होनी या अनहोनी सफेद कौवा दिखने के क्या हैं संकेत? काले वाले तो इनसे बनाकर रखते दूरी!

होनी या अनहोनी सफेद कौवा दिखने के क्या हैं संकेत? काले वाले तो इनसे बनाकर रखते दूरी!


मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में इन दिनों एक अजीब और दुर्लभ प्राकृतिक घटना चर्चा का विषय बनी हुई है. सुबह-सुबह लगभग साढ़े सात बजे पंधाना से अरुड की ओर जा रहे स्थानीय निवासी सुमित गुर्जर ने एक ऐसा दृश्य देखा, जिसे देखकर हर कोई चौंक गया. उन्होंने एक ऐसा कौवा देखा जिसका रंग पूरी तरह सफेद था. यह कोई आम पक्षी नहीं था बल्कि वही कौवा जिसकी आमतौर पर पहचान काले रंग से होती है.

सफेद कौवा है एक दुर्लभ प्राकृतिक घटना
कौवा भारत में आमतौर पर पाया जाने वाला पक्षी है, जो काले रंग के लिए जाना जाता है. लेकिन जब यही पक्षी सफेद रंग में दिखाई दे तो यह न केवल दुर्लभ होता है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी अहम हो जाता है. इस घटना को देखकर ग्रामीण आश्चर्यचकित रह गए और इसे अपने मोबाइल में रिकॉर्ड भी किया गया.

सफेद कौवा वास्तव में कोई अलग प्रजाति नहीं है, बल्कि यह किसी आनुवंशिक विकृति का परिणाम होता है. वैज्ञानिक भाषा में इसे एल्बिनिज्म (Albinism) या ल्यूसिज़्म (Leucism) कहा जाता है. एल्बिनिज्म की स्थिति में शरीर में मेलेनिन नामक रंगद्रव्य की कमी हो जाती है, जिसके कारण त्वचा, बाल, पंख और आंखों का रंग सफेद या गुलाबी दिखाई देता है. वहीं ल्यूसिज़्म में पंख तो सफेद हो जाते हैं लेकिन आंखें सामान्य रंग की ही रहती हैं.

कितनी बार दिखता है ऐसा पक्षी?
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे पक्षी लाखों में एक बार देखने को मिलते हैं. सफेद कौवा इतनी दुर्लभता से सामने आता है कि किसी क्षेत्र में इसे देखने की संभावना बेहद कम होती है. यही कारण है कि खंडवा में इस पक्षी के दिखाई देने की खबर फैलते ही लोग उसे देखने के लिए पहुंचने लगे.

सफेद रंग क्यों बनाता है इसे कमजोर?
प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के अनुसार सफेद रंग के पक्षी, खासकर कौवे, जंगल या खुले वातावरण में ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाते. उनका सफेद रंग उन्हें छिपने नहीं देता और शिकारी उन्हें आसानी से देख सकते हैं. यही कारण है कि यह प्रजाति लंबे समय तक जंगल में सर्वाइव नहीं कर पाती.

स्थानीय प्रतिक्रिया
सुमित गुर्जर ने बताया कि उन्होंने पहले कभी ऐसा पक्षी नहीं देखा था. उनके अनुसार सफेद कौवा सड़क किनारे एक पेड़ पर बैठा हुआ था और अन्य कौवे उससे थोड़ी दूरी बनाए हुए थे. शायद अन्य पक्षी उसे अपने झुंड का हिस्सा नहीं मानते. स्थानीय ग्रामीणों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए यह घटना बेहद रोमांचक रही. कुछ लोगों ने इसे शुभ संकेत माना तो कुछ इसे प्राकृतिक चमत्कार की तरह देख रहे हैं. हालांकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह केवल एक जेनेटिक बदलाव है.

क्या करना चाहिए?
अगर इस प्रकार का दुर्लभ पक्षी बार-बार दिखाई दे तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय वन विभाग की होती है. ऐसे पक्षियों को पकड़कर सुरक्षित वातावरण में रखा जाना चाहिए ताकि वे बाहरी खतरे से सुरक्षित रह सकें.

खंडवा में सफेद कौवे का दिखना एक असाधारण घटना है. यह पक्षी सिर्फ अपनी दुर्लभता के कारण नहीं, बल्कि हमें प्रकृति की विविधता और खूबसूरती की याद दिलाने के लिए भी महत्वपूर्ण है. यह घटना इस बात का प्रमाण है कि अभी भी हमारे आसपास कई ऐसे रहस्य और चमत्कार छिपे हुए हैं जिन्हें देखकर हम हैरान रह जाते हैं. इस दुर्लभ पक्षी को संरक्षित करना न केवल हमारी जिम्मेदारी है बल्कि यह वैज्ञानिक अध्ययन के लिए भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण हो सकता है.



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