5वीं पढ़ने के बाद दो रास्ते, स्कूल छोड़ दो या..इस गांव के हालात करेंगे हैरान! कई बच्चे बिना पढ़े हुए जवान

5वीं पढ़ने के बाद दो रास्ते, स्कूल छोड़ दो या..इस गांव के हालात करेंगे हैरान! कई बच्चे बिना पढ़े हुए जवान


Balaghat News: तस्वीर में दिखाई दे रहा युवक बालाघाट जिले के नक्सल प्रभावित गांव खारा में रहता है. अब उसकी उम्र 21 साल हो गई है. उसकी पढ़ाई छूटे करीब 10 साल हो गए. वह सिर्फ पांचवीं तक ही पढ़ पाया. जब वह छोटा था, तो सोचता था कि बड़ा होकर शहर जाकर पढ़ेगा. लेकिन, उसका सपना अधूरा रह गया. अब वह जंगल से बांस लाता है और माता-पिता के साथ खेत में काम करता है. अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें नई बात क्या है. ऐसा तो हर जगह होता है.

लेकिन, आपको तब झटका लगेगा, जब ये पता चलेगा कि इस गांव में अधिकतर बच्चे-युवाओं का यही हाल है. दरअसल, गांव में सिर्फ प्राइमरी तक का ही स्कूल है. अगर इसके बाद पढ़ना है, तो यहां के बच्चों को घने जंगलों के बीच से कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. 5वीं के बाद उनके पास दो रास्ते होते हैं, एक तो रिश्तेदारों के यहां रहकर पढ़ना या स्कूल छोड़ देना. ऐसे में उसने स्कूल छोड़ना आसान समझा जाता है. यह कहानी सिर्फ किशोर की ही नहीं, बल्कि गांव के कई बच्चों की है, जो पांचवीं के बाद स्कूल छोड़ देते हैं.

आज भी रास्ता कच्चा, पथरीला
मयूर बिंदु से बाएं मुड़कर लोकल 18 की टीम उस रास्ते पर पहुंची, जहां जाना खतरे से खाली नहीं था. ऊंचे-ऊंचे पेड़ों का घना जंगल, जहां कब कहां जंगली जानवरों से सामना हो जाए, पता नहीं. आज भी यहां रास्ता पथरीला और कच्चा है. इस रास्ते पर करीब 18 किलोमीटर चलने के बाद खारा नाम के गांव में टीम पहुंची. वहां हर घर के ऊपर सोलर पैनल लगे थे. वहां पहुंचने के बाद मुलाकात प्रमिला भलावी नाम की एक अम्मा से हुई.

डर है कि स्कूल न छूट जाए
नर्मदा भलावी बताती हैं कि उनकी नातिन ने पांचवीं तक गांव के स्कूल में पढ़ाई की. अब उसकी आगे की पढ़ाई कहां होगी, पता नहीं. वे उसे करीब 28 किलोमीटर दूर उकवा में पढ़ाना चाहती हैं. दरअसल, वहां के स्कूल में हॉस्टल की सुविधा है. अगर उसका एडमिशन उस स्कूल में नहीं हुआ, तो उसे मजबूरन रिश्तेदार के यहां रहकर आगे की पढ़ाई करनी होगी. रिश्तेदार भी गरीब हैं, उन्हें भी राशन देना होता है. उसके लिए कागज बनवाए जा रहे हैं. अगर समय पर दस्तावेज न बने तो शायद उसका स्कूल छूट जाएगा. अगर स्कूल छूटता है तो बच्चे जंगल से बांस का काम और खेती का काम करने को मजबूर हो जाएंगे.

गांव के स्कूल में दो टीचर
अम्मा ने बताया, गांव के स्कूल में सिर्फ दो टीचर हैं. पहाड़ों के बीच बसे गांव में कोई अधिकारी नहीं आता. लेकिन, ये दो टीचर एक दिन छोड़र जरूर आते हैं. एक दिन एक शिक्षक आता है तो दूसरे दिन दूसरा. ऐसे में पांच कक्षाओं को दोनों बखूबी पढ़ा रहे हैं. दुर्गम रास्ते से आने वाले शिक्षकों को एक दिन आराम करने का वक्त मिल जाता है. इसके पीछे का कारण यह कि कोई अधिकारी ग्रामीणों की सुध लेने नहीं आता. स्कूल पर कौन ध्यान देगा.

गांव में न तो बिजली है न ही सड़क
ग्रामीण बताते हैं कि गांव में बड़ी मुश्किल से ही बिजली आती है. गांव में बिजली के खंभे तो पहुंचे, लेकिन बिजली कभी-कभी ही आती है. अब करीब डेढ़ महीना हो गया बिजली नहीं आई है. इस गांव में बिजली भी मेहमान की तरह आती है. वहीं, बाजार करने के लिए 16 किलोमीटर दूर पैदल वनों के रास्ते से जाना पड़ता है. जहां से दो पहिया भी नहीं गुजरता. किसी की तबीयत खराब हो जाए, तो गांव के कुछ लोगों के पास बाइक है. ऐसे में गांव वाले ही एक दूसरे का सहारा बनते हैं. इस गांव में शिक्षा से लेकर चिकित्सा की बड़ी समस्या है. आपको बता दें कि यह वन ग्राम परसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के आमगांव पंचायत के अंतर्गत आता है.



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