 फीसदी विधायकों ने नहीं पूछे सवाल विधानसभा में पहली बार के विधायकों की संख्या 70 हैं। इनमें से 7 मंत्रिमंडल में शामिल हैं। ऐसे में विधानसभा में सवाल पूछने वाले विधायकों की संख्या 63 है, जिसमें बीजेपी के 38, कांग्रेस के 24 और भारत आदिवासी पार्टी के 1 विधायक हैं। पहली बार के विधायकों का परफॉर्मेंस देखें तो औसतन 68 फीसदी विधायकों ने सवाल पूछे हैं।

मोहन सरकार के दोनों बजट सत्र के दौरान इन विधायकों का परफॉर्मेंस बेहतर नजर आया। बीजेपी के पहली बार के औसतन 24 विधायक सदन में सवाल पूछने में रुचि दिखाते हैं वहीं कांग्रेस की बात करें तो ये संख्या 19 हैं।

एक्सपर्ट बोले- सत्र की अवधि छोटी हो रही है, विधायकों को मौका नहीं मिल रहा विधानसभा के पूर्व मुख्य सचिव भगवानदेव इसराणी कहते हैं कि बैठकों का कम होना सबसे बड़ी चिंता की वजह है। विधानसभा जनहित के मुद्दे उठाने का सबसे प्रभावी मंच है। इसे लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं। इसी जगह लोगों की बात नहीं रखी जाएगी तो उनका पहले से जो भरोसा कम हुआ है वो और कम होगा।

वे बताते हैं कि विधानसभा की बैठकों की कम होती संख्या का मुद्दा कई बार पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में उठ चुका है।साल 2003 में लोकसभा में ऐसा ही सम्मेलन हुआ था। जिसमें सभी राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष और सचिवों ने हिस्सा लिया था। इसमें सुझाव आया कि संसद में 100 दिन की बैठकें होना चाहिए। एमपी, यूपी, राजस्थान जैसी बड़ी विधानसभाओं के लिए 75 बैठकों का सुझाव दिया गया। ये सब तय हुआ, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ।



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