सतना. मध्य प्रदेश के सतना शहर में आज भी एक ऐसी गली है, जहां फटे-पुराने और बेकार समझे जाने वाले जूते-चप्पल नई जिंदगी पाते हैं. यह सिर्फ एक आम जूता मरम्मत बाजार नहीं बल्कि पीढ़ियों से चला आ रहे देसी हुनर का केंद्र है. शहर के अस्पताल चौराहा इलाके में स्थित यह मोची मार्केट आज भी अपनी सादगी, किफायती दरों और टिकाऊ काम के कारण शहरवासियों की पहली पसंद बनी हुई है. यहां ब्रांड नहीं बिकते लेकिन फिर भी यहां के आइटम सालों-साल चलते हैं. लोकल 18 से बातचीत में सुजीत कुमार जाटव बताते हैं कि यह मोची मार्केट लगभग 40 से 45 साल पुरानी है. शुरुआती दौर में यहां 35-40 मोचियों की दुकानें थीं, जो समय के साथ घटकर अब सिर्फ 10–15 रह गई हैं. बदलते वक्त और बड़े बाजार की मार ने इस देसी कारोबार को सीमित कर दिया है. इसके बावजूद यहां आज भी शहर का सबसे सस्ता और टिकाऊ जूता-चप्पल मिलता है और इनकी मरम्मत होती है.
इस मार्केट में जूते-चप्पल की मरम्मत का रेट काम के हिसाब से लिया जाता है. वहीं बूट पॉलिश भी सस्ते दरों पर होती है. साथ ही सोल बदलवाने का खर्च 100 रुपये से शुरू होकर 600 रुपये तक जाता है. खास बात यह है कि यहां किसी भी डिजाइन के जूते बनाए जा सकते हैं. ग्राहक सिर्फ फोटो दिखाता है और कुछ ही दिनों में वैसा ही शूज़ तैयार हो जाता है. विकलांग, टेढ़े-मेढ़े या 6 उंगलियों वाले पैरों के लिए भी जूते कस्टम किए जाते हैं, जो बड़े शहरों में भी आसानी से नहीं मिलते.
शादी सीजन में जूतियों की जबरदस्त डिमांड
आनंद जाटव बताते हैं कि उनकी दुकान को 35 साल हो चुके हैं और वह खुद पिछले 20 वर्षों से जूते पॉलिश, रिपेयर और हाथ से जूते-चप्पल बनाने का काम कर रहे हैं. शादी के सीजन में यहां जूतियों की जबरदस्त मांग रहती है. शेरवानी से मैचिंग दूल्हों की जूती सस्ते से सस्ते दामों में यहीं से बनकर जाती है. नागरा, जूती और फॉर्मल शूज़ यहां के खास प्रोडक्ट हैं.
हरि नारायण जाटव बताते हैं कि उनके पूर्वज करीब 60–65 साल पहले ग्वालियर से सतना आए थे और तभी से यह पुश्तैनी काम करते आ रहे हैं. आज भी उसी मेहनत और हुनर से जूते-चप्पल बनाए जाते हैं, जो सालों-साल चलते हैं. उन्होंने कहा कि हालांकि सालभर में सिर्फ सीजन के वक्त ही अच्छी कमाई होती है, बाकी समय जैसे-तैसे रोजी-रोटी चलती है.
स्थानीय निवासी संतोष सोनी ने कहा कि वह पिछले 30 साल से इसी मोची मार्केट में आते हैं. यहां ब्रांड भले न हों लेकिन इनके बनाए जूते कितनी भी रगड़ में फटते नहीं हैं. ओरिजिनल लेदर से बने जूते, कोल्हापुरी चप्पल, बूट, मोजरी और सैंडल आज भी इस बाजार की पहचान हैं. वक्त बदला है लेकिन सतना की यह गली आज भी जूतों-चप्पलों को दूसरी जिंदगी देने का काम कर रही है.