Last Updated:
Sakibul Gani: बिहार के साकिबुल गनी ने विजय हजारे ट्रॉफी में इतिहास रच दिया है.उन्होंने पुरुषों की लिस्ट-ए क्रिकेट का सबसे तेज शतक लगाकर रिकॉर्ड बना दिया. मोतिहारी के साधारण परिवार से आने वाले साकिबुल ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष किया.उनका सफर लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है. गनी खुद वीरेंद्र सहवाग के फैन है. आईए जानते हैं कि आखिर कैसे गनी के बल्ले ने डोमेस्टिक क्रिकेट में तहलका मचा रखा है.
बुधवार का दिन भारतीय घरेलू क्रिकेट के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा. 2025-26 विजय हजारे ट्रॉफी के पहले ही दिन रिकॉर्ड्स की झड़ी लग गई. बिहार के साकिबुल गनी ने पुरुषों की लिस्ट-ए क्रिकेट में किसी भारतीय द्वारा सबसे तेज शतक जड़ दिया. उन्होंने सिर्फ 32 गेंदों में शतक पूरा किया. कुछ ही देर बाद ईशान किशन ने 33 गेंदों में शतक लगाकर दूसरा स्थान हासिल कर लिया. इससे पहले वैभव सूर्यवंशी ने 84 गेंदों में 190 रन की तूफानी पारी खेलकर दिन को और खास बना दिया. अहमदाबाद और रांची- दो अलग-अलग मैदानों पर एक ही दिन में भारतीय बल्लेबाजों के तीन सबसे तेज लिस्ट-ए शतक बने, जो अपने आप में ऐतिहासिक है.

इस ऐतिहासिक दिन के सबसे बड़े नायक रहे साकिबुल गनी. बिहार के लिए खेलने वाले 26 साल के साकिबुल का नाम इससे पहले भी रिकॉर्ड बुक में दर्ज है. रणजी ट्रॉफी 2021-22 में उन्होंने अपने पहले ही फर्स्ट क्लास मैच में 341 रन बनाकर इतिहास रच दिया था. वे दुनिया के पहले क्रिकेटर बने. जिन्होंने फर्स्ट क्लास डेब्यू पर तिहरा शतक लगाया. इस पारी के साथ उन्होंने मध्य प्रदेश के अजय रोहेरा का रिकॉर्ड तोड़ा था.

साकिबुल गनी का सफर आसान नहीं रहा. उनका जन्म 2 सितंबर 1999 को बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी शहर के अगरवा मोहल्ला में हुआ. यह इलाका साधारण लोगों का है जहां क्रिकेट के लिए कोई ढंग के मैदान नहीं थे. साकिबुल ने खेतों में, गांधी मैदान में और कई बार बल्ब की रोशनी में क्रिकेट खेलना सीखा. उनके पिता मोहम्मद मन्नान गनी किसान हैं और मीना बाजार में एक छोटी सी स्पोर्ट्स दुकान चलाते हैं. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी.
Add News18 as
Preferred Source on Google

क्रिकेट के जुनून को जिंदा रखने के लिए परिवार ने कई बार जमीन गिरवी रखी. मां ने अपने गहने तक बेच दिए. पिता चाहते थे कि वो पढ़ाई करे. लेकिन बाद में वो मान गए. इस पूरी यात्रा में साकिबुल के बड़े भाई फैसल गनी सबसे मजबूत सहारा बने. फैसल खुद क्रिकेटर रहे हैं और बिहार अंडर-19 व यूनिवर्सिटी लेवल पर खेल चुके हैं. वे अपना सपना पूरा नहीं कर पाए. लेकिन छोटे भाई के जरिए उसे जीना चाहते थे. फैसल ने ही परिवार को समझाया, रिश्तेदारों से पैसे जुटाए और घर के पास प्रैक्टिस के लिए पिच बनवाई.

<br />रणजी डेब्यू पर 341 रन की पारी के बाद मोतिहारी के अगरवा मोहल्ले में उत्सव जैसा माहौल था. घर पर बधाई देने वालों का तांता लग गया. साकिबुल की इस सफलता ने इलाके के कई बच्चों को क्रिकेट के सपने देखने की हिम्मत दी. स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर बेहतर सुविधाएं मिलें, तो यहां से कई और खिलाड़ी निकल सकते हैं.

साकिबुल पूर्व भारतीय बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग को अपना आदर्श मानते हैं. उनका बल्लेबाजी मंत्र है- “गेंद देखो और मारो.” यही अंदाज उनकी लंबी और विस्फोटक पारियों में दिखता है. साकिबुल कहते हैं कि रिकॉर्ड्स उनके दिमाग में नहीं होते, उनका फोकस सिर्फ टीम के लिए ज्यादा से ज्यादा रन बनाने पर रहता है.

आज साकिबुल गनी सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के उभरते सितारे बन चुके हैं. सीमित संसाधनों, आर्थिक परेशानियों और संघर्षों के बीच उनका यह सफर लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है. मोतिहारी की गलियों से निकलकर रिकॉर्ड बुक तक पहुंचने वाली यह कहानी बताती है कि अगर जज्बा मजबूत हो, तो हालात भी रास्ता बना देते हैं.