आशीष पांडेय, (शिवपुरी)
Ramniwas Rawat Success Story: मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के बिलारा गांव से निकलकर एक युवा ने यह साबित कर दिया कि अगर सोच आधुनिक हो, नजर दूर तक जाती हो और मेहनत में ईमानदारी हो, तो गांव की जमीन भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की मिसाल बन सकती है. यह कहानी है रामनिवास रावत की, जिन्होंने पढ़ाई के साथ खेती को जोड़कर ऐसा मॉडल खड़ा किया, जिसकी चर्चा अब गांव से निकलकर डिजिटल दुनिया तक पहुंच रही है.
रामनिवास ने अपनी पढ़ाई बीएससी, एमएससी और बायो जैसे विषयों से पूरी की. करीब आठ साल इंदौर में रहकर शिक्षा हासिल करने के बाद जब वे अपने गांव लौटे, तो उनके सामने दो रास्ते थे, नौकरी या पुश्तैनी काम. उन्होंने दूसरा रास्ता चुना, लेकिन पुराने तरीके से नहीं, बल्कि नई तकनीक और वैज्ञानिक समझ के साथ. उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर 9 बीघा जमीन में टमाटर की खेती शुरू की. 9 अगस्त को पौध रोपण किया गया. पूरी प्लानिंग ड्रिप, बेड सिस्टम और संतुलित पोषण पर आधारित रही. नतीजा यह हुआ कि सिर्फ 60 से 70 दिनों में खेत से लाल रंग की मेहनत निकलने लगी. नवंबर से शुरू हुई आमद आज भी जारी है और अप्रैल के आखिर तक चलने की पूरी उम्मीद है.
दो उन्नत किस्मों का इस्तेमाल
रामनिवास ने इस प्रयोग में दो उन्नत किस्में चुनीं अभिराज और परी. उनके अनुभव के अनुसार, अभिराज में फल का आकार बड़ा होता है, जिससे एक क्रेट में वजन ज्यादा निकलता है और बाजार में भाव बेहतर मिलता है. दूसरी ओर, परी किस्म में गुणवत्ता तो अच्छी रहती है, लेकिन प्रति क्रेट वजन थोड़ा कम रहता है. यही अंतर आगे चलकर मुनाफे की गणना में बड़ा रोल निभाता है.
खेती की लागत की बात करें तो प्रति बीघा करीब डेढ़ से दो लाख रुपये तक खर्च आया. बीज, खाद, दवा, मजदूरी और सिंचाई, हर चीज का हिसाब पहले से तय था. अभी तक खर्च निकालने के बाद करीब पांच लाख रुपये की शुद्ध कमाई हो चुकी है, जबकि कुल आमदनी का आंकड़ा पंद्रह लाख के आसपास पहुंचने का अनुमान है.
परिवार की भूमिका सबसे मजबूत
इस पूरी यात्रा में परिवार की भूमिका सबसे मजबूत कड़ी रही. पिता ने खेत की जिम्मेदारी संभाली, वहीं छोटा भाई राममिलन यादव, जो कोटा में नीट की तैयारी कर रहा है, छुट्टियों में गांव आकर काम में हाथ बंटाता है. पढ़ाई और खेती का यह तालमेल बताता है कि आज का युवा मल्टीटास्किंग सोच के साथ आगे बढ़ रहा है.
एक खास बात यह भी है कि रामनिवास बाजार से हर चीज खरीदने के बजाय कई कृषि उपकरण खुद तैयार करते हैं. टमाटर के बेड बनाने वाले औजार, छोटे उपकरण और जरूरी ढांचे घर पर ही बनाए जाते हैं, जिससे लागत घटती है और नियंत्रण उनके हाथ में रहता है. रामनिवास मानते हैं कि खेती अब सिर्फ हल और बैल तक सीमित नहीं रही. सही जानकारी, समय पर निर्णय और वैज्ञानिक तरीका अपनाया जाए, तो गांव में रहकर भी बड़ा सपना जिया जा सकता है. उनकी यह सफलता उन युवाओं के लिए संदेश है, जो खेती को पिछड़ा काम मानते हैं. बिलारा के खेतों से निकली यह कहानी बताती है कि मिट्टी में आज भी ताकत है, जरूरत है तो बस नजरिया बदलने की.