शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा परमवीर चक्र के पिता गिरधारी लाल बत्रा।
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यह कहना है शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा परमवीर चक्र के पिता गिरधारीलाल बत्रा का। वे एक आयोजन के सिलसिले में इंदौर आए थे। उन्होंने चर्चा में युवाओं को अपने जीवन को सफल बनाने का संदेश दिया। अपने शरीर पर शहीदों के नाम के टैटू कराने वाले पंडित अभिषेक गौतम को लेकर उन्होंने कहा कि पं.अभिषेक गौतम काफी सारे शहीद परिवारों के साथ जुड़े हैं। वे अपने तरीके से समाज सेवा कर रहे है। वे शहीद के परिवारजनों से बातचीत करते रहते है। मैं समझता हूं कि उन्होंने अच्छी मुहिम चलाई है।
उन्होंने युवाओं को लेकर कहा कि मैं समझता हूं कि आज के जो युवा है वो हमारी भारतीय संस्कृति, कल्चर को छोड़कर खाओ पियो मौज करो वाली, इंजॉय वाली पॉलिसी पर ज्यादा चल रहे है। हाई क्वालिफिकेशन लेने के बाद भी उनका रुझान होता है कि वे मल्टीनेशनल कंपनी में जाए फॉरेन कंट्री में जाए और लग्झरी लाइन जीने की इच्छा रखते हैं, लेकिन कुछ ऐसे है जो भटके हुए है। मोबाइल, लैपटॉप, सोशल मीडिया में लगे है। सोशल मीडिया में हम देखते है कि बहुत सी अच्छी चीजें है कुछ नेगेटिव बातें भी हैं कुछ गलत चीजें भी है। कुछ युवा गलत चीजों को भी इख्तियार कर लेते है, भटक जाते है। अपनी संस्कृति से हटे हुए है जो मान सम्मान बड़े-बुजुर्गों का होता था देश की संस्कृति को फॉलो करते थे इन बातों धीरे-धीरे हट रहे है।
गिरधारी लाल बत्रा ने युवाओं को देश के महापुरुषों से जुड़ने का सुझाव दिया।
अपने जीवन को सफल करें
उन्होंने कहा कि हमारे देश में इतने बड़े महापुरुष हुए है। इस धरती के कण-कण में महापुरुष समाए हुए हैं। बड़े-बड़े ऋषिमुनि, बड़े-बड़े योद्धा, वीर पुरुष इसमें समाए हुए हैं। उनको देखकर उन्हें अपना रोल मॉडल युवाओं को बनाना चाहिए। स्वामी विवेकानंद जी, भगत सिंह, कैप्टन विक्रम बत्रा, मनोज पांडे जी है उन्हें अपना रोल मॉडल बनाए ताकि वे इस समाज और देश के लिए कुछ कर सके, नहीं तो उनका जीवन निरर्थक है। जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है, बिना उद्देश्य के तो जीवन बेकार है। ऐसे-ऐसे महापुरुष जो हमारी धरती में समाए है उनको ये अपना रोल मॉडल बनाए और उनके पदचिह्नों पर चलकर अपने जीवन को सफल करें।
भावुक हुए पिता, बोले बच्चे महान काम के लिए आए थे
गिरधारीलाल बत्रा से पूछा कि जवान बेटे के जाने के बाद परिवार की क्या स्थिति होती तो वे भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि 26 वर्ष हो गए है। जिस परिवार का युवा सदस्य चला जाता है, माता-पिता का जवान बेटा चला जाता है, पत्नी का पति चला जाता है। ये क्षतिपूर्ति कभी पूरी नहीं हो सकती है, लेकिन अब मन में हमेशा यहीं भावना रहती है कि ये बच्चे (जवान बेटा) जो शहीद हो गए है। ये बहुत ही महान काम के लिए आए थे, हमारे देश के लिए उन्होंने अपनी जान दी है। इस भावना के सहारे हम जीते है। समाज, देश हमें सम्मान दे रहा है, हम अपने आपको सुरक्षित मानते है, हम समझते है कि हमें अच्छा स्थान समाज और सरकार ने दिया है।