परिवहन मंत्री गिड़गिड़ाते रहे, नक्सलियों ने हत्या कर दी: गांव वालों को बुलाकर पूछा– क्या यही लिखीराम कांवरे है? मर्डर के बाद नक्सलियों की पार्टी – Madhya Pradesh News

परिवहन मंत्री गिड़गिड़ाते रहे, नक्सलियों ने हत्या कर दी:  गांव वालों को बुलाकर पूछा– क्या यही लिखीराम कांवरे है? मर्डर के बाद नक्सलियों की पार्टी – Madhya Pradesh News


तारीख 15 नवंबर 1999। आज से ठीक 26 साल पहले दिसंबर की वो बेहद सर्द रात थी। लोग अपने घरों में दुबके थे। बालाघाट जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर सोनपुरी गांव के लोग भी नींद के आगोश में थे। लेकिन उस रात की खामोशी को चीरने के लिए मौत ने दस्तक दी थी। 10 से 12

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उनका निशाना कोई और नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश सरकार के तत्कालीन परिवहन मंत्री और उस क्षेत्र के सबसे कद्दावर नेता, लिखीराम कांवरे थे। नक्सलियों ने कांवरे का उन्हीं के घर के सामने बेरहमी से कत्ल कर दिया। यह कहानी उस क्रूरता की है, जिसने न केवल एक परिवार को जीवन भर का दर्द दिया, बल्कि पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था।

आज, जब मध्य प्रदेश सरकार राज्य को नक्सल-मुक्त घोषित करने का दावा करती है, तब दैनिक भास्कर ने सोनपुरी गांव पहुंचकर जाना कि उस रात का सच क्या था? कोर्ट के फैसले में जिस नक्सल कमांडर सूरज टेकाम की हत्यारे के तौर पर पहचान हुई, उसका अब भी कोई पता नहीं है। जिला कोर्ट ने नक्सलियों को सजा सुनाई लेकिन हाईकोर्ट में सीबीआई की थ्योरी सबूतों के अभाव में नहीं टिक सकी।

पढ़िए एमपी की सबसे खौफनाक नक्सली वारदात की रिपोर्ट…

वो रात… जब मौत ने दरवाजा खटखटाया उस रात का घटनाक्रम किसी हॉरर मूवी के सीन जैसा था। नक्सलियों ने सबसे पहले एक दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुला, नाम पूछा गया, लेकिन वह कोई और निकला। वह मंत्री लिखीराम कांवरे के बड़े भाई लिक्खनराम कांवरे का कमरा था। अपनी गलती का एहसास होते ही नक्सलियों ने उन्हें वापस कमरे में धकेला और बाहर से कुंडी लगा दी।

वे दूसरे कमरे की ओर बढ़े। सांकल खटखटाई गई। जैसे ही दरवाजा खुला, हथियारबंद लोग जबरन भीतर घुस गए। गहरी नींद से जागे मंत्री लिखीराम कांवरे कुछ समझ पाते, इससे पहले ही उनके दोनों हाथ पीठ पीछे मजबूती से बांध दिए गए। उन्हें घसीटते हुए घर के बाहर बीच सड़क पर लाया गया।

जहां नक्सलियों ने लिखीराम कांवरे की हत्या की वहां उनका स्मारक बना है

जहां नक्सलियों ने लिखीराम कांवरे की हत्या की वहां उनका स्मारक बना है

गांव वालों से पहचान करवाई और गर्दन काट दी नक्सलियों ने आस-पड़ोस के लोगों को नींद से जगाया और टॉर्च की रोशनी में कांवरे का चेहरा दिखाकर पूछा, ‘ये कौन है? क्या यही परिवहन मंत्री लिखीराम कांवरे है?’ अपनी जिंदगी की भीख मांगते हुए कांवरे उन लोगों के सामने गिड़गिड़ाते रहे। उन्होंने कहा, ‘तुम्हें जो चाहिए, मैं दे दूंगा, मुझे छोड़ दो’, लेकिन उन पत्थर दिल हत्यारों ने रहम नहीं किया।

जैसे ही गांव वालों ने उनकी पहचान की पुष्टि की, अगले ही पल एक नक्सली ने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और कांवरे की गर्दन पर पूरी ताकत से वार कर दिया। खून का फव्वारा छूटा और लहूलुहान कांवरे जमीन पर गिरकर छटपटाने लगे। हत्यारे ‘लिखिराम कांवरे मुर्दाबाद… कामरेड जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए अंधेरे में गायब हो गए।

अगली सुबह जब गांव वालों ने हिम्मत जुटाई, तो उनके घर के ठीक सामने मंत्री की लाश पड़ी थी। यह दृश्य मध्य प्रदेश के नक्सली इतिहास की सबसे खौफनाक और दुस्साहसिक वारदात के रूप में दर्ज हो गया।

