धार्मिक नगरी महेश्वर, मंडलेश्वर और उनके आसपास के पथराड़, भटियाण, जलूद, सुलगांव सहित दर्जनों गांवों की हालत हर साल एक जैसी होती है. पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादा बारिश के बाद जब बरगी बांध, इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर डैम के गेट खोले जाते हैं, तो नर्मदा का जलस्तर तेजी से बढ़ जाता है. इससे निचले इलाकों में पानी भरने लगता है. गांव खाली कराकर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना पड़ता है, जिससे हर साल जन-धन की क्षति भी होती है.
रविवार को ऊपरी इलाकों में भारी बारिश के चलते दोनों प्रमुख बांधों के गेट खोल दिए गए. इससे नर्मदा का जलस्तर फिर से खतरे के निशान की ओर बढ़ रहा है. प्रशासन ने सतर्कता बरतते हुए नदी के किनारे मुनादी कराई है और घाटों पर जाने पर रोक लगा दी है. प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ नियंत्रण के लिए कंट्रोल रूम और राहत शिविरों की व्यवस्था की गई है.
प्रशासन की तैयारियां
स्थानीय एसडीएम अनिल जैन ने बताया कि, प्रशासन ने सभी डूब क्षेत्र के गांवों में नोडल अधिकारी नियुक्त किए हैं. नर्मदा का जलस्तर बढ़ते ही मुनादी कराई जाती है. राहत शिविरों में रहने, खाने और पीने की पूरी व्यवस्था की गई है. साथ ही होमगार्ड और पुलिस बलों को प्रमुख घाटों पर तैनात किया गया है. तहसील कार्यालय में 24 घंटे एक्टिव कंट्रोल रूम भी स्थापित है, जिससे हालात पर निगरानी रखी जा सके.
मंडलेश्वर में बाढ़ का बड़ा कारण
इधर, मंडलेश्वर में अंग्रेजों ने 1822 में एक बड़ी दीवार बनाई थी, जो श्रीराम मंदिर से लेकर जेल तक फैली है. यह दीवार इस बात का संकेत देती है कि इसके पार जाने पर बाढ़ का खतरा है. फिर भी लोग इसे नजरअंदाज कर निर्माण कार्य कर रहे हैं. दीवार के बाहर बसे लोगों को 1994 और 2023 में भी बाढ़ का भारी नुकसान उठाना पड़ा. इसके बावजूद नदियों के किनारे अतिक्रमण लगातार बढ़ रहा है. लेकिन, प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है, जबकि सबसे ज्यादा मुश्किलें यहीं आती है.