स्मृति शेष : नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ गुरदीप सिंह को दोस्तों ने इस तरह किया याद-

स्मृति शेष : नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ गुरदीप सिंह को दोस्तों ने इस तरह किया याद-


भोपाल. भोपाल के जाने माने नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ गुरदीप सिंह (Gurdeep singh) नहीं रहे. वो 62 साल के थे. उन्हें कोरोना (Bhopal) हो गया था और भोपाल के एक निजी अस्पताल में कई दिन से इलाज चल रहा था. उनके साथी, दोस्त, सहयोगी, स्टूडेंट्स और मरीज़ उन्हें हर दिल अजीज इंसान, योग्य डॉक्टर और बेहतरीन गाइड मानते थे. डॉ गुरदीप सिंह प्रदेश के पहले नेत्र रोग विशेषज्ञ थे जिन्होंने मोतियाबिंद के मरीज़ों का ऑपरेशन कर इंट्राऑक्युलर लेंस लगाना शुरू किया था. डॉ. गुरदीप सिंह भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन और नेत्र रोग विभाग के हैड रह चुके स्व. डॉ संतोख सिंह के पुत्र थे. उनकी पत्नी और बेटा भी नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं. सब स्तब्ध डॉ गुरदीप सिंह का कोरोना संक्रमित होने के बाद से इलाज चल रहा था लेकिन हालत में सुधार नहीं हुआ. मंगलवार सुबह जैसे ही उनके निधन की खबर आयी पूरे चिकित्सा जगत में एकदम सन्नाटा छा गया. ये उम्र इतनी जल्दी इस दुनिया से विदा होने की नहीं थी. नेत्र रोग के क्षेत्र में उनके सराहनीय योगदान की अभी और ज़रूरत थी. न जाने कितने लोगों की अंधेरी दुनिया को रौशन किया जाना था.“गुरदीप” की कहानी खत्म नहीं होती है डॉ गुरदीप के जाने का ग़म उनके जानने और पहचानने वाले हर एक शख्स को है. चाहें वो उनके परिवार का सदस्य हो या फिर उनके दोस्त, सहयोगी, स्टूडेंट्स या मरीज़. सबने उनमें एक योग्य डॉक्टर और बेहतरीन इंसान पाया. भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में डॉ गुरदीप सिंह के सहपाठी रहे डॉ प्रकाश पाठक ने कुछ इस तरह उन्हें याद किया और अपनी श्रद्धांजलि दी. GMC pages…
…. हॉस्टल मेस बंद रहना आम बात है, आज भी बंद है! ऐसे में हॉस्टल के बाहर पंडित का ढाबा ‘ राधा भोजनालय ‘ ही एक सहारा होता है, इस तेज धूप में सर पर एप्रन ढांक कॉलेज की ढलान उतर रहा हूँ। पीछे एक स्कूटर में ब्रेक लगता है, ये गुरदीप है ! ” क्यों रे इधर कहाँ जा रहा है लंच टाइम में ” ” यार आज मेस बंद है, मुझे नीचे तक छोड़ देगा क्या? ” ” चल बैठ जा ” तुरंत ही ढाबा आ जाता है. “बस रोक दे ” “अबे तू यहाँ खाएगा, चुपचाप बैठ ?” पंडित के ढाबे पर वो स्कूटर नहीं रोकता, सिंधी की होटल पर भी नहीं. सीधे ईदगाह हिल्स पर उसके घर ही रुकता है, मैं थोड़ा झिझकता हूँ. ” अबे अंदर चल ” उसकी मम्मी मेरे और उसके वजन की तुलना करती हैं और मुझे उसके समकक्ष लाने के प्रयास में रोज़ यहीं आकर खाने का आदेश देती हैं ! राज़मा, चांवल , तड़का दाल , आइसक्रीम और सब कुछ ! दो तीन दिन यह क्रम चलता है और फिर एक दिन मेस खुल जाती है, अब मैं गुरदीप को मेस में खाने हेतु आमंत्रित करता हूँ ! ए ब्लॉक की समस्त मेसों की दयनीय स्थिति वर्णन