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Poultry Farming Business: वन राजा मुर्गा मूल रूप से आदिवासी इलाकों में पाला जाने वाला देशी नस्ल का पक्षी है. इसका शरीर मजबूत, मांस स्वादिष्ट और पौष्टिकता में भरपूर होता है. (रिपोर्ट:सावन पाटिल)

मध्य प्रदेश के खंडवा सहित आसपास के आदिवासी क्षेत्रों में पोल्ट्री फार्मिंग किसानों की आय का एक बड़ा साधन बनती जा रही है. अब तक कड़कनाथ मुर्गा इस कारोबार का बादशाह माना जाता था लेकिन अब एक नया नाम तेजी से चर्चा में है, वन राजा मुर्गा (Van Raja Murga).

देखने में पूरी तरह देशी और जंगली रंग रूप वाला यह मुर्गा न सिर्फ कड़कनाथ को टक्कर देता है बल्कि सही तरीके से पालन करने पर किसानों के लिए एटीएम मशीन जैसा मुनाफा देता है. वन राजा मुर्गा मूल रूप से आदिवासी इलाकों में पाला जाने वाला देशी नस्ल का पक्षी है. इसका शरीर मजबूत, मांस स्वादिष्ट और पौष्टिकता में भरपूर होता है.

शोध बताते हैं कि इसके मांस में वसा की मात्रा बेहद कम और प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे यह स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है. इसकी रंगत कड़कनाथ की तरह पूरी तरह काली नहीं होती लेकिन मजबूती, स्वाद और सेहत के गुण इसमें बराबर या उससे भी ज्यादा पाए जाते हैं.

कड़कनाथ मुर्गा पहले से ही प्रीमियम कीमत पर बिकता है लेकिन वन राजा की मांग भी अब उसी स्तर पर पहुंच रही है. इसकी खासियत यह है कि यह पूरी तरह से देशी माहौल में पला-बढ़ा होता है, जिससे इसका मांस प्राकृतिक स्वाद बनाए रखता है. आदिवासी क्षेत्रों में यह पारंपरिक तरीके से पाला जाता है, वहीं अब कई किसान इसे व्यावसायिक स्तर पर पालने की ओर बढ़ रहे हैं.

किसान अगर सही तरीके से वन राजा मुर्गा पालन शुरू करें, तो यह कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकता है. एक मुर्गे की बाजार कीमत कड़कनाथ के बराबर यानी 700 से 1000 रुपये तक मिल सकती है. इसका पालन ज्यादा दवाइयों या केमिकल आधारित चारे पर निर्भर नहीं है, जिससे लागत कम आती है. ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में यह खुले वातावरण में पाला जा सकता है और यह कठिन परिस्थितियों में भी आसानी से जी सकता है.

वन राजा की खासियत यह है कि यह ज्यादा बीमार नहीं पड़ता लेकिन इसकी प्रजनन क्षमता (ब्रीडिंग) कड़कनाथ से थोड़ी कम मानी जाती है. यही कारण है कि अभी इसका उत्पादन बड़े स्तर पर नहीं हो रहा है. हालांकि जैसे-जैसे किसानों और पशुपालकों को इसके बारे में सही जानकारी मिल रही है, वैसे-वैसे लोग इस दिशा में निवेश कर रहे हैं.

विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में वन राजा मुर्गा पालन गांवों में आय का बड़ा साधन बन सकता है. शहरों में हेल्दी और ऑर्गेनिक मीट की बढ़ती मांग के कारण इसकी कीमत स्थिर और ऊंची बनी रह सकती है, साथ ही सरकार भी देशी नस्लों के संरक्षण और संवर्धन पर जोर दे रही है, जिससे इस कारोबार को प्रोत्साहन मिलेगा.

अगर किसान कड़कनाथ के साथ-साथ वन राजा मुर्गा पालन भी अपनाते हैं, तो यह उनके लिए एक अतिरिक्त और मजबूत आमदनी का जरिया बन सकता है. यह न सिर्फ स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतरीन है बल्कि बाजार में भी इसकी पहचान और कीमत तेजी से बढ़ रही है. आने वाले समय में यह देशी मुर्गा किसानों की आर्थिक आजादी का अहम हथियार साबित हो सकता है.