Last Updated:
unique village of Shivpuri: शिवपुरी के घर जमाई बताते है कि उन्हें अपने पुराने घर की याद तक नहीं आती. कभी-कभार अगर याद आती भी है तो साल-दो साल में एक-आध बार मायके जाते है, लेकिन कुछ ही दिनों में फिर ससुराल लौट आते है. गांव में ऐसे कई लोग है जो 30 से 35 वर्षों से घर जमाई बनकर रह रहे है और खेती-बाड़ी, मजदूरी और घर के हर काम में बराबर की जिम्मेदारी निभा रहे है.
Shivpuri unique village: मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में एक अनोखा गांव है, जहां “घर जमाई” शब्द मजाक या ताने का नहीं, बल्कि सम्मान का प्रतीक है. इस गांव में ज्यादातर पुरुष शादी के बाद अपने मायके को छोड़कर ससुराल में बस जाते है और पूरे जीवन सास-ससुर की सेवा को ही अपना धर्म मानते है. गांव में कदम रखते ही लोग गर्व से बताते है कि उन्होंने अपने जन्म देने वाले माता-पिता के साथ-साथ सास-ससुर को भी माता-पिता की तरह सम्मान दिया और आज भी दे रहे है.
यहां के घर जमाई बताते है कि उन्हें अपने पुराने घर की याद तक नहीं आती. कभी-कभार अगर याद आती भी है तो साल-दो साल में एक-आध बार मायके जाते है, लेकिन कुछ ही दिनों में फिर ससुराल लौट आते है. गांव में ऐसे कई लोग है जो 30 से 35 वर्षों से घर जमाई बनकर रह रहे है और खेती-बाड़ी, मजदूरी और घर के हर काम में बराबर की जिम्मेदारी निभा रहे है.
गांव में रहने वाले सुरेश बताते है कि वह करीब 35 सालों से घर जमाई है. मूल रूप से मसूरी गांव के सुरेश शादी के एक साल बाद ही अपनी ससुराल आ गए और फिर यहीं के होकर रह गए. वह कहते है कि उन्हें कभी अपने घर की कमी महसूस नहीं हुई. कभी-कभी हफ्ते में एक-दो दिन अपने गांव चले भी जाते है, लेकिन मन फिर इसी गांव में लौट आने का करता है. ससुराल में उन्हें इतना प्यार और अपनापन मिला कि कभी परायापन महसूस नहीं हुआ.
सुरेश बताते है कि सास-ससुर के निधन के बाद भी उनका सम्मान और प्रेम कम नहीं हुआ. साले-सालियां, पत्नी और गांव के लोग उन्हें “लालाजू” कहकर बुलाते है. बीते 35 सालों से वह घर के हर काम में हाथ बंटा रहे है. खेती-बाड़ी संभालते है और जरूरत पड़ने पर पत्नी के साथ मजदूरी भी करते है. उनका कहना है कि घर जमाई होना उनके लिए मजबूरी नहीं, बल्कि गर्व की बात है.
इसी गांव की कहानी फुल सिंह की भी है. फुल सिंह बताते है कि ससुराल में किसी की तबीयत खराब थी, इसी वजह से वह यहां आकर रुक गए. बाद में यहीं मजदूरी मिलने लगी और गांव का माहौल इतना अपनापन भरा लगा कि घर लौटने का मन ही नहीं किया. आज वह भी गर्व से खुद को घर जमाई कहते है.