बैतूल में शनिवार को विश्व आदिवासी दिवस पारंपरिक उत्साह और सांस्कृतिक रंगों के साथ मनाया गया। पारंपरिक वेशभूषा में निकली भव्य रैली, लोकगीत-नृत्य, सम्मान समारोह और पर्यावरण संरक्षण के संकल्प ने आयोजन को खास बना दिया।
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दिनभर चले कार्यक्रमों में आदिवासी समाज की एकजुटता और अपनी धरोहर के प्रति गर्व झलकता रहा।
कार्यक्रम सुबह 8 बजे जिला चिकित्सालय में फल वितरण से हुआ। इसके बाद 10:30 बजे पड़ापेन ठाना रैन बसेरा में सल्ला गांगरा पूजा-पाठ पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुई, जिसमें समाज के वरिष्ठजन और पुजारी शामिल रहे।

शहर में गूंजी आदिवासी संस्कृति सुबह 11 बजे पड़ापेन ठाना से पारंपरिक वेशभूषा में विशाल रैली निकाली गई। रैली अम्बेडकर चौक, रानी दुर्गावती चौक, शिवाजी चौक होते हुए कलेक्ट्रेट रोड, लल्ली चौक, बस स्टैंड और हॉस्पिटल चौक से गुजरकर आदिवासी सामुदायिक मंगल भवन, गुरुद्वारा रोड पहुंची। रैली के दौरान पारंपरिक नृत्य और ढोल-नगाड़ों की गूंज ने माहौल को उत्सवी बना दिया।
सम्मान और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां रैली के समापन के बाद मंगल भवन में अतिथियों का स्वागत किया गया। समाज के उत्कृष्ट योगदानकर्ताओं को सम्मानित किया गया। मंच से सामाजिक जागरूकता पर आधारित उद्बोधन हुए, वहीं पारंपरिक लोक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। आगंतुकों के लिए पारंपरिक भोजन प्रसादी की भी व्यवस्था रही।


‘एक परिवार, एक पौधा’ अभियान की शुरुआत दोपहर 1:30 से 5:00 बजे तक चले मंचीय कार्यक्रम में पूजा-पाठ और सुमरनी का आयोजन हुआ। इसी दौरान पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘एक परिवार, एक पौधा’ अभियान की शुरुआत की गई। इस पहल के तहत समाज के लोगों ने अपने पुरखों के नाम पर पौधे रोपकर हरियाली और संरक्षण का संदेश दिया।
आयोजन में एकजुटता का संदेश पूरे कार्यक्रम का संचालन समस्त आदिवासी समाज संगठन बैतूल ने किया। आयोजकों ने कहा कि यह दिन न केवल हमारी संस्कृति को संजोने का है, बल्कि समाज में एकता, जागरूकता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने का भी अवसर है।