12 ज्योतिर्लिंगों के एक साथ दर्शन, नर्मदा के पत्थरों से बनी हूबहू आकृति

12 ज्योतिर्लिंगों के एक साथ दर्शन, नर्मदा के पत्थरों से बनी हूबहू आकृति


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Shri Siddhnath Mahadev Temple Khargone: आचार्य पंडित पगारे ने लोकल 18 से कहा कि हमारे धर्म शास्त्रों में 12 ज्योतिर्लिंगों का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. जो भी श्रद्धालु इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करता है, …और पढ़ें

खरगोन. मध्य प्रदेश के खरगोन में लगभग 400 साल शिवालय में अब न सिर्फ शहर के अधिष्ठाता श्री सिद्धनाथ महादेव बल्कि 12 ज्योतिर्लिंगों के भी दर्शन भक्तों को हो पाएंगे. जी हां, गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर यहां मां नर्मदा के पवित्र जल से निकले पत्थरों से निर्मित 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां विद्वान पंडितों द्वारा विधि-विधान के साथ इस मंदिर में स्थापित की गई हैं. भक्तों को अब एक ही मंदिर में सालभर 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो सकेगा.

गुरुवार को गुरु पूर्णिमा के दिन शहर के भावसार मोहल्ला स्थित अति प्राचीन श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर में इन 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गई है. मंदिर समिति अध्यक्ष मनोज भावसार ने लोकल 18 को बताया कि 12 ज्योतिर्लिंग स्वरूप शिवलिंग मां नर्मदा से निकले पत्थरों के हैं क्योंकि नर्मदा का हर कंकर शंकर है. इनका निर्माण ग्राम बकावां के कारीगरों द्वारा किया गया है. 12 ज्योतिर्लिंग की आकृति जिस प्रकार हमें मंदिरों में देखने को मिलती है, ठीक उसी प्रकार की आकृति अब खरगोन के इस मंदिर में भी भक्तों को देखने को मिलेगी.

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ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का महत्व
मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र भावसार (लाला) ने लोकल 18 को बताया कि गुरु पूर्णिमा पर आचार्य पंडित राजेंद्र पगारे के सानिध्य में मंदिर समिति के सदस्यों द्वारा सभी 12 ज्योतिर्लिंगों का पूजन-अर्चन करके स्थापना की गई. वहीं आचार्य पंडित पगारे के अनुसार, हमारे धर्म शास्त्रों में 12 ज्योतिर्लिंगों का अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. जो भी भक्त इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर शिवलोक में स्थान पाता है.

374 साल पुराना है मंदिर
मंदिर के पुजारी हरीश गोस्वामी लोकल 18 को बताते हैं कि श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर की स्थापना साल 1651 में मल्लीवाल परिवार द्वारा हुई थी. मल्लीवाल परिवार में एक महिला के गर्भ से चार बच्चों ने जन्म लिया था, जिनमें एक का जन्म सर्प योनि में हुआ था लेकिन परिवार ने उसे भी अपने बेटे की तरह पाला-पोसा. उसका नाम सिद्धू रखा गया. यहां तक कि सिद्धू को संपत्ति में भी हिस्सेदारी दी गई. सिद्धू के हिस्से में जो जमीन आई, मौत के बाद उसी जमीन पर सिद्धू को दफनाया गया. बाद में इस समाधि पर शिवलिंग की स्थापना की गई, जो अब श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है.

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