लिखीराम कांवरे का किरनापुर स्थित मकान जहां उनका बेटा-बेटी और पत्नी रहते हैं।

लिखीराम कांवरे का किरनापुर स्थित मकान जहां उनका बेटा-बेटी और पत्नी रहते हैं।

सर्किट हाउस की जगह घर पर रुकना पड़ा महंगा स्वर्गीय कांवरे के बड़े बेटे पवन कांवरे, जो अब हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं, उस रात को याद करते हुए कहते हैं, ‘मैं तब तीसरी कक्षा में था। 15 दिसंबर को पिताजी का लांजी के सावरी गांव में एक कार्यक्रम था। तय कार्यक्रम के अनुसार, उन्हें रात में जिला मुख्यालय के सर्किट हाउस में रुकना था, लेकिन उस दिन वे अपने पैतृक गांव सोनपुरी आ गए।’

पवन बताते हैं कि उनका घर मिट्टी का बना एक छोटा सा मकान था। जब भी पिताजी गांव आते थे, तो रात में अपने स्टाफ, गनमैन और ड्राइवर को सुरक्षा कारणों से सर्किट हाउस भेज देते थे। उस मनहूस रात भी यही हुआ। पिताजी ने पूरे स्टाफ को भेज दिया और घर पर कोई सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं था।

पवन को बाद में जो जानकारी मिली, उसके मुताबिक नक्सलियों का असली इरादा उनके घर को आग लगाना था। लेकिन उस रात पिताजी घर पर ही मिल गए और वे उनकी हत्या के इरादे से आगे बढ़ गए। आपके पिता को नक्सलियों ने क्यों मारा?” इस सवाल के जवाब में पवन कहते हैं, “उन दिनों आंध्र प्रदेश में नक्सलियों के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई हुई थी, शायद उसी का बदला लेने के लिए उन्होंने पिताजी को निशाना बनाया।

खौफ की रात और सिसकियों में डूबी सुबह हत्या के बाद हत्यारे नारे लगाते हुए गांव से निकल गए, लेकिन उनकी दहशत पूरे गांव में फैल गई। नारेबाजी सुनकर लोग आधी रात को ही जाग गए थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वह घर से बाहर निकलकर देखे। लोग अपनी जान बचाने के लिए घरों में दुबके रहे और खिड़कियों-दरवाजों की ओट से बाहर झांकने की कोशिश करते रहे। पूरी रात गांव में एक अनकहा सन्नाटा पसरा रहा।

रात 11:20 बजे तक मंत्री कांवरे अपने पीए को लाइट बंद करने का निर्देश देकर सोने गए थे, लेकिन अगली सुबह 6 बजे उनके घर के गेट के सामने उन्हीं की लाश पड़ी थी। उनके दोनों हाथ बंधे हुए थे, चेहरा खून से लथपथ था और सिर-गर्दन पर कुल्हाड़ी के कई गहरे घाव थे। लाश के पास लाल स्याही से लिखे कुछ पर्चे भी पड़े थे, जो नक्सली अपनी पहचान के तौर पर छोड़ गए थे।

अगले कुछ घंटों में सोनपुरी जाने वाली सड़क लालबत्ती वाली गाड़ियों के सायरन से गूंज उठी। पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी एक के बाद एक गांव की ओर बढ़ रहे थे। वहीं दूसरी ओर, भोपाल में मंत्री की पत्नी और बच्चे इस अनहोनी से पूरी तरह अनजान थे।

पुष्पलता कांवरे बोलीं- ‘रात भर लगा कि कुछ गलत हो रहा है’ मंत्री कांवरे की पत्नी, श्रीमती पुष्पलता कांवरे, उस रात को याद करते हुए बताती हैं, ‘उस रात मुझे एक बहुत बुरा सपना आया। मैंने देखा कि साहब के हाथ बंधे हुए हैं और कोई उन्हें मार रहा है। हम उस दिन भोपाल में थे, तीनों बच्चे वहीं पढ़ते थे। जब यह घटना हुई, तो उनके पीए विश्वकर्मा जी के परिवार ने हमें भोपाल में सूचना दी कि साहब का एक्सीडेंट हो गया है, आपको तुरंत निकलना होगा।’

वे तुरंत तैयार होकर स्टेट हैंगर पहुंचीं, जहां से हेलिकॉप्टर के जरिए उन्हें किरनापुर ले जाया गया। किरनापुर में हेलीपैड पर उतरते ही उन्हें दूर-दूर तक भारी भीड़ दिखाई दी। वे चिंतित थीं कि आखिर हुआ क्या है। जब वे कार में बैठकर अस्पताल के सामने से गुजरीं, तो उन्हें एहसास हो गया कि कोई बड़ी घटना हुई है। उन्होंने गाड़ी रोकने को कहा, लेकिन ड्राइवर ने गाड़ी नहीं रोकी।

लिखीराम कांवरे की पत्नी पुष्पलता कांवरे बताती हैं कि उन्हें अनहोनी का अंदाजा हो गया था।

लिखीराम कांवरे की पत्नी पुष्पलता कांवरे बताती हैं कि उन्हें अनहोनी का अंदाजा हो गया था।

