मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव।
सीहोर जिले के खिवनी अभयारण्य एरिया में रह रहे आदिवासी परिवारों के विस्थापन के मामले में हुई शिकायत और सीहोर डीएफओ को हटाने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि टाइगर रिजर्व की घोषणा से आदिवासी समुदाय और वनवासियों के अधिकारों को प्रभावित नहीं
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वनचारा वन्य जीव पुनर्वास केंद्र जैसा रेस्क्यू सेंटर चाहिए सीएम यादव ने वन विभाग के अधिकारियों को गुजरात के ‘वनतारा’ वन्यजीव पुनर्वास केंद्र का अध्ययन कर प्रदेश में भी ऐसा ही रेस्क्यू और एनिमल वेलफेयर प्रोजेक्ट स्थापित करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में ‘जियो और जीने दो’ की भावना को केंद्र में रखकर सह-अस्तित्व आधारित ईको-सिस्टम विकसित किया जा रहा है, जिससे न केवल जैव विविधता का संरक्षण हो रहा है, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा मिल रहा है और वनवासियों के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं।
वन्यजीव अभयारण्यों के संरक्षण और प्रबंधन में उच्च तकनीक का अनुप्रयोग, गुजरात के ‘वनतारा’ से प्रेरित रेस्क्यू सेंटर, दुर्लभ जीवों जैसे चीते, घड़ियाल एवं कछुओं के एक अभयारण्य से दूसरे में पुनर्स्थापन और संरक्षित क्षेत्रों की फेंसिंग शामिल हैं। यह पहल वन्यजीवों के संरक्षण और पुनर्वास में एक नई मिसाल पेश करेगी।
वन्यजीव पर्यटन से बढ़ रहा राजस्व मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने प्रदेश के घने वनों और वन्यजीव पर्यटन को राजस्व वृद्धि का एक प्रमुख माध्यम बताया। उन्होंने वन अधिकारी-कर्मचारियों के लिए विशेष सुविधाओं और उत्कृष्ट कार्य हेतु प्रोत्साहन की घोषणा की। उन्होंने यह भी बताया कि वन विभाग द्वारा किए जा रहे प्रयासों से प्रदेश में वन क्षेत्र और राजस्व में वृद्धि हुई है।
प्रदेश में वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया जारी है। जैव-विविधता को बढ़ावा देने के लिए कई स्थलों को जैव-विविधता विरासत घोषित किया गया है। वन-अग्नि की घटनाओं पर विभाग की प्रतिक्रिया अब पहले से अधिक त्वरित हुई है, जो प्रभावी वन प्रबंधन को दर्शाता है।
वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में उठाए गए कदम
- प्रदेश में अब 9 टाइगर रिजर्व हो गए हैं।
- बाघ संरक्षण के साथ-साथ ये रिजर्व पर्यटन उद्योग को बढ़ावा दे रहे हैं। साथ ही स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना रहे हैं।
- टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्रों में पर्यटकों के लिए ‘बफर-सफर’ योजना के अंतर्गत अनेक नई गतिविधियां प्रारंभ की गई हैं।
- अब पर्यटक प्राकृतिक स्थलों, वन और वन्य-प्राणी दर्शन के साथ ईको-पर्यटन गतिविधियों से जुड़ रहे हैं। इससे प्रदेश में पर्यटन को नया आयाम मिलेगा और कोर क्षेत्रों पर दबाव भी कम होगा।
- प्रदेश में 15,000 से अधिक वन समितियां गठित की जा चुकी हैं, जिनकी कार्यप्रणाली को और अधिक प्रभावी एवं सक्रिय बनाया जा रहा है।
- प्रदेश में आधुनिक चिड़ियाघर और रेस्क्यू सेंटर्स विकसित किए जा रहे हैं।
यहां भी बढ़ रही हैं सुविधाएं
- उज्जैन और जबलपुर में उन्नत सुविधाओं से युक्त नए चिड़ियाघर और रेस्क्यू सेंटर शीघ्र ही स्थापित किए जा रहे हैं।
- ओंकारेश्वर, ताप्ती और बालाघाट के सोनेवानी क्षेत्र में नए कंजर्वेशन रिजर्व बनाए जा रहे हैं, जो वन्यजीव आवासों की रक्षा करेंगे।
- प्रदेश के बुंदेलखंड वन क्षेत्रों में फैले हुए वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व में चीता पुनर्स्थापना की तैयारियाँ चल रही हैं, जिससे जैव विविधता में वृद्धि होगी।
- जलीय जीव संरक्षण के रूप में नर्मदा में महाशीर मछली जैसे जल जीवों के लिए प्रजनन केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।
- चंबल में कछुए, मगरमच्छ एवं घड़ियाल एवं गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिए केंद्र पहले से ही स्थापित हैं।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए संरक्षित क्षेत्रों के लगभग 160 किलोमीटर क्षेत्र में फेंसिंग की जा रही है।
हाथियों की सुरक्षा के लिए विशेष योजना
- प्रदेश सरकार द्वारा हाथियों की सुरक्षा और मॉनिटरिंग के लिए वर्ष 2023-24 एवं 2024-25 में कुल ₹1 करोड़ 52 लाख 54 हजार खर्च किए गए हैं।
- वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए ₹20 करोड़ और 2026-27 के लिए ₹25 करोड़ 59 लाख 15 हजार का प्रावधान किया है।
- वर्ष 2023-24 से 2026-27 तक योजना का कुल आकार ₹47 करोड़ 11 लाख 69 हजार रहेगा।
- हाथियों के आवागमन की मॉनिटरिंग के कॉलर आईडी लगाये जा रहे हैं।