जींस पहनकर मंदिर में प्रवेश, असामान्य लेकिन नहीं प्रतिबंधित
ओमकारेश्वर मंदिर प्रशासन के आधिकारिक नियमों के अनुसार कोई कड़ा ड्रेस कोड नहीं हैं. मंदिर के नियम स्पष्ट करते हैं कि “श्रद्धालु किसी सरल, मर्यादित व सामान्य वस्त्र में पूजा में प्रवेश कर सकते हैं” और “गर्भगृह में सिर्फ जल अर्पण और फूल चढ़ाना ही अनुमति है, अन्य गतिविधियां पुजारियों द्वारा ही संचालित होती हैं.” इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जींस पहनकर मंदिर में प्रवेश करना नियमों का उल्लंघन नहीं है.
हालांकि जींस पहनकर प्रवेश करना नियमों का उलंघन नहीं हो सकता, परंतु मंदिरों में वर्षों से चली आ रही एक अन्य प्रथा का उल्लंघन जरूर हुआ. यहां पुरानी परंपरा यह रही है कि पूजा के दौरान सिर्फ पुजारी ही थाली उठाकर चरण-अमृत वितरित करते हैं, जबकि अन्य श्रद्धालु बर्मा-धोती या पारंपरिक कपड़े पहन कर ही मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं.
यह परंपरा युगों से चली आ रही है, मंदिर परिसर में निश्चित पारंपरिक पोशाक और मर्यादा मानने की परंपरा और इसे संरक्षित रूप से संभाला जाता रहा है. युवक द्वारा जींस पहनकर चरण-अमृत देना इस मर्यादा का सीधा उल्लंघन माना जा रहा है.
स्थानीय प्रतिक्रिया और विवाद
घटना से मंदिर परिसर में हलचल मच गई। कुछ भक्तों ने कहा कि युवक ने बिना अनुमति थाली उठाई और यहां तक कि पुजारियों की भूमिका को भी पार किया. इसे “अधिकार की लापरवाही” बताया गया क्योंकि श्रीपुजारी द्वारा ही पारंपरिक पूजा-अर्चना की जाती है.
हालाँकि फिलहाल ऐसी कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं हुई है, पर मंदिर प्रबंधन जल्द ही इस पर विचार कर सकता है और आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर सकता है. जब आयोजकों से पूछा जाएगा, वे स्पष्ट स्थिति की व्याख्या करेंगे.
परंपरा, नियम और समय के बदलाव
पूजाविधियों में समय के साथ बदलाव आते रहते हैं. एक तरफ जींस पहनकर मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति आधुनिक दृष्टिकोण में स्वच्छता और सरल आस्था को दर्शाती है, वहीं पारंपरिक मर्यादा को लेकर विरोध भी जाग उठता है. कई भक्तों का कहना है कि पारंपरिक पोशाक हमें धार्मिक गरिमा से जोड़ती है और इसे बनाए रखना जरूरी है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो या धार्मिक, यह वाक्या हमें यह याद दिलाता है कि नियम तथा आस्था का भविष्य हमें पारंपरिक एवं समकालीन दृष्टिकोण का संतुलित मिश्रण खोजने की आवश्यकता है.
ओमकारेश्वर में जींस पहन युवक का आरती थाली पकड़े मंदिर में प्रवेश करना केवल एक व्यक्तिगत कदम नहीं है, बल्कि यह एक परिवर्तन का संकेत भी है जहां आस्था और आधुनिकता का टकराव सामने आता है. आज वह थाली झुकाते समय युवा ने इन दोनों पहलुओं का प्रतिबिंब प्रस्तुत किया: एक तरफ मंदिर प्रशासन की उदारता और दूसरी तरफ वर्षों से चली आ रही पूजात्मक मर्यादा का क्षरण.
भविष्य में यह उम्मीद की जा रही है कि मंदिर समिति इस घटना का अध्ययन करेगी, पारंपरिक मर्यादा बनाए रखते हुए आधुनिक मूल्यों को सम्मानित करते हुए नए दिशा-निर्देश देगी. तब यह निर्धारित होगा कि क्या जींस पहनकर पूजाकर्म की गतिविधियों में हिस्सा लेना धार्मिक मर्यादा का उल्लंघन है या आधुनिक आस्था की न्यायसंगत अभिव्यक्ति.