से परे है ! “अबे तुम लोग कैसे खाते हो यहाँ ?” यधपि हमारा कुक ‘कल्लू’ गुरदीप को प्रभावित करने हेतु दाल को फ्राई कर कुछ सलाद फल इत्यादि भी सजा देता है. “खाना तो ठीक ठाक है पर मेस की दशा खराब है” वो पूरे अधिकार से डाइनिंग हाल का निरिक्षण करता है जिसमें लंगड़ी कुर्सियां, भदरंग दीवारें हैं और चिचियाते हुए पंखे भूतिया वातावरण बना रहे हैं. “यार यहाँ सर्वेंट्स हैं अभी ?” वो दाढ़ी खुजाते हुए पूछता है. गुरदीप के मेस में आने की खबर सुनकर ही सभी फ्लोर्स के नौकर चाकर वहीँ मंडरा रहे थे, वे तुरंत आ जाते हैं. वो निर्देश देता है और सारे टूटी फूटी कुर्सियां उनके सर पर लादकर पी एस एम् विभाग पहुंचा दी जाती हैं जहाँ कारपेंटर उपलब्ध हैं. “कल तक इन्हे रिपेयर और पेंट कर के वापस पहुंचाओ और अब तू मेरे साथ चल ज़रा ” लंच के बाद की क्लास गोल कर हम पी डब्ल्यू डी ऑफिस पहुँचते हैं. ” ए ब्लॉक की टॉप फ्लोर मेस पहुंचो ” वो वहां कार्यरत इंजीनियर और स्टाफ को निर्देश देता है , वे तुरंत समझ जाते हैं क्या करना है. ” पाठक अब चल घर, चाय पीते हैं ” हम पुनः उसके घर पर हैं. “मम्मी अपने यहाँ बहुत सारी क्राकरी है ना ” वो बहुत सारी प्लेट्स , बाउल , चम्मच निकलवा लेता है. “वो अपन ने परदे बदले थे ना ” वो कुछ पुराने किन्तु शानदार परदे भी निकलवा लेता है. अब हम लोग चौक बाजार से डाइनिंग टेबल कवर और लैंप शेड लेकर वापस आ रहे हैं. मेस की घिसाई पुताई युद्ध स्तर जारी है , और पी एस एम् में ठोंका पीटी ! दो दिन में मेस का काया कल्प हो जाता है. बेहतरीन कवर से सजी डाइनिंग टेबल, ख़ूबसूरत परदे और रात को लैंप शेड की जालीदार रोशनी में हम लोग हॉस्टल में ही किसी पांच सितारा होटल की तरह मजे लेते हैं… (कई बार कई ऐतिहासिक घटनाएं इतिहास में दर्ज़ नहीं होतीं, वे सिर्फ आपकी डायरी के पन्नों या दिमाग में दर्ज़ हो कर ही रह जाती हैं…प्रिय मित्रों… “गुरदीप” की कहानी खत्म नहीं होती है, ऐसे जिंदादिल यार को अपने दिल में जिंदा रखना है, उसके लिए शोक और दुःख के संदेश मत लिखो… हमारी सुखद याद में वो वैसे ही और अब भी है… उपलब्धियों का सफर डॉ. गुरदीप सिंह ने भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज से  MBBS और ऑप्थलमलॉजी में MS किया. फिर ग्वालियर के जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज में बतौर सहायक प्रोफेसर के रूप में अपना करियर शुरू किया. उससे पहले वो एक साल वर्धा के सेवाग्राम अस्पताल में भी काम कर चुके थे. जापान से एफआईसीओ फेलोशिप और जर्मनी से फॉम्स की फेलोशिप की. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में रॉयल विक्टोरिया अस्पताल से विटेरोरेटिनल सर्जरी में ट्रेनिंग ली. वो प्रदेश के पहले नेत्र सर्जन थे जिन्होंने 1986 में मोतियाबिंद मरीज़ों में इंट्रोक्युलर लेंस लगाना शुरू किया. वर्ष 1997 में उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और तब से प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे थे.



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