खंडवा की एक ऐसी दुकान… जहां मिलता है सिर्फ दूध और जलेबी, 71 सालों से स्वाद की बादशाहत कायम

खंडवा की एक ऐसी दुकान… जहां मिलता है सिर्फ दूध और जलेबी, 71 सालों से स्वाद की बादशाहत कायम


Khandwa famous food: ठंड शुरू होते ही खंडवा की शामें अपनी पुरानी रौनक में लौट आती है. देवनारायण चौक, जिसे लोग प्यार से जलेबी चौक कहते है, यहां हर रात एक ही दुकान पर सबसे ज्यादा भीड़ जुटती है गुरु दूध भंडार. यह कोई साधारण दुकान नहीं, बल्कि 71 सालों से खंडवा के स्वाद की पहचान बन चुकी जगह है. यहां सिर्फ दो चीजें बिकती है दूध और जलेबी. इन दो चीजों का स्वाद ऐसा है कि लोग दूर-दूर के गांवों और शहरों से इसे चखने आते है.

गुरु दूध भंडार की खासियत सिर्फ इसका स्वाद नहीं, बल्कि इसकी कहानी भी है. दुकान की शुरुआत 1955 में अनिरुद्ध शर्मा के परदादा ने की थी. उस दौर में दूध का एक ग्लास सिर्फ 50 पैसे में मिलता था. आज भले ही कीमत 20 रुपए हो गई हो, लेकिन स्वाद वही का वही है. जैसे समय यहां आकर रुक गया हो.

अनिरुद्ध शर्मा बताते है कि उनकी दुकान की असली पहचान है रबड़ी जैसा गाढ़ा दूध, जिसे बिना किसी रंग, केसर या मिलावट के लंबे समय तक चढ़ाया जाता है. लगातार उबलने के बाद दूध अपना प्राकृतिक रंग खुद ही ले आता है. अनिरुद्ध हंसते हुए कहते है कि हमारे यहां दूध में न केसर डाली जाती है और न ही कलर, इसका लालपन खुद उबलने से आता है.

दुकान की पहचान सिर्फ दूध नहीं, बल्कि यहां की जलेबी भी है. आमतौर पर बाजार में जो जलेबी मिलती है, वह पानी से तैयार घोल से बनती है. लेकिन गुरु दूध भंडार की जलेबी घी और दूध से बनती है. इसलिए इसका स्वाद और कुरकुरापन बिल्कुल अलग होता है. अनिरुद्ध खुद कड़ाही के पास खड़े होकर जलेबी बनाते है. कहते है कि हमारी जलेबी घी-दूध वाली है, इसलिए इसका स्वाद और सुगंध दोनों ही खास होते है.

इस दुकान की खूबसूरती यह है कि यहां आज भी हर काम परिवार के लोग ही करते है. चौथी पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है. दुकान शुरू करने वाले बुजुर्ग तो अब इस दुनिया में नहीं है. लेकिन उनकी याद स्वाद के रूप में आज भी ज़िंदा है. लोगों की जुबान पर वही एक बात रहती है गुरु दूध भंडार का दूध-जलेबी खाए बिना ठंड पूरी नहीं होती.

ठंड की रातों में दुकान के बाहर लगी लंबी लाइन देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह सिर्फ एक स्वाद नहीं, बल्कि एक परंपरा है. रबड़ी जैसे गाढ़े दूध का एक गरमागरम ग्लास और उसी वक्त बनी कुरकुरी जलेबी… यह स्वाद हर उम्र के लोगों को खींच लाता है. ऐसा लगता है जैसे खंडवा की ठंड इसी दूध-जलेबी से पूरी होती है.

साल बदलते गए, दुकाने खुलती-बंद होती रहीं, लेकिन गुरु दूध भंडार का स्वाद कभी नहीं बदला. यही वजह है कि आज भी इस दुकान के आगे भीड़ लगी होती है. लोग यहां सिर्फ खाने नहीं आते, बल्कि 71 साल पुरानी उस परंपरा को जीने आते है, जो हर सर्दी में खंडवा को खास बना देती है.



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