एक गुरु ऐसे भी… सप्ताह भर पहले दिया था खुद की मृत्यु का संदेश, समाधि स्थल भी खुद चुना – rajgarh (MP) News

एक गुरु ऐसे भी… सप्ताह भर पहले दिया था खुद की मृत्यु का संदेश, समाधि स्थल भी खुद चुना – rajgarh (MP) News



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मालवा और हाड़ौती के मध्य करीब 500 साल पहले बसे राजगढ़ नगर की पावन धरा में समय-समय पर कई विभूतियों और पुण्यात्माओं ने जन्म लिया है। ऐसे ही पुण्यात्माओं में संत हरिओम तत्सत जी महाराज का नाम सर्वोपरि है। उन्होंने तप और साधना से अनेक सिद्धियां प्राप्त कर इनका उपयोग जन कल्याण के लिए किया। उनके विशेष आध्यात्मिक बल और ज्ञान के प्रत्यक्षदर्शी हजारों लोगो ने उन्हें अपने गुरु का स्थान दिया। आज भी राजगढ़ के कई लोग मिलने पर एक दूसरे को अपने गुरु के आध्यात्मिक नाम हरिओम तत्सत से संबोधित करते हैं।

हरिओम तत्सत की दिव्य शक्तियों का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने देहवासन के करीब एक महा पूर्व ही इसका अनुमान जता दिया था। समाधी के एक दिन पहले यानि 28 दिसंबर 1968 को तो उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि वे अगले दिन मोक्ष को प्राप्त करेंगे। अपनी समाधी के लिए खोयरी के घने जंगलों को चुना। वे एक दिन पूर्व ही वहां पहुंच गए और साधना करते हुए ब्रह्मलीन हो गए। उन्होंने अपने भौतिक शरीर को पहले ही समाधिस्थ करने के लिए अनुज पंडित लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी को कह दिया था। अगले दिन यानी 29 दिसम्बर 1968 को सुबह नगर में यह खबर आग की तरह फैल गई। उस समय हजारों लोग इस चमत्कारिक घटना के साक्षी बने। आज गुरु पूर्णिमा अवसर पर कई शिष्य परिवार सदस्य खोयरी मंदिर के समीप बनी उनकी समाधी पर पहुंच गुरुवंदना करेंगे।

नगर की भव्य धार्मिक, सामाजिक और साहित्यक संस्था पारायण चौक (गीता मानस प्रचार समिति) की स्थापना हरिओम तत्सत जी महाराज की देन है। पुराने समय में बड़े सत्यनारायण मंदिर के सामने नगर में पारायण होता था। बाद में पर्याप्त स्थान की आवश्यकता हुई तो तत्कालीन महाराज से वर्तमान पारायण चौक वाले स्थान को इसके लिए तैयार करवाया। 17 अक्टूबर 1968 को पारायण चौक पर भवन का निर्माण शुरु किया गया। यहां वर्ष भर धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियां समिति के माध्यम से आयोजित होती रहती है।



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