कड़ाके की ठंड में गर्भवती गाय-भैंस की अनदेखी पड़ेगी भारी, एक्सपर्ट के टिप्स

कड़ाके की ठंड में गर्भवती गाय-भैंस की अनदेखी पड़ेगी भारी, एक्सपर्ट के टिप्स


सतना. कड़ाके की ठंड का असर सिर्फ इंसानों पर ही नहीं बल्कि पशुओं पर भी गहराई से पड़ता है. खासकर गर्भवती गाय और भैंस के लिए यह मौसम बेहद संवेदनशील माना जाता है. सर्दियों में जरा सी लापरवाही न सिर्फ मां पशु के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है बल्कि जन्म लेने वाले बछड़ों की सेहत, वृद्धि और भविष्य के दूध उत्पादन पर भी सीधा असर डालती है. पशु चिकित्सकों का मानना है कि ठंड के मौसम में वैज्ञानिक तरीके से देखभाल की जाए, तो प्रसव सुरक्षित होता है और बछड़े मजबूत पैदा होते हैं.

लोकल 18 को जानकारी देते हुए मध्य प्रदेश के सतना के पशु चिकित्सक डॉ बृहस्पति भारती बताते हैं कि अक्टूबर से दिसंबर का समय भैंसों का प्रमुख कोविंग पीरियड होता है. इस दौरान गर्भवती भैंसों और गायों पर शारीरिक दबाव बढ़ जाता है. यदि एनर्जी या मिनरल की कमी हो जाए, तो बच्चेदानी या वेजाइना बाहर आने लगती है, जिसे मेडिकल भाषा में पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स कहा जाता है. कई मामलों में बच्चा फंसने यानी डिस्ट्रोकिया की स्थिति भी बन जाती है, जिससे पशु और बछड़े दोनों की जान को खतरा होता है.

पोषण में संतुलन सबसे जरूरी
सर्दियों में गर्भवती पशुओं के आहार में ऊर्जा और पोषण बढ़ाना बेहद जरूरी है. डॉ भारती के अनुसार, ठंड में ग्लूकोज या एनर्जी सिरप देने से शरीर का एनर्जी लेवल बना रहता है. आहार में सरसों और अलसी की खली के साथ-साथ कॉटन सीड और ग्राउंडनट खली दी जा सकती है. मक्का देने से कार्बोहाइड्रेट मिलता है जबकि खली फैट का अच्छा स्रोत होती है. नियमित रूप से मिनरल मिक्सचर देना चाहिए ताकि प्रोलैप्स, रिपीट ब्रीडिंग और बार-बार होने वाली डिस्ट्रोकिया जैसी समस्याओं से बचा जा सके.

ठंड से बचाव और बीमारी की रोकथाम
ठंड के मौसम में निमोनिया का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. इसके लिए पशु शेड को हवा रहित और सूखा रखना जरूरी है. बाड़े में गुड़ और अजवाइन का धुआं देने से ठंड और संक्रमण से बचाव होता है. मच्छर और मक्खियों का प्रकोप भी इस दौरान बना रहता है, इसलिए समय-समय पर नीम का धुआं करना लाभकारी है. पशुओं का नियमित टीकाकरण भी बेहद जरूरी है ताकि मौसमी बीमारियों से सुरक्षा मिल सके.

गाय-भैंस और नवजात बछड़ों की खास देखभाल
ठंड में जूट के बोरे से बनी जैकेट पशुओं को पहनानी चाहिए, खासकर गायों को क्योंकि भैंसों की तुलना में उन्हें ज्यादा ठंड लगती है. भैंसों के नवजात बछड़ों में ठंड और वार्म्स लोड के कारण मृत्यु दर ज्यादा होती है, इसलिए उनकी विशेष निगरानी जरूरी है. बछड़ों को उतना ही दूध पिलाएं, जितना मादा पशु को दिया जाता है. गर्भवती गाय को प्रतिदिन 25–30 किलो हरा चारा, पांच किलो सूखा चारा, तीन किलो संतुलित पशु आहार, 50 ग्राम खनिज मिश्रण, 30 ग्राम नमक और भरपूर साफ गुनगुना पानी देना चाहिए. प्रसव के बाद अजवाइन, मेथी, अदरक और गर्म चावल जैसे आसानी से पचने वाले आहार दें और लहसुन, प्याज और तीखे मसालों से परहेज करें.

स्वस्थ भविष्य की भी नींव
वहीं भैंस को बरसीम, जौ का हरा चारा, या गेहूं का हरा चारा दें, एक से डेढ़ किलो दाना मिश्रण दें, जिसमें प्रोटीन और ऊर्जा हो, जैसे- चोकर, खली, अनाज आदि. गेहूं का भूसा या पुआल दें. कैल्शियम और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए मिनरल मिक्सचर पाउडर (लगभग 50 ग्राम) हर दिन मिलाएं, जौ (भिगोया हुआ), गेहूं का दलिया, या गुड़ अड्डी भी दे सकते हैं. सर्दियों में गर्भवती गाय-भैंस की सही देखभाल न सिर्फ पशुपालक की आर्थिक मजबूती से जुड़ी है बल्कि आने वाली पीढ़ी यानी बछड़ों के स्वस्थ भविष्य की भी नींव रखती है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.



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