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Ajab Gajab Ritual: 68 वर्षीय कामता शुक्ला बताते हैं कि छतरपुर के गहबरा गाँव में कौए का सिर पर बैठना एक प्राचीन अशुभ संकेत माना जाता है.जानें कैसे भेजा जाता है शोक संदेश और क्यों मनाया जाता है दिखावटी मातम, पूरी…और पढ़ें
हाइलाइट्स
- गहबरा गाँव में कौए का सिर पर बैठना अशुभ माना जाता है.
- परिवार में शोक मनाकर अनहोनी को टाला जाता है.
- आधुनिकता के बावजूद परंपरा आज भी जीवित है.
छतरपुर जिले के गहबरा गाँव के 68 वर्षीय कामता शुक्ला बतलाते हैं कि उनके पूर्वजों से चली आ रही एक विचित्र परंपरा आज भी लागू है. कहते हैं कि “अगर किसी के सिर पर कौआ बैठ जाए, तो वह घर‑परिवार पर भारी विपत्ति आने का संकेत है.” ये सिर्फ अटकल नहीं, बल्कि लोकमान्यता की गहरी जड़ है, जिसमें अपने ही घर में शोक मना कर अनहोनी को टाला जाता है.
कामता बताते हैं कि जैसे ही यह घटना होती है, पूरे परिवार में अँधेरा छा जाता है. आहत मन से परिवार के लोग रोते हैं, शोक मनाते हैं, जैसे कोई वाकई में चला गया हो. रिश्तेदारों को “शोक संदेश” भेजा जाता है: “परिवार के ___ की मृत्यु हो गई… सिर पर कौआ बैठ गया था.” कुछ समय बाद सच सामने आता है, लेकिन तब तक बुझ चुकी उम्मीदों की लौ कमजोर तनाओं में बदल चुकी होती है.
दिखावटी शोक से कैसे मिटेगा शाप?
जानने पर पता चलता है कि इस पूरे आयोजन का मकसद है जो भावनात्मक प्रतिक्रिया सामने आए, वह मानो कोई शाप हो गया हो. आंसुओं से, रोने से, और पूरे परिवार का दुःख दिखाने से उस “शाप” को मिटा लिया जाता है. कहते हैं, यह तरीका तीन‑चार पीढ़ियों से चला आ रहा है.
आधुनिकता के दौर में भी जब कोई इस घटना से डरता है और परिवार इसमें झुक जाता है, तो इसे अंधविश्वास की संज्ञा ही दी जाती है. लेकिन गहबरा गाँव समेत आसपास के कई इलाकों में यह परंपरा आज भी जीवित है. कामता कहते हैं, “हम माने अंधविश्वासी हैं, लेकिन यह हमारी पहचान भी है.”