हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में सिंगल बेंच ने शनिवार को आबकारी सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा 2006-07 से जुड़े एक मामले की सुनवाई हुई है। इस सुनवाई में हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश दिया है। असल में आरोप था कि परीक्षा के दौरान उत्तर पुस्तिका में छेड़छाड़ की गई
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हाईकोर्ट ने उत्तर पुस्तिका में कथित हेरफेर, काट-छांट और ओवर राइटिंग के आरोपों को गंभीर मानते हुए सक्षम अधिकारी को एक्सपर्ट की कमेटी गठित कर जांच कराने के आदेश दिए हैं। साथ ही अगली सुनवाई पर जांच रिपोर्ट के साथ तलब किया है। यह याचिका साल 2016 से लंबित थी। याचिकाकर्ता ने यह लगाए थे आरोप इस मामले में याचिका कर्ता शिरोमणि सिंह माहेश्वरी ने न्यायालय में दायर की गई याचिका में आरोप लगाया था कि वह एससी वर्ग विभागीय उम्मीदवार थे। परीक्षा में प्रश्नों का सही उत्तर देने के बाद भी उन्हें कम अंक दिए गए । इस मामले में याचिका कर्ता की ओर से एडवोकेट डीपी सिंह ने तर्क दिया है कि आबकारी सब इंस्पेक्टर परीक्षा के दौरान इस मामले में कुछ स्थानों पर अंक काटे गए, तो कुछ स्थान पर अंक जोड़े नहीं गए। ओवर राइटिंग को आधार बनाकर परीक्षा परिणाम प्रभावित किया गया। जब उन्होंने आरटीआई के तहत विभाग से पूरी जानकारी जुटाई तो उनको इस बात का पता लगा। इसके बाद आरटीआई के तहत उत्तर पुस्तिका मिलने के बाद उन्होंने इसकी विस्तृत आपत्ति विभाग के समझ पेश की थी, जिसे यह कहकर खारिज कर दिया गया कि पुनर्मूल्यांकन का कोई प्रावधान ही नहीं है।
कोर्ट ने कहा-जहां अन्याय और मनमानी साफ नजर आए वहां न्यायिक समीक्षा संभव सब इंस्पेक्टर आबकारी परीक्षा में गड़बड़ी की आशंका पर न्यायालय ने सुनवाई के बाद स्पष्ट किया कि सामान्य तौर पर न्यायालय शैक्षणिक मामलों में एक्सपर्ट द्वारा लिए गए निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करती हैं, लेकिन जहां रिकॉर्ड पर स्पष्ट रूप से अन्याय और मनमानी नजर आए वहां न्यायिक समीक्षा संभव है। रिकॉर्ड देखने के बाद न्यायालय ने पाया कि उत्तर पुस्तिका में प्रथम दृष्टया हेरफेर और सुधार के संकेत मौजूद हैं, इसलिए निर्णय प्रक्रिया की जांच आवश्यक है। एक्सपर्ट कमेटी गठित करने के दिए आदेश इस मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की एकल पीठ ने राज्य शासन को निर्देश दिए हैं कि वह एक्सपर्ट कमेटी गठित कर याचिकाकर्ता की उत्तर पुस्तिका की जांच कराए। याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया जाए और एक कारणयुक्त आदेश पारित किया जाए। यदि जांच में याचिकाकर्ता को योग्य पाया जाता है तो चयन से जुड़े सभी परिणाम लाभ (बैकवेज को छोड़कर) दिए जाएंगे। यह पूरी प्रक्रिया तीन माह में पूर्ण करने के निर्देश दिए गए हैं।