उन्हें जबरन कमरे से खींचकर बाहर निकाला गया था उस रात को याद करते हुए वे कहती हैं, ‘मुझे उस रात नींद नहीं आ रही थी। रात 12 बजे मैंने अपनी सास से कहा कि मुझे ऐसा लग रहा है कि हमें हेलिकॉप्टर से जाना पड़ेगा। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कुछ लोग उन्हें घर से निकाल रहे हैं। मुझे अंदर से एहसास हो रहा था कि कुछ बहुत गलत हो रहा है।’ बाद में उन्हें पता चला कि नक्सलियों ने पहले उनके हाथ बांधे, फिर पैर। उन्होंने यह भी कहा था कि “आपको जो चाहिए मैं दूंगा, मुझे छोड़ दो,” लेकिन उन्होंने उनकी गर्दन काट दी।

हत्या के बाद 10 किलोमीटर दूर मटन-चिकन पार्टी एक तरफ सरकार और प्रशासन अपने नेता के अंतिम संस्कार की तैयारियों में जुटे थे, वहीं दूसरी ओर हत्यारे महज 10 किलोमीटर दूर अपनी कामयाबी का जश्न मनाने की तैयारी कर रहे थे। घटना के एक प्रत्यक्षदर्शी, मोहन सिंह कुंजाम, ने अदालत में जो गवाही दी, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली है। उसने बताया कि हत्या के बाद सुबह करीब 5 बजे नक्सली एक ग्रामीण के पास बकरा खरीदने गए।

जब उसने बेचने से इनकार किया, तो उन्होंने धमकी दी, ‘अगर बकरा नहीं दिया, तो तेरा भी कांवरे जैसा हश्र कर देंगे।’ डर के मारे उस व्यक्ति ने 300 रुपए लेकर बकरा उन्हें दे दिया। कुछ दूर जंगल में जाकर उन्होंने बकरा काटा और मटन-चिकन की पार्टी की। सुबह के 10 बज चुके थे।

कांवरे की हत्या से अनजान कुछ ग्रामीण जब रोज की तरह जंगल गए, तो नक्सलियों ने उन्हें रोककर बताया कि वे उनके मंत्री लिखीराम की हत्या कर चुके हैं। जब ग्रामीणों को यकीन नहीं हुआ, तो नक्सल कमांडर सूरज टेकाम ने उन्हें सबूत के तौर पर कांवरे के घर से लाया गया एक फोटो एल्बम, एक कार्डलेस फोन और मंत्री का चश्मा दिखाया।

लिखीराम कांवरे पूर्व सीएम कमलनाथ के बेहद करीबियों में से एक थे।

लिखीराम कांवरे पूर्व सीएम कमलनाथ के बेहद करीबियों में से एक थे।

सुनियोजित साजिश और अधूरा न्याय मंत्री कांवरे की हत्या कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं था, बल्कि एक सोची-समझी साजिश थी।

  • एक दिन पहले रैकी: नक्सलियों ने हत्या से एक दिन पहले ही गांव की पूरी रेकी कर ली थी। उन्होंने एक ग्रामीण को धमकाकर कांवरे का ठिकाना और उनके घर की पूरी जानकारी हासिल कर ली थी।
  • सामान की खरीदारी: उन्होंने गांव के ही एक व्यक्ति धनीराम को पैसे देकर किरनापुर से कुछ जरूरी सामान मंगवाया था, जिसमें दो कॉपियां, डिटॉल साबुन, नारियल तेल, तिरपाल, टॉर्च के सेल और माचिस शामिल थे।
  • टेलीफोन लाइन काटी: कांवरे के घर पहुंचते ही उन्होंने सबसे पहले टेलीफोन के तार काट दिए, ताकि कोई बाहर संपर्क न कर सके।

इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। जिला अदालत ने कुछ नक्सलियों को दोषी ठहराते हुए सजा भी सुनाई, लेकिन सबूतों के अभाव में सीबीआई की थ्योरी हाईकोर्ट में टिक नहीं सकी और आरोपी बरी हो गए। इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी, नक्सल कमांडर सूरज टेकाम, आज भी फरार है। न्याय का इंतजार आज भी अधूरा है।

राजनीतिक विरासत और एक परिवार का संघर्ष लिखिराम कांवरे की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी पुष्पलता कांवरे कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुनी गईं। इसके बाद, उनकी बेटी हिना कांवरे ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया और वे लगातार उसी सीट से विधायक रहीं। कमलनाथ सरकार के दौरान हिना कांवरे मध्य प्रदेश विधानसभा की उपाध्यक्ष भी रहीं।

यह कहानी सिर्फ एक नेता की हत्या की नहीं है, बल्कि उस गहरे जख्म की है जो नक्सलवाद ने मध्य प्रदेश को दिया है। यह उस परिवार के दर्द की कहानी है, जिसने अपना सबकुछ खो दिया और आज भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है। सोनपुरी की वह सर्द रात भले ही 26 साल पहले गुजर गई हो, लेकिन उसकी खौफनाक यादें आज भी वहां के लोगों और कांवरे परिवार के दिलों में जिंदा हैं।



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