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Haridra Ganesh Temple of Indore: मान्यता है कि यहां लगातार सात बुधवार शाम की आरती में पीले वस्त्र धारण कर आने से मन्नत पूरी हो जाती है. कई श्रद्धालु यहां आते है और मनोकामना पूर्ण होने पर हल्दी का चोला चढ़ाते है. भगवान की ख्याति भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में है. यहां पर अमेरिका, इंग्लैंड और दुबई से भी लोग मन्नत पूरी होने पर चोला चढ़ा चुके है. हरिद्रा गणेश को छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान समेत दूर-दूर से आए भक्तों द्वारा चोला चढ़ाया जा चुका है.
Indore unique Ganesh temple: हर मंगल कार्य की शुरूआत भगवान गणेश की आराधना से होती है. रिद्धि-सिद्धि के दाता और विघ्नहर्ता गणपति बप्पा का हरिद्रा गणेश मंदिर इंदौर के सिरपुर में विश्व का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां हल्दी का चोला चढ़ाया जाता है. भक्त यहां पीले वस्त्र पहनकर मन्नत मांगते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर हल्दी का चोला चढ़ाते है. अमेरिका और इंग्लैंड के भक्त भी यहां पर चोला चढ़ा चुके हैं.
भक्त बाजार से लाई गई सूखी साबुत हल्दी की गांठों को पीसकर या साबुत भगवान को अर्पित करते है. भगवान की प्रतिमा का श्रृंगार भी ज्यादातर पीले या नारंगी रंग की पोशाक और आभूषणों से ही किया जाता है ताकि ‘हरिद्रा’ स्वरूप बना रहे. मंदिर के पंडित बांके बिहारी शास्त्री ने बताया कि 2019 में जब मंदिर की स्थापना हुई, तब पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण में ‘ह’ से नाम आया था, तभी से भगवान को हरिद्रा गणेश कहा जाता है. लोगों का मानना है कि यह मूर्ति स्वयंभू है और हल्दी से बनी हुई है. भगवान का जुड़ाव मां पीतांबरा से भी है, हरिद्रा गणेश विद्या और तंत्र के देवता है.
मान्यता है कि यहां लगातार सात बुधवार शाम की आरती में पीले वस्त्र धारण कर आने से मन्नत पूरी हो जाती है. कई श्रद्धालु यहां आते है और मनोकामना पूर्ण होने पर हल्दी का चोला चढ़ाते है. भगवान की ख्याति भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में है. यहां पर अमेरिका, इंग्लैंड और दुबई से भी लोग मन्नत पूरी होने पर चोला चढ़ा चुके है. हरिद्रा गणेश को छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान समेत दूर-दूर से आए भक्तों द्वारा चोला चढ़ाया जा चुका है.
यहां भक्त अपनी मनोकामना जैसे शादी, नौकरी, संतान प्राप्ति, या स्वास्थ्य को मन में दोहराते हुए इन गांठों को एक कपड़े में लपेटकर या धागे में पिरोकर मंदिर परिसर में एक खास जगह पर बांध देते है. ऐसा माना जाता है कि जैसे ही भक्त की मन्नत पूरी होती है, उन्हें वापस आकर उस गांठ को खोलना होता है और भगवान का शुक्रिया अदा करना होता है. मंदिर के इतिहास के बारे में अलग-अलग कहानियां है. लेकिन माना जाता है कि यह कई सौ साल पुराना है. यह मंदिर न केवल गणेश चतुर्थी पर बल्कि हर बुधवार को भक्तों से खचाखच भरा रहता है.