बारिश में मेंढक क्यों करते हैं ‘टर्र-टर्र’? इस अनोखी आवाज के पीछे ये कहानी

बारिश में मेंढक क्यों करते हैं ‘टर्र-टर्र’? इस अनोखी आवाज के पीछे ये कहानी


खंडवा. बारिश के मौसम की शुरुआत होते ही खेत, बाग-बगीचों और पोखरों के किनारे अचानक एक आवाज गूंजने लगती है, ‘टर्र…टर्र…टर्र’ यह आवाज होती है मेंढकों की, जो बरसात में अचानक बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं. सवाल यह है कि आखिर बारिश में मेंढक इतनी जोर-जोर से क्यों शोर मचाते हैं. क्या यह महज एक आदत है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण और पारंपरिक मान्यता भी है. आइए जानते हैं, इस अनोखे व्यवहार की पूरी कहानी.

दरअसल मेंढकों का बारिश में शोर करना एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है, जिसे ‘क्रोकिंग’ कहा जाता है. यह क्रोकिंग मुख्य तौर से नर मेंढक करते हैं और इसका सबसे बड़ा कारण होता है, प्रजनन यानी मैथुन के लिए मादा को बुलाना. जब बारिश होती है, तो वातावरण में नमी बढ़ जाती है और छोटे-बड़े पानी के स्रोत बन जाते हैं, जो अंडे देने के लिए उपयुक्त स्थान होते हैं. ऐसे में नर मेंढक अपने आसपास की मादा मेंढकों को आकर्षित करने के लिए खास किस्म की आवाजें निकालते हैं.

हर प्रजाति के मेंढक की आवाज अलग
इन आवाजों को सुनकर मादा मेंढक उस दिशा में आकर्षित होती हैं और फिर दोनों साथ मिलकर प्रजनन प्रक्रिया पूरी करते हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि हर प्रजाति के मेंढक की आवाज अलग होती है और मादाएं सिर्फ उसी प्रजाति के नर की आवाज पहचानकर उसकी ओर जाती हैं, इसीलिए बारिश में अचानक मेंढकों की आवाज बहुत तेज हो जाती है क्योंकि यह दरअसल एक तरह की प्रेम पुकार होती है. अब सवाल उठता है कि यह व्यवहार सिर्फ बारिश में ही क्यों होता है, तो इसका जवाब है कि मेंढकों का शरीर नमी में ही सक्रिय और सुरक्षित रहता है. उनका शरीर शुष्क वातावरण में जल्दी पानी खो देता है और वे निर्जलीकरण से मर सकते हैं लेकिन बारिश में वातावरण में पर्याप्त नमी रहती है, जिससे उनका शरीर बेहतर तरीके से कार्य करता है, इसलिए वे बाहर निकलते हैं, शिकार करते हैं और प्रजनन के लिए सक्रिय हो जाते हैं.

सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताएं
मेंढकों के इस व्यवहार के वैज्ञानिक कारणों के अलावा सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी हैं. भारत में खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में यह माना जाता है कि मेंढकों की आवाज और उनकी गतिविधि आने वाली अच्छी बारिश और फसल के संकेत होते हैं. कई जगहों पर तो बारिश के लिए ‘मेंढक विवाह’ जैसी परंपराएं भी निभाई जाती हैं, जिसमें दो मेंढकों की शादी कराई जाती है ताकि इंद्रदेव प्रसन्न हों और बारिश जल्द आए. यह भी सच है कि मेंढक पर्यावरण के स्वास्थ्य के संवेदनशील संकेतक होते हैं. जब किसी क्षेत्र में मेंढकों की संख्या घटने लगती है, तो वह जैव विविधता और जल स्रोतों में गड़बड़ी का संकेत देता है. वहीं जब वे सक्रिय होते हैं और जोर-जोर से शोर मचाते हैं, तो यह बताता है कि पर्यावरण संतुलन में है.

ध्वनि से भर जाता है वातावरण
मेंढकों की आवाज से जुड़े एक रोचक तथ्य की बात करें, तो वैज्ञानिकों ने पाया है कि इनकी आवाज कई सौ मीटर तक सुनाई देती है और यह आवाज उनके गले में बने विशेष ‘वोकल सैक्स’ के कारण गूंजती है. जब नर मेंढक फूले हुए थैले से यह आवाज निकालता है, तो आसपास का पूरा वातावरण उसकी ध्वनि से भर जाता है. यह उनके लिए साथी की तलाश का सबसे प्रमुख जरिया होता है. अगली बार जब आप बारिश में मेंढकों की ‘टर्र-टर्र’ सुनें, तो उसे एक अनावश्यक शोर समझने की बजाय एक बेहद जरूरी प्राकृतिक प्रक्रिया समझें. यह आवाज जीवन के चक्र की, पर्यावरण के संतुलन की और आने वाली नई पीढ़ी के आगमन की घोषणा है. मेंढकों की यह ‘बारिश वाली पुकार’ वास्तव में एक जैविक उत्सव है, जिसे हम अब थोड़ी और समझदारी से सुन सकते हैं